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बेला का चरित्र चित्रण PDF

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बेला का चरित्र चित्रण PDF Details
बेला का चरित्र चित्रण
PDF Name बेला का चरित्र चित्रण PDF
No. of Pages 2
PDF Size 0.40 MB
Language English
CategoryEnglish
Source pdffile.co.in
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बेला का चरित्र चित्रण

नमस्कार मित्रों, आज इस लेख के माध्यम से हम आप सभी के लिए बेला का चरित्र चित्रण PDF प्रदान करने जा रहे हैं। “सूखी डाली” कहानी एक अत्यधिक प्रसिद्ध एवं रोचक कहानी है। सूखी डाली कहानी महान लेखक उपेन्द्रनाथ जी द्वारा लिखी गयी है। उपेन्द्रनाथ जी को उनके उपनाम (Pen Name) ‘अश्क’ से भी जाना जाता है। उनको साहित्य जगत में अत्यंत ही प्रसिद्धि एवं ख्याति प्राप्त हुई है।

उपेंद्रनाथ जी का जन्म 14 दिसम्बर 1910 को जलन्धर नामक शहर में हुआ था। सूखी डाली कहानी के द्वारा उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ जी ने एक ऐसे समाज की कल्पना करने की कोशिश की है, जहाँ प्रत्येक व्यक्ति को समान अधिकार एवं सम्मान प्राप्त हों। सूखी डाली’ एकांकी कहानी pdf में छोटी बहू का नाम बेला है, जो कि एक बड़े घर की पढ़ी – लिखी लड़की है। इस कहानी के बारे में विस्तार रूप से जानने के लिए आप इस लेख को पूरा पढ़ें।

