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गणेश चतुर्थी व्रत कथा | Ganesh Chaturthi Vrat Katha PDF in Hindi

गणेश चतुर्थी व्रत कथा | Ganesh Chaturthi Vrat Katha Hindi PDF Download

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गणेश चतुर्थी व्रत कथा | Ganesh Chaturthi Vrat Katha PDF Details
गणेश चतुर्थी व्रत कथा | Ganesh Chaturthi Vrat Katha
PDF Name गणेश चतुर्थी व्रत कथा | Ganesh Chaturthi Vrat Katha PDF
No. of Pages 72
PDF Size 4.90 MB
Language Hindi
Categoryहिन्दी | Hindi
Source ia902809.us.archive.org
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गणेश चतुर्थी व्रत कथा | Ganesh Chaturthi Vrat Katha Hindi

नमस्कार मित्रों, आज हम आपके लिए गणेश चतुर्थी व्रत कथा PDF / Ganesh Chaturthi Vrat Katha PDF in Hindi लाए हैं। हिन्दू धर्म में श्री गणेश को सबसे महान और सबसे महत्वपूर्ण देवताओ में से एक माना जाता हैं। यही कारण हैं कि उनका जन्मदिन जो कि भाद्रपद के महीने में आता हैं, बड़े उत्साह और खुशी के साथ मनाया जाता हैं।

गणेश चतुर्थी के शुभ अवसर पर लोग अपने घरो कि सफाई करते हैं, घरो में रंगोलियां बनाते हैं,घरो और मंदिरो को फूलो और रंग बिरंगी रोशनी से सजाते हैं साथ ही साथ कई सारी मिठाइयाँ भी बनाते हैं। जिनमे से मोदक और लड्डू गणेश जी को सबसे ज्यादा प्रिय हैं।

गणेश चतुर्थी भारत का एक सुप्रसिद्ध त्योहार हैं इसीलिए गणेश जी के अनेकों भक्त गणेश जी के जन्मदिन पर उपवास रखते हैं, और उनकी पूजा अर्चना करते हैं तथा गणेश चतुर्थी व्रत कथा का पाठ करते हैं। जिससे उनके और उनके परिवार पर गणेश जी की कृपा बनी रहे। गणेश जी कि व्रत कथा नीचे उल्लेखित हैं।

गणेश चतुर्थी व्रत कथा PDF / Ganesh Chaturthi Vrat Katha in Hindi PDF

एक बार महादेवजी पार्वती सहित नर्मदा के तट पर गए। वहाँ एक सुंदर स्थान पर पार्वतीजी ने महादेवजी के साथ चौपड़ खेलने की इच्छा व्यक्त की। तब शिवजी ने कहा- हमारी हार-जीत का साक्षी कौन होगा? पार्वती ने तत्काल वहाँ की घास के तिनके बटोरकर एक पुतला बनाया और उसमें प्राण-प्रतिष्ठा करके उससे कहा- बेटा! हम चौपड़ खेलना चाहते हैं, किन्तु यहाँ हार-जीत का साक्षी कोई नहीं है। अतः खेल के अन्त में तुम हमारी हार-जीत के साक्षी होकर बताना कि हममें से कौन जीता, कौन हारा?

खेल आरंभ हुआ। दैवयोग से तीनों बार पार्वतीजी ही जीतीं। जब अंत में बालक से हार-जीत का निर्णय कराया गया तो उसने महादेवजी को विजयी बताया। परिणामतः पार्वतीजी ने क्रुद्ध होकर उसे एक पाँव से लंगड़ा होने और वहाँ के कीचड़ में पड़ा रहकर दुःख भोगने का श्राप दे दिया।

बालक ने विनम्रतापूर्वक कहा- माँ! मुझसे अज्ञानवश ऐसा हो गया है। मैंने किसी कुटिलता या द्वेष के कारण ऐसा नहीं किया। मुझे क्षमा करें तथा श्राप से मुक्ति का उपाय बताएँ। तब ममतारूपी माँ को उस पर दया आ गई और वे बोलीं- यहाँ नाग-कन्याएँ गणेश-पूजन करने आएँगी। उनके उपदेश से तुम गणेश व्रत करके मुझे प्राप्त करोगे। इतना कहकर वे कैलाश पर्वत चली गईं।

एक वर्ष बाद वहाँ श्रावण में नाग-कन्याएँ गणेश पूजन के लिए आईं। नाग-कन्याओं ने गणेश व्रत करके उस बालक को भी व्रत की विधि बताई। तत्पश्चात बालक ने 12 दिन तक श्रीगणेशजी का व्रत किया। तब गणेशजी ने उसे दर्शन देकर कहा- मैं तुम्हारे व्रत से प्रसन्न हूँ। मनोवांछित वर माँगो।

बालक बोला- भगवन! मेरे पाँव में इतनी शक्ति दे दो कि मैं कैलाश पर्वत पर अपने माता-पिता के पास पहुँच सकूं और वे मुझ पर प्रसन्न हो जाएँ। गणेशजी ‘तथास्तु’ कहकर अंतर्धान हो गए। बालक भगवान शिव के चरणों में पहुँच गया। शिवजी ने उससे वहाँ तक पहुँचने के साधन के बारे में पूछा।

तब बालक ने सारी कथा शिवजी को सुना दी। उधर उसी दिन से अप्रसन्न होकर पार्वती शिवजी से भी विमुख हो गई थीं। तदुपरांत भगवान शंकर ने भी बालक की तरह 21 दिन पर्यन्त श्रीगणेश का व्रत किया, जिसके प्रभाव से पार्वती के मन में स्वयं महादेवजी से मिलने की इच्छा जाग्रत हुई। वे शीघ्र ही कैलाश पर्वत पर आ पहुँची।

वहाँ पहुँचकर पार्वतीजी ने शिवजी से पूछा- भगवन! आपने ऐसा कौन-सा उपाय किया जिसके फलस्वरूप मैं आपके पास भागी-भागी आ गई हूँ। शिवजी ने ‘गणेश व्रत’ का इतिहास उनसे कह दिया। तब पार्वतीजी ने अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा से 21 दिन पर्यन्त 21-21 की संख्या में दूर्वा, पुष्प तथा लड्डुओं से गणेशजी का पूजन किया।

21वें दिन कार्तिकेय स्वयं ही पार्वतीजी से आ मिले। उन्होंने भी माँ के मुख से इस व्रत का माहात्म्य सुनकर व्रत किया।

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