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दशरथ कृत शनि स्तोत्र | Dashrath Krit Shani Stotra PDF in Sanskrit

दशरथ कृत शनि स्तोत्र | Dashrath Krit Shani Stotra Sanskrit PDF Download

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दशरथ कृत शनि स्तोत्र | Dashrath Krit Shani Stotra PDF Details
दशरथ कृत शनि स्तोत्र | Dashrath Krit Shani Stotra
PDF Name दशरथ कृत शनि स्तोत्र | Dashrath Krit Shani Stotra PDF
No. of Pages 4
PDF Size 0.09 MB
Language Sanskrit
CategoryEnglish
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दशरथ कृत शनि स्तोत्र | Dashrath Krit Shani Stotra Sanskrit

नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप दशरथ कृत शनि स्तोत्र PDF / Dashrath Krit Shani Stotra PDF प्राप्त कर सकते है। ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार शनि का अशुभ प्रभाव हर व्यक्ति पर कभी न कभी जरूर पड़ता है इसीलिए ज्योतिष में शनिदेव को क्रूर ग्रह कहा जाता है क्योंकि शनिदेव के अशुभ प्रभावों से व्यक्ति का जीवन बुरी तरह प्रभावित हो जाता है। कहा जाता है कि नियमित रूप से शनिदेव की पूजा- अर्चना करने से सभी अशुभ प्रभावों से बचा जा सकता है एवं शनि देव की भक्तिभाव से पूजा करने पर उन्हें प्रसन्न किया जा सकता है।

शनि देव को प्रसन्न करने का एक और सबसे आसान उपाय है प्रतिदिन नियमित रूप से दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ या जाप । प्रतिदिन इस दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ करने से शनिदेव अति शीघ्र प्रसन्न होते हैं। धार्मिक कथाओं के अनुसार राजा दशरथ ने शनि देव को प्रसन्न करने के लिए इस स्तोत्र की रचना की थी। इस स्तोत्र का पाठ करने से भगवान शनिदेव राजा दशरथ से शीघ्र ही प्रसन्न हो गए थे।

एक चमत्कारी एवं लाभकारी स्तोत्र माना जाता है। भक्तजनों को श्रद्धापूर्वक शनि स्तुति करनी चाहिए ताकि शनिदेव की कृपा उनपर हमेशा बनी रहे जो भी भक्त शनिदेव का व्रत रखते है उन्हें शनि देव व्रत कथा सुनने के पश्चात ही व्रत खोलना चाहिए। भक्तजनों को शनिवार व्रत पूजा विधि अनुसार करने के बाद शनि आरती  अवश्य करनी चाहिए।

शनि अष्टक का निर्मल भाव से गायन करने से शनिदेव अतिप्रशन्न होते हैं और अपने भक्तों को मन चाहा वर देते हैं। महाकाल शनि मृत्युंजय स्तोत्र  एक बहुत ही शक्तिशाली मंत्र है जो की अकाल मृत्यु जैसी भारी विपदा को भी टालने की क्षमता रखता है।इसी प्रकार अगर आप भी अपने या अपने परिवार के ऊपर भगवान शनिदेव की कृपा चाहते हैं तो अवश्य ही नियमित रूप से प्रतिदिन इस चमत्कारी दशरथ कृत शनि स्तोत्र का भक्तिभाव एवं श्रद्धा से पाठ करें।

दशरथ कृत शनि स्तोत्र | Dashrath Krit Shani Stotra in Sanskrit :

॥ अथ श्री शनैश्चरस्तोत्रम् ॥

श्रीगणेशाय नमः ॥

अस्य श्रीशनैश्चरस्तोत्रस्य । दशरथ ऋषिः ।

शनैश्चरो देवता । त्रिष्टुप् छन्दः ॥

शनैश्चरप्रीत्यर्थ जपे विनियोगः ।

दशरथ उवाच ॥

कोणोऽन्तको रौद्रयमोऽथ बभ्रुः कृष्णः शनिः पिंगलमन्दसौरिः ।

नित्यं स्मृतो यो हरते च पीडां तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥ १॥

सुरासुराः किंपुरुषोरगेन्द्रा गन्धर्वविद्याधरपन्नगाश्च ।

पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥ २॥

नरा नरेन्द्राः पशवो मृगेन्द्रा वन्याश्च ये कीटपतंगभृङ्गाः ।

पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥ ३॥

देशाश्च दुर्गाणि वनानि यत्र सेनानिवेशाः पुरपत्तनानि ।

पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥ ४॥

तिलैर्यवैर्माषगुडान्नदानैर्लोहेन नीलाम्बरदानतो वा ।

प्रीणाति मन्त्रैर्निजवासरे च तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥ ५॥

प्रयागकूले यमुनातटे च सरस्वतीपुण्यजले गुहायाम् ।

यो योगिनां ध्यानगतोऽपि सूक्ष्मस्तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥ ६॥

अन्यप्रदेशात्स्वगृहं प्रविष्टस्तदीयवारे स नरः सुखी स्यात् ।

गृहाद् गतो यो न पुनः प्रयाति तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥ ७॥

स्रष्टा स्वयंभूर्भुवनत्रयस्य त्राता हरीशो हरते पिनाकी ।

एकस्त्रिधा ऋग्यजुःसाममूर्तिस्तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥ ८॥

शन्यष्टकं यः प्रयतः प्रभाते नित्यं सुपुत्रैः पशुबान्धवैश्च ।

पठेत्तु सौख्यं भुवि भोगयुक्तः प्राप्नोति निर्वाणपदं तदन्ते ॥ ९॥

कोणस्थः पिङ्गलो बभ्रुः कृष्णो रौद्रोऽन्तको यमः ।

सौरिः शनैश्चरो मन्दः पिप्पलादेन संस्तुतः ॥ १०॥

एतानि दश नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत् ।

शनैश्चरकृता पीडा न कदाचिद्भविष्यति ॥ ११॥

॥ इति श्रीब्रह्माण्डपुराणे श्रीशनैश्चरस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

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