बेला का चरित्र चित्रण PDF / Bela Ka Charitra Chitran Kijiye

  • उपेन्द्रनाथ अश्क जी का नाम हिन्दी साहित्य के प्रमुख एकांकीकारों में बड़े आदर से लिया जाता है। जीवन में जो अशिव और अरुचिपूर्ण है, उसे अनावृत करने का प्रयास किया। उनके प्रत्येक एकांकी में प्रमुख पात्र के मन में तीव्र असंतोष या विषाद का चित्रण हुआ है। सामाजिक एकांकीकारों में घोर यथार्थवाद के चितेरे उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ का नाम सर्वोपरि है।
  • ‘सुखी डाली’ की नायिका बेला है जो इस एकांकी की प्रमुख पात्र है जिसने अपने व्यवहार से पूरे परिवार में हलचल पैदा कर दी है। बेला लाहौर के एक प्रतिष्ठित व सम्पन्न कुल की सुशिक्षित लड़की है जिसके पति नायब तहसीलदार परेश हैं। बेला दादा मूलराज के परिवार की सबसे छोटी बहू है उसके परिवार में आ जाने से तथा परिवार के प्रति विपरीत रवैया होने से परिवार में एक अजीब-सा माहौल छा जाता है।
  • वह प्रथम तो सभी की चर्चा का केन्द्र बन जाती है सभी को उससे कुछ न कुछ शिकायत रहती है। वह अपने को ससुराल में अपरिचित-सा समझती है अतएव तुलना करने पर अपनी माँ के घराने को श्रेष्ठ पाती है और बात-बात पर अपने मायके का बड़प्पन दिखाती है जो उसकी ननद इन्दु को पसन्द नहीं। तभी तो इन्दु शिकायत भरे लहजे में बड़ी बहू से कहती है-“अपने और अपने मायके वालों के सामने तो वह किसी को कुछ गिनती ही नहीं, हम तो उसके लिए मूर्ख, गॅवार और असभ्य हैं।”
  • बेला तुनकमिजाज है। नौकरानी को घर के काम से हटाये जाने पर जब इंदु उससे कहती है कि “यह मिसरानी यहाँ दस वर्ष से काम कर रही है तो यह तुनककर कहती है-“वह तमीज तो बस आप लोगों को है” तथा गुस्से में कहती है- “वह ढंग मुझे नहीं आता, मैंने तो नौकर यहाँ आकर देखे हैं।
  • ” वह अपने मायके की प्रशंसा करते हुए कहती है-“मेरे मायके में तो ऐसी गँवार मिसरानी दो दिन छोड़ दो घड़ी भी न टिकती ” बेला हाजिरजवाब है, उसके मन में जो भी होता है वह तुरन्त बोल देती है। वह यह नहीं देखती है कि सामने वाले को मेरी बात बुरी लगेगी। तभी तो इन्दु छोटी भाभी के पूछने पर बेला के बारे में कहती है-” वे मीठा कब कहती है जो आज कड़वी कहेंगी।
  • ” छोटी भाभी में बचपना है, बड़े घर की होने के कारण उसमें घमण्ड भरा हुआ है वह किसी का सम्मान करना व दूसरों की भावनाओं का आदर करना नहीं जानती। छोटी भाभी चिन्ता में कहती है-“फिर कैसे चलेगा ? हमारे घर में तो मिलकर रहना, बड़ों का आदर करना, नौकरों पर दया और छोटों से प्यार किया जाता है।” और इन गुणों की कमी बेला में है। वह अपने पति परेश का भी आदर नहीं करती। परेश भी परेशान है।
  • मँझली बहू इसी प्रकार की किसी घटना पर हँसती चली जाती है। छोटी भाभी के पूछने पर वह बताती है-“छोटी माँ! अभी-अभी छोटी बहू ने परेश की वह गत बनाई कि बेचारा अपना-सा मुँह लेकर दादा जी के पास भाग गया।”
  • छोटी बहू बेला एक भावुक स्त्री है। जब घर की सभी स्त्रियाँ आपस में हँस बोल रही हैं लेकिन अचानक बहू के प्रवेश से हँसी के रुक जाने से बहू पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है, उसे लगता है मानो उसकी हँसी उड़ायी जा रही है। वह दुःखी होकर परेश से कहती है-“मेरे सामने कोई हँसता नहीं, कोई ऐसे सन्न रह गई जैसे भरी सभा में किसी ने चुप की सीटी बजा दी हो।”अभी-अभी सब हँस रही थीं, ठहाके पर ठहाके मार रही थीं, मैं गई तो सब को साँप सूंघ गया बेला में एक विशेष गुण यह है कि उसे अपनी गलती स्वीकारना आता है।
  • जब उसे इन्दु बताती है कि दादा जी और सब सह सकते हैं पर किसी का पृथक् होना नहीं सह सकते, हम सब एक महान पेड़ की डालियाँ हैं। वे कहा करते हैं-“और इससे पहले कि कोई डाली टूटकर अलग हो, मैं ही इस घर से अलग हो जाऊँगा” तो वह परेशान हो उठती है।
  • वह कहती हैं में आदर नहीं चाहती, मैं तुम सबके साथ मिलकर काम करना चाहती हूँ। बेला अपने अभिमान को त्याग कर इन्दु से कहती है तुम मुझे भाभीजी कहकर मत बुलाया करो। अन्त में हम देखते हैं वह दादा जी की भावनाओं का भी सम्मान करती है।
  • वह दादा जी से कहती हैं-“दादा जी, आप पेड़ से किसी डाली का टूटकर अलग होना पसन्द नहीं करते, पर क्या आप यह चाहेंगे कि पेड़ से लगी-लगी वह डाल सूखकर मुरझा जाए बेला अपने चरित्र द्वारा पाठकों के हृदय में जगह बना लेती है और दुःखान्त नाटक को सुखान्त बनाकर अमिट छाप छोड़ती है।
  • एक आदर्श भारतीय नारी के समान वह संयुक्त परिवार में मिलजुल कर रहना स्वीकार कर लेती है।

सूखी डाली एकांकी का सारांश लिखिए / Sukhi Dali Ekanki Ka Saransh Likhiye

  • श्री उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ जी द्वारा लिखित एकांकी ‘सूखी डाली’ एक पारिवारिक सामाजिक एकांकी है।
  • इसमें पारिवारिक जीवन में स्वाभाविक रूप से उभरते हुए द्वन्द्वों का प्रभावशाली चित्रण किया गया है।
  • इस एकांकी में वट वृक्ष का चित्रण प्रतीकात्मक है। उसे अभिभावक के रूप में चित्रित किया गया है।
  • इसके द्वारा एकांकीकार ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि संयुक्त परिवार में अभिभावक की भूमिका सुखद, आनंददायक और प्रगति विधायक एक ऐसे वट वृक्ष की तरह होती है। जिसकी छाया स्थाई रूप से शीतल, शांतिमयी और मनमोहक होती है।

