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रक्षाबंधन पर निबंध | Raksha Bandhan Essay PDF in Hindi

रक्षाबंधन पर निबंध | Raksha Bandhan Essay Hindi PDF Download

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रक्षाबंधन पर निबंध | Raksha Bandhan Essay PDF Details
रक्षाबंधन पर निबंध | Raksha Bandhan Essay
PDF Name रक्षाबंधन पर निबंध | Raksha Bandhan Essay PDF
No. of Pages 6
PDF Size 1.05 MB
Language Hindi
Categoryहिन्दी | Hindi
Source pdffile.co.in
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रक्षाबंधन पर निबंध | Raksha Bandhan Essay Hindi

प्रिय पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप रक्षाबंधन पर निबंध PDF / Raksha Bandhan Essay in Hindi PDF प्राप्त कर सकते हैं।  रक्षाबंधन हिंदुओं के सबसे प्रमुख और प्रसिद्ध त्योहारों में से एक माना जाता है। रक्षाबंधन के पर्व पर अनेकों स्कूलों में रक्षाबंधन के विषय पर विद्यार्थियों द्वारा रक्षाबंधन पर निबंध लिखवाया जाता है, जो कि एक अत्यंत ही रोचक कार्य है।

आपने भी अपने विद्यार्थी जीवन में कभी न कