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दुर्गा सप्तशती पाठ | Durga Saptashati Path PDF in Hindi

दुर्गा सप्तशती पाठ | Durga Saptashati Path Hindi PDF Download

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दुर्गा सप्तशती पाठ | Durga Saptashati Path PDF Details
दुर्गा सप्तशती पाठ | Durga Saptashati Path
PDF Name दुर्गा सप्तशती पाठ | Durga Saptashati Path PDF
No. of Pages 240
PDF Size 0.59 MB
Language Hindi
Categoryहिन्दी | Hindi
Source aranyadevi.com
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दुर्गा सप्तशती पाठ | Durga Saptashati Path Hindi

नमस्कार दोस्तों, आज हम आपके लिए दुर्गा सप्तशती पाठ PDF / Durga Saptashati Path PDF in Hindi लाये हैं। दुर्गा सप्तशती एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण ग्रंथ है। दुर्गा सप्तशती मुख्य रूप से संस्कृत भाषा में लिखा गया था। जो कि सात सौ श्लोकों को एकत्रित करके बनाया गया हैं। इसी के अतिरिक्त दुर्गा सप्तशती संपूर्ण पाठ हिंदी में भी प्रदान किया गया है।

हिन्दू धर्म में इस ग्रंथ को बहुत अधिक शक्तिशाली ग्रंथ माना गया है। इस ग्रंथ में उपलब्ध सभी श्लोक माता दुर्गा को समर्पित हैं। इसीलिए इसे यह दुर्गा देवी उपासना ग्रंथ के नाम से भी जाना जाता है। इसके प्रतिदिन पाठ करने से माँ दुर्गा आपके सारे दुखों को दूर करके आपके जीवन को सुख और समृद्धि से भर देती हैं। यह सप्तशती पाठ माँ दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए उनके भक्तों द्वारा किया जाता है।

दुर्गा सप्तशती पाठ PDF / Durga Saptashati Path in Hindi PDF

मार्कण्डेय उवाच

ॐ यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम्‌।
यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह॥1॥

ब्रह्मोवाच

अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम्‌।
देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व महामुने॥2॥

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्‌॥3॥

पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्‌॥4॥

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना॥5॥

अग्निता दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे।
विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः॥6॥

न तेषा जायते किंचिदशुभं रणसंकटे।
नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न हि॥7॥

यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषां वृद्धि प्रजायते।
ये त्वां स्मरन्ति देवेशि रक्षसे तान्न संशयः॥8॥

प्रेतसंस्था तु चामुण्डा वाराही महिषासना।
ऐन्द्री गजसमानरूढा वैष्णवी गरुडासना॥9॥

माहेश्वरी वृषारूढा कौमारी शिखिवाहना।
लक्ष्मीः पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया॥10॥

श्वेतरूपधरा देवी ईश्वरी वृषवाहना।
ब्राह्मी हंससमारूढा सर्वाभरणभूषिता॥11॥

इत्येता मातरः सर्वाः सर्वयोगसमन्विताः।
नानाभरणशोभाढ्या नानारत्नोपशोभिताः॥12॥

दृश्यन्ते रथमारूढा देव्यः क्रोधसमाकुलाः।
शंख चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलायुधम्‌॥13॥

खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च।
कुन्तायुधं त्रिशूलं च शांर्गमायुधमुत्तमम्‌॥14॥

दैत्यानां देहनाशाय भक्तानामभयाय च।
धारयन्त्यायुधानीत्थं देवानां च हिताय वस॥15॥

नमस्तेऽस्तु महारौद्रे महाघोरपराक्रमे।
महावले महोत्साहे महाभयविनाशिनि॥16॥

त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये शत्रूणां भयवर्धिन।
प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्री आग्नेय्यामग्निदेवता॥17॥

दक्षिणेऽवतु वाराहीनैर्ऋत्यां खड्गधारिणी।
प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद् वायव्यां मृगवाहिनी॥18॥

उदीच्यां पातु कौमारी ऐशान्यां शूलधारिणी।
ऊर्ध्वं ब्रह्माणि मे रक्षेद्धस्ताद् वैष्णवी तथा ॥19॥

एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहना।
जया में चाग्रतः पातु विजया पातु पृष्ठतः॥20॥

अजिता वामपार्श्वे तु दक्षिणे चापराजिता।
शिखामुद्योतिनी रक्षेदुमा मूर्ध्नि व्यवस्थिता॥21॥

मालाधारी ललाटे च भ्रुवौ रक्षेद् यशस्विनी।
त्रिनेत्रा च भ्रुवोर्मध्ये यमघण्टा च नासिके॥22॥

शंखिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्द्वारवासिनी।
कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले च शांकरी॥23॥

नासिकायां सुगन्दा च उत्तरोष्ठे च चर्चिका।
अधरे चामृतकला जिह्वायां च सरस्वती॥24॥

दन्तान्‌ रक्षतु कौमारी कण्ठदेशे तु चण्डिका।
घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके॥25॥