सूखी डाली शीर्षक की सार्थकता / Sukhi Dali Shirshak Ki Sarthakta

  • ‘सूखी डाली’ एकांकी में एक संयुक्त परिवार प्रणाली का चित्रण है। सूखी डाली’ एकांकी में एक संयुक्त परिवार प्रणाली का चित्रण है।
  • दादा जी,के मुखिया हैं, परिवार को एक बरगद के पेड़ के समान मानते हैं जिसका हर सदस्य पेड़ की डाली के समान पेड़ का एक प्रमुख अंग है।
  • दादा जी के भरे-पूरे परिवार के छोटे पोते परेश की पत्नी बेला के आ जाने से परिवार में हलचल मच जाती है। वह एक सुसंस्कृत व सभ्य परिवार की सुशिक्षित लड़की है दूसरे परिवार में स्वयं को समायोजित नहीं कर पा रही है।
  • वह अपने मायके के परिवार को अधिक सुसंस्कृत समझती है जिसके कारण उसकी अपनी ननद से कुछ कहा  – सुनी होती रहती है दादा जी को जब इस बात का पता चलता है तो वे परिवार के सभी सदस्यों को बुलाकर समझाते हैं कि घृणा को घृणा से नहीं बल्कि प्रेम से जीतना चाहिए।
  • दादा जी के समझाने पर परिवार के सभी सदस्य छोटी बहू को बहुत आदर देने लगते हैं जिससे उसे लगता है कि वह अपरिचितों में आ गई है।
  • एक दिन अपनी ननद से पूछने पर जब उसे यह पता चलता है कि दादा जी के कहने पर ही सभी ऐसा कर रहे हैं तो वह समर्पण कर देती है तथा सबके साथ मिलजुल कर काम करने के लिए तैयार हो जाती है।
  • वह इन्दु से कहती हैं, “मैं भी तुम्हारे साथ जाऊँगी, मैं भी तुम्हारे साथ कपड़े धोऊँगी।” जब दादा जी छोटी बहू (बेला) को इन्दु के साथ कपड़े धोते देखते हैं तो उसे बुलाकर कहते हैं-“बेटा! तुम्हारा काम कपड़े धोना नहीं है।
  • इन्दु के भाभी को ‘भाभी जी’ न कहकर केवल ‘भाभी’ शब्द का प्रयोग करने पर दादा जी को बुरा लगता है।
  • वह इन्दु से कहते हैं-“इन्दु, तुझे कितनी बार कहा है कि आदर से……….तब बेला भावावेश में रुँधे हुए कंठ से कहती है – “दादा जी, आप पेड़ से किसी डाली का तथा टूटकर अलग होना पसन्द नहीं करते, पर क्या आप यह चाहेंगे कि पेड़ से लगी-लगी वह डाल सूखकर मुरझा जाए  यह कहकर वह सिसकने लगती है।
  • उसका कहने का आशय है कि जिस प्रकार पेड़ की डाल पेड़ से अलग होकर सूख जाती है इसी प्रकार परिवार से अलग होकर वह भी सूखी डाली की तरह मुरझा सकती है। अत: वह सूखी डाली नहीं बनना चाहती।
  • इस प्रकार एकांकी का शीर्षक सूखी डाली एकदम सार्थक है।

