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Indira Ekadashi Vrat PDF in Hindi

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Indira Ekadashi Vrat PDF Details
Indira Ekadashi Vrat
PDF Name Indira Ekadashi Vrat PDF
No. of Pages 3
PDF Size 0.31 MB
Language Hindi
Categoryहिन्दी | Hindi
Source pdfsource.org
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Indira Ekadashi Vrat Hindi

नमस्कार पाठकों, आज हम आपके लिए Indira Ekadashi Vrat PDF / इंदिरा एकादशी व्रत PDF लेकर आए हैं। इंदिरा एकादशी भगवान विष्णु के भक्तों द्वारा मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण व्रत है। यह व्रत आषाढ़ माह (जून-जुलाई) में शुक्ल पक्ष की शुक्ल पक्ष की 11वीं तिथि को मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से जन्म और मृत्यु के चक्र से मोक्ष या मुक्ति प्राप्त करने में मदद मिलती है।
भक्त इस दिन व्रत रखते हैं और पूरी रात जागरण करते हैं। वे विष्णु सहस्रनाम और अन्य पवित्र पुस्तकों का पाठ करते हैं। इस दिन भगवान विष्णु की बहुत भक्ति और पवित्रता के साथ पूजा की जाती है।
ऐसा माना जाता है कि इंदिरा एकादशी व्रत का पालन करने से सर्वांगीण समृद्धि और मन की शांति प्राप्त करने में मदद मिलती है। इसे सेहत के लिए भी काफी फायदेमंद माना जाता है। तो आइए हम सभी इस व्रत को पूरी श्रद्धा के साथ करें और इसके लाभ प्राप्त करें।

Indira Ekadashi Vrat PDF / इंदिरा एकादशी व्रत PDF

धर्मराज युधिधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान! आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है? इसकी विधि तथा फल क्या है? कृपा करके बताइए। भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि इस एकादशी का नाम इंदिरा एकादशी है। यह एकादशी पापों को नष्ट करनेवाली तथा पितरों को अधोगति से मुक्ति देनेवाली एकादशी है। हे राजन! ध्यानपुर्वक इसकी कथा सुनो। इसके सुनने मात्र से ही वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है।

प्राचीनकाल में सतयुग के समय में महिष्मति नाम की एक नगरी में इंद्रसेन नाम का एक प्रतापी राजा धर्मपुर्वक अपनी प्रजा का पालन करते हुए शासन करता था। वह राजा पुत्र, पौत्र और धन आदि से सपंन्न और विष्णु का परम भक्त था। एक दिन जब राजा सुखपूर्वक अपनी सभा में बठैा हुआ था तब आकाश मार्ग सेमहर्षि नारद उतरकर उनकी सभा में आए। राजा उन्हें देखते ही हाथ जोड़कर खड़ा हो गया और विधि पूर्वक आसन व अर्घ्य दिया।

आसन पर बठै कर नारद मुनि ने राजा से पूछा कि हे राजन! आपके सातों अगं कुशलपूर्वक तो हैं? तुम्हारी बुद्धि धर्म में और तुम्हारी मन विष्णु भक्ति में तो रहता है? देवर्षि नारद की ऐसी बातें सुन कर राजा ने कहा- हे महर्षि  आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल मगंल है तथा मेरे यहाँ यज्ञ कर्म आदि सुकृत हो रहे हैं। आप कृपा करके अपने आगमन का कारण बताइए। तब महर्षि नारद कहने लगे कि हे राजन! आप आश्चर्य देनेवाले मेरे वचनों को सुनो।

मैं एक समय ब्रह्मलोक से यमलोक को गया, वहाँ श्रद्धापूर्वक यमराज से पूजित होकर मेनैं धर्मशील और सत्यवान धर्मराज की प्रशसा की। उसी यमराज की सभा में महान ज्ञानी और धर्मात्मा तुम्हारे पिता को एकादशी का व्रत भगं होने के कारण देखा। उन्होंने जो मुझे संदेशा दिया वो मैं तुम्हें बताता हूँ। उन्होंने कहा कि पूर्वजन्म में कोई विघ्न हो जाने के कारण मैं यमराज के निकट रह रहा हूँ, सो हे पत्रु यदि तुम आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की इंदिरा एकादशी का व्रत मेरे निमित्त करो तो मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है।

नारद जी कहने लगे कि हे राजन! इस विधि को यदि तुम आलस्य रहित होकर इस एकादशी का व्रत करोगे तो तुम्हारे पिता अवश्य ही स्वर्गलोक को जाएँगे। इतना कहकर नारदजी अतंर्ध्यान हो गए।

नारदजी के कथनानुसार राजा के द्वारा अपने बधु बाँधवों तथा दास दासियों सहित व्रत करने से आकाश से पुष्पवर्षा हुई और उस राजा का पिता गरुड़ पर चढ़कर वि ष्णुलोक को गया। राजा इंद्रसेन भी एकादशी के व्रत के प्रभाव से निष्कंटक राज्य करके अतं में अपने पुत्र को सिहासन पर बैठाकर स्वर्गलोक को चले गए।

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