कामाक्षी चिबुकं रक्षेद् वाचं मे सर्वमंगला।
ग्रीवायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे धनुर्धरी॥26॥

नीलग्रीवा बहिःकण्ठे नलिकां नलकूबरी।
स्कन्धयोः खड्गिनी रक्षेद् बाहू में व्रजधारिणी॥27॥

हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चांगुलीषु च।
नखांछूलेश्वरी रक्षेत्कुक्षौ रक्षेत्कुलेश्वरी॥28॥।

स्तनौ रक्षेन्महादेवी मनः शोकविनाशिनी।
हृदये ललिता देवी उदरे शूलधारिणी॥29॥

नाभौ च कामिनी रक्षेद् गुह्यं गुह्येश्वरी तथा।
पूतना कामिका मेढ्रं गुदे महिषवाहिनी॥30॥

कट्यां भगवती रक्षेज्जानुनी विन्ध्यवासिनी।
जंघे महाबला रक्षेत्सर्वकामप्रदायिनी॥31॥

गुल्फयोर्नारसिंही च पादपृष्ठे तु तैजसी।
पादांगुलीषु श्री रक्षेत्पादाधस्तलवासिनी॥32॥

नखान्‌ दंष्ट्राकराली च केशांश्चैवोर्ध्वकेशिनी।
रोमकूपेषु कौबेरी त्वचं वागीश्वरी तथा॥33॥

रक्तमज्जावसामांसान्यस्थिमेदांसि पार्वती।
अन्त्राणि कालरात्रिश्च पित्तं च मुकुटेश्वरी॥34॥

पद्मावती पद्मकोशे कफे चूडामणिस्तथा।
ज्वालामुखी नखज्वालामभेद्या सर्वसंधिषु॥35॥

शुक्रं ब्रह्माणि मे रक्षेच्छायां छत्रेश्वरी तथा।
अहंकारं मनो बुद्धिं रक्षेन्मे धर्मधारिणी॥36॥

प्राणापानौ तथा व्यानमुदानं च समानकम्‌।
वज्रहस्ता च मे रक्षेत्प्राणं कल्याणशोभना॥37॥

रसे रूपे च गन्धे च शब्दे स्पर्शे च योगिनी।
सत्त्वं रजस्तमश्चैव रक्षेन्नारायणी सदा॥38॥

आयू रक्षतु वाराही धर्मं रक्षतु वैष्णवी।
यशः कीर्तिं च लक्ष्मीं च धनं विद्यां च चक्रिणी॥39॥

गोत्रमिन्द्राणि मे रक्षेत्पशून्मे रक्ष चण्डिके।
पुत्रान्‌ रक्षेन्महालक्ष्मीर्भार्यां रक्षतु भैरवी॥40॥

पन्थानं सुपथा रक्षेन्मार्गं क्षेमकरी तथा।
राजद्वारे महालक्ष्मीर्विजया सर्वतः स्थिता॥41॥

रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु।
तत्सर्वं रक्ष मे देवि जयन्ती पापनाशिनी॥42॥

पदमेकं न गच्छेतु यदीच्छेच्छुभमात्मनः।
कवचेनावृतो नित्यं यत्र यत्रैव गच्छति॥43॥

तत्र तत्रार्थलाभश्च विजयः सार्वकामिकः।
यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितम्‌।
परमैश्वर्यमतुलं प्राप्स्यते भूतले पुमान्‌॥44॥

निर्भयो जायते मर्त्यः संग्रामेष्वपराजितः।
त्रैलोक्ये तु भवेत्पूज्यः कवचेनावृतः पुमान्‌॥45॥

इदं तु देव्याः कवचं देवानामपि दुर्लभम्‌।
यः पठेत्प्रयतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितः॥46॥

दैवी कला भवेत्तस्य त्रैलोक्येष्वपराजितः।
जीवेद् वर्षशतं साग्रमपमृत्युविवर्जितः॥47॥

नश्यन्ति व्याधयः सर्वे लूताविस्फोटकादयः।
स्थावरं जंगमं चैव कृत्रिमं चापि यद्विषम्‌॥48॥

अभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भूतले।
भूचराः खेचराश्चैव जलजाश्चोपदेशिकाः॥49॥

सहजा कुलजा माला डाकिनी शाकिनी तथा।
अन्तरिक्षचरा घोरा डाकिन्यश्च महाबलाः॥50॥

ग्रहभूतपिशाचाश्च यक्षगन्धर्वराक्षसाः।
ब्रह्मराक्षसवेतालाः कूष्माण्डा भैरवादयः॥51॥

नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते।
मानोन्नतिर्भवेद् राज्ञस्तेजोवृद्धिकरं परम्‌॥52॥

यशसा वर्धते सोऽपि कीर्तिमण्डितभूतले।
जपेत्सप्तशतीं चण्डीं कृत्वा तु कवचं पुरा॥53॥