सूखी डाली एकांकी कहानी PDF / सूखी डाली एकांकी का उद्देश्य बताइए

  • प्रस्तुत एकांकी ‘सूखी डाली’ मे संयुक्त परिवार प्रणाली का चित्रण किया गया है। दादा जी के संगठित परिवार में छोटी बहू बेला के आ जाने से जो हलचल मच जाती है, वह प्रथम तो पूरे परिवार के लिए चर्चा का विषय बन जाती है पर दादा जी के समझाने से सब सदस्यों के व्यवहार में परिवर्तन आ जाता है जिसमें व्यंग्य और कृत्रिमता का पुट है।
  • पहले तो बेला का दम-सा घुटता है पर वह सोचती है कि सब मुझे पराई क्यों समझते हैं और अन्त में परिस्थिति से समझौता कर इन्दु के समक्ष आत्मसमर्पण कर देती है।
  • इस एकांकी द्वारा लेखक ने यह दिखाने का प्रयास किया है कि इस एकांकी द्वारा लेखक ने यह दिखाने का प्रयास किया है कि नई बहू जब अपनी ससुराल में आती है तो उसे सारा वातावरण नया लगता है।
  • वह अपनी ससुराल की मायके से तुलना कर बैठती है। यह तुलना ससुराल वालों को बुरी लगनी स्वाभाविक है। यहीं झगड़े का सूत्रपात होता है जो परिवार में असन्तोष का कारण बनता है। अत: ऐसी स्थिति से बचना चाहिए तथा परिवार में स्वयं को ढालने की कोशिश करनी चाहिए।
  • इस एकांकी द्वारा यह दिखाने का प्रयास किया गया है कि परिवार में एक दूसरे पर आक्षेप, ईर्ष्या, द्वेष व कटूक्तियों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। एक दूसरे पर व्यंग्यपूर्ण भाषा के प्रयोग से बचना चाहिए।
  • एकांकी में कौशल से लेखक ने यह भी व्यक्त कर दिया है कि आधुनिक युग में नई पीढ़ी भले ही तानाशाही को ठीक न समझे पर परिवार को एक सूत्र में बाँधे रखने का यही तरीका उपयुक्त होता है, जो चरित्र दादा जी ने निभाया है।
  • एकांकी का अन्त बहुत सुन्दर है। दादा जी चाहते हैं कि जिस प्रकार वटवृक्ष की डालियाँ उसे एक छतनार विशाल वृक्ष का रूप देती हैं उसी प्रकार परिवार का हर सदस्य एक डाली के समान है और वृक्ष की एक भी डाली टूटने से वृक्ष असुन्दर हो जाता है। अत: परिवार के हर सदस्य को मिलजुल कर रहना चाहिए।
  • छोटी बहू को डर है कि वह कहीं परिवार से अलग हो गई तो वृक्ष की टूटी हुई डाल के समान ही सूख न जाए। अत: वह समझौता कर लेती है। लेखक ने परिवार के सदस्यों के मानसिक अन्तर्द्वद्ध को बड़ी सूझबूझ से दर्शाया है।
  • परिवार के सदस्यों में विचारों व स्वभाव में विभिन्नता होते हुए भी एकता की ऐसी डोरी बँधी हुई है कि परिवार सुचारू रूप से चलता रहता है। यही इस एकांकी का उद्देश्य है।
  • लेखक का विचार है कि परिवार की डोर का एक सिरा किसी ऐसे व्यंक्ति के हाथों में होना आवश्यक है जिसका सम्मान पूरा परिवार करता हो, उसकी बात मानता हो, तभी परिवार की कुशलता संभव है। अश्क जी का यह नाटक पश्चिमी तकनीक से प्रभावित है। इसका अन्त दुःखान्त नहीं, सुखान्त है। इसमें प्रभावोत्पादकता है। अश्क जी का यह सामाजिक एकांकी एक सफल रचना है।
  • दादा जी की परिपक्व बुद्धि के परिणामस्वरूप एक घर के कार्य में सहयोग न देने वाली स्त्री भी सहयोग देने लगती है। यहाँ गांधी जी के दर्शन का प्रभाव लेखक पर दिखाई देता है कि कठोरता पर कोमलता’ से विजय प्राप्त की जा सकती है और लेखक अपने उद्देश्य में सफल हुआ है।

सूखी डाली प्रश्न उत्तर PDF / Sukhi Dali नाटक के प्रश्न उत्तर PDF

प्रश्न 1. ‘सूखी डाली’ एकांकी में कैसे परिवार की कहानी का वर्णन है?

उत्तर: ‘सूखी डाली’ एकांकी में एक संयुक्त परिवार की कहानी का वर्णन है।

प्रश्न 2. बेला का मायका किस शहर में था?

उत्तर: लाहौर शहर में।

प्रश्न 3. दादा मूलराज के बड़े पुत्र की मृत्यु कैसे हुई?

उत्तर: दादा मूलराज के बड़े पुत्र की मृत्यु सन् 1914 के महायुद्ध में सरकार की तरफ से लड़ते हुए हुई।

प्रश्न 4. ‘सूखी डाली’ एकांकी में दादा जी ने अपने कुटुंब की तुलना किससे की है?

उत्तर: दादा जी अपने कुटुंब की तुलना बरगद के वृक्ष से की है।

प्रश्न 5. एकांकी के अंत में बेला रूंधे कंठ से क्या कहती है?

उत्तर: एकांकी के अंत में बेला रूंधे कंठ से कहती है कि अब दादा जी पेड़ से किसी डाली का टूटकर अलग होना पसन्द नहीं करते तो वे ये भी नहीं चाहेंगे कि वह डाल पेड़ से लगी-लगी सूख कर मुरझा जाए अर्थात् परिवार का एक सदस्य परिवार से अलग होकर कभी खुश नहीं रह सकता।

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