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आमलकी एकादशी व्रत कथा | Amalaki Ekadashi Vrat Katha PDF in Hindi

आमलकी एकादशी व्रत कथा | Amalaki Ekadashi Vrat Katha Hindi PDF Download

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आमलकी एकादशी व्रत कथा | Amalaki Ekadashi Vrat Katha PDF Details
आमलकी एकादशी व्रत कथा | Amalaki Ekadashi Vrat Katha
PDF Name आमलकी एकादशी व्रत कथा | Amalaki Ekadashi Vrat Katha PDF
No. of Pages 6
PDF Size 0.52 MB
Language Hindi
CategoryEnglish
Source pdffile.co.in
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आमलकी एकादशी व्रत कथा | Amalaki Ekadashi Vrat Katha Hindi

नमस्कार मित्रों, आज हम इस लेख के द्वारा आपके लिए प्रस्तुत करने जा रहे हैं आमलकी एकादशी व्रत कथा / Amalaki Ekadashi Vrat Katha PDF in Hindi. फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष एकादशी को आमलकी एकादशी कहा जाता है। जिसे कि आंवला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। आमलकी का अर्थ आंवला होता है, जिसे शास्त्रों में गंगा के समान श्रेष्ठ बताया गया है। आमलकी एकादशी के दिन आंवला के वृक्ष पूजा करने का विधान है।

पद्म पुराण के अनुसार आमलकी या आंवला का वृक्ष भगवान विष्णु को अत्यधिक प्रिय होता है। जिस प्रकार पीपल के के पेड़ में सभी देवताओं का वास होता है उसी प्रकार आंवले के पेड़ में भी देवताओं का वास माना जाता है। कहा जाता है कि एकादशी व्रत का नियमित पालन करने से व्यक्ति को मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है तथा इस जीवन में समस्त प्रकार के सुखों को भोग कर वह मोक्ष को प्राप्त करता है।

आमलकी एकादशी व्रत कथा / Amalaki Ekadashi Vrat Katha PDF

पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह कहा जाता है कि ब्रह्मा जी भगवान विष्णु की नाभि से उत्पन्न हुए थे। एक दिन ब्रह्मा जी ने खुद को जानने की कोशिश की, जिसके लिए उन्होंने परब्रह्म की तपस्या करनी शुरू कर दी। उनकी भक्तिमय तपस्या से प्रसन्न होकर परब्रह्म भगवान विष्णु उनके समक्ष प्रकट हो गए। जैसे ही ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु को अपने समीप देखा वैसे ही वह रोने लगे।

कहा जाता है कि ब्रह्मा जी के आंसू भगवान विष्णु के चरणों पर गिर रहे थे। यह आंसू भगवान विष्णु के चरणों पर गिरकर आंवले के पेड़ में परिवर्तित हो गए थे। यह देख कर भगवान विष्णु ने कहा कि यह वृक्ष और इस वृक्ष का फल मुझे अत्यंत प्रिय रहेगा और जो भक्त आमलकी एकादशी पर इस वृक्ष की पूजा विधिवत रूप से करेगा उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी तथा उसके सारे पापों का अंत होगा।

आमलकी एकादशी की दूसरी कथा / Amalaki Ekadashi Pauranik Vrat Katha PDF

प्राचीन काल में चित्रसेन नामक राजा रहता था। उसके राज्य में सभी प्रजाजन एकादशी का व्रत करते थे। वहीं राजा की भी आमलकी एकादशी के प्रति अत्यंत श्रद्धा थी। एक दिन राजा शिकार करते-करते जंगल में बहुत दूर निकल गये। तभी राजा को कुछ जंगली और पहाड़ी डाकुओं ने घेर लिया और उन पर शस्त्रों से हमला कर दिया।

किन्तु भगवान की कृपा से राजा पर जो भी शस्त्र चलाए जाते वो पुष्प में बदल जाते। अधिक संख्या में डाकुओं के होने से राजा संज्ञाहीन होकर धरती पर गिर गए। तभी राजा के शरीर से एक दिव्य शक्ति प्रकट हुई जिसने सभी राक्षसों को वध कर दिया और वह अदृश्य हो गई। जब राजा उठे तो उन्होंने सभी राक्षसों को मृत पाया।

यह देख राजा आश्चर्य में पड़ गए और सोचने लगे कि इन डाकुओं को किसने मारा? तभी आकाशवाणी हुई- हे राजन! यह सब राक्षस तुम्हारे आमलकी एकादशी व्रत के प्रभाव से मारे गए हैं। तुम्हारे शरीर से उत्पन्न आमलकी एकादशी की वैष्णवी शक्ति ने इनका संहार किया है। यह सुनकर राजा प्रसन्न हुआ और वापस लौटकर उन्होंने राज्य में सबको एकादशी का महत्व बतलाया।

आमलकी एकादशी व्रत विधि / Amalaki Ekadashi Vrat Puja Vidhi PDF

  • सर्वप्रथम स्नान आदि करके भगवान विष्णु की प्रतिमा के समक्ष हाथ में तिल, कुश, मुद्रा और जल लेकर आमलकी एकादशी व्रत का संकल्प करें कि मैं भगवान विष्णु की प्रसन्नता एवं मोक्ष की कामना से आमलकी एकादशी का व्रत रखता / रखती हूं। मेरा यह व्रत सफलता पूर्वक पूर्ण हो इसके लिए श्री हरि मुझे अपनी शरण में रखें।
  • संकल्प के पश्चात षोड्षोपचार सहित भगवान की विधि पूर्वक पूजा करें।
  • भगवान की पूजा के पश्चात पूजन सामग्री लेकर आंवले के वृक्ष की पूजा करें।
  • सबसे पहले वृक्ष के चारों ओर की भूमि को साफ करें और उसे गाय के गोबर से पवित्र करें।
  • पेड़ की जड़ में एक वेदी बनाकर उस पर कलश स्थापित करें।
  • इस कलश में देवताओं, तीर्थों एवं सागर को आमत्रित करें।
  • कलश में सुगन्धी और पंच रत्न रखें।
  • इसके ऊपर पंच पल्लव रखें फिर दीप प्रज्वलित करके रखें।
  • कलश के कण्ठ में श्रीखंड चंदन का लेप करें और वस्त्र पहनाएं।
  • अंत में कलश के ऊपर श्री विष्णु के छठे अवतार परशुराम की स्वर्ण मूर्ति स्थापित करें और विधिवत रूप से परशुराम जी की पूजा करें।
  • रात्रि में भगवत कथा व भजन कीर्तन करते हुए प्रभु का स्मरण करें।
  • द्वादशी के दिन प्रात: ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा दें साथ ही परशुराम जी की मूर्ति सहित कलश ब्राह्मण को भेंट करें।
  • इन क्रियाओं के पश्चात परायण करके अन्न जल ग्रहण करें।

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