यावद्भूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम्‌।
तावत्तिष्ठति मेदिन्यां संततिः पुत्रपौत्रिकी॥54॥

देहान्ते परमं स्थानं यत्सुरैरपि दुर्लभम्‌।
प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महामायाप्रसादतः॥55॥

लभते परमं रूपं शिवेन सह मोदते॥ॐ॥56॥

 

श्री दुर्गा सप्तशती पाठ विधि / Durga Saptashati Path Vidhi in Hindi PDF

1. दुर्गा सप्तशती का पाठ शुरू करने से पहले प्रथम पूज्य गणेश की पूजा करनी चाहिए। यदि घर में कलश स्थापन किया गया है तो पहले कलश का पूजन, फिर नवग्रह की पूजा और फिर अखंड दीप का पूजन करना चाहिए।

दुर्गा सप्तशती पाठ से पहले दुर्गा सप्तशती की किताब को लाल रंग के शुद्ध आसन पर रखें। फिर इसका विधि-विधान पूर्वक अक्षत, चंदन और फूल से पूजन करें। इसके बाद पूरब दिशा की ओर मुंह करके अपने माथे पर अक्षत और चंदन लगाकर चार बार आचमन करें।

2. दुर्गा शप्तशती के पाठ में अर्गला, कीलक स्तोत्र और कवच का पाठ करने से पहले शापोद्धार का पाठ करना आवश्यक माना गया है। दुर्गा सप्तशती के सभी मंत्र ऋषि ब्रह्मा, वशिष्ठ और विश्वामित्र के द्वारा शापित किए हैं। इसलिए शापोद्धार के बिना सप्तशती पाठ का समुचित फल प्राप्त नहीं होता।

3. अगर एक दिन में दुर्गा सप्तशती का संपूर्ण पाठ नहीं संभव हो पाए तो ऐसे में पहले दिन केवल मध्यम चरित्र का पाठ करना चाहिए। फिर अगले दिन बचे हुए दो चरित्रों का पाठ करना चाहिए। इसके अलावा दूसरा तरीका ये है कि पहले दिन प्रथम अध्याय का एक पाठ, दूसरे दिन द्विती अध्याय का दो आवृति पाठ और तृतीय अध्याय का पाठ, तीसरे दिन चौथे अध्याय का एक आवृति पाठ, चौथे दिन पंचम, षष्ठ, सप्तम और अष्टम अध्याय का पाठ, पांचवें दिन नवम और दशम अध्याय का पाठ, छठे दिन ग्यारहवां अध्याय का पाठ, सातवें दिन 12वें और 13वें अध्याय का पाठ। इसके बाद एक आवृति पाठ दुर्गा सप्तशती की करनी चाहिए।

4. दुर्गा सप्तशती में श्रीदेव्यथर्वशीर्षम स्रोत का रोजाना पाठ करने से वाक सिद्धि और मृत्यु पर विजय प्राप्ति का आशीर्वाद प्राप्त होता है। लेकिन इसे विधिवत करना चाहिए।

5. दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से पहले और बाद में नवारण मंत्र “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाये विच्चे” का पाठ करना आवश्यक माना गया है। इस मंत्र में सरस्वती, लक्ष्मी और काली के बीज मंत्र का संग्रह है।

6. अगर दुर्गा सप्तशती का संस्कृत में पाठ करना कठिन लग रहा है तो ऐसे में हिन्दी में भी सप्तशती का पाठ किया जा सकता है। हिंदी में पाठ करने से दुर्गा सप्तशती का अर्थ आसानी से समझ में आता है।

7. दुर्गा सप्तशती का पाठ करते वक्त यह ध्यान रखना चाहिए कि मंत्रों का उच्चारण स्पष्ट हो। कहते हैं कि शारदीय नवरात्रि में देवी दुर्गा अपने उग्र स्वरूप में होती हैं। इसलिए विनम्रता से देवी की आराधना करें। पाठ के बाद कन्या पूजन करना आवश्यक माना गया है।

8. दुर्गा सप्तशती पाठ के बाद क्षमापन स्तोत्र का पाठ अवश्य करना चाहिए ताकि नवरात्रि में हुए किसी भी प्रकार के अपराध से छुटकारा मिल जाए।

9. दुर्गा सप्तशती के प्रथम, मध्यम और उत्तर चरित्र के पाठ से समस्त मनोकामना पूरी होती है। साथ ही दुर्गा सप्तशती के उत्तर, प्रथम और मध्यम चरित्र के पाठ से शत्रु का नाश होता है और लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।

10. देवी पुराण में सुबह में पूजन और इसी समय में विसर्जन करना शुभ बताया गया है। इसलिए इस समय का खास ख्याल रखना चाहिए। नवरात्रि में जो भक्त नियमित पाठ करते हैं उन्हें नवमी तिथि को कन्या पूजन अवश्य करना चाहिए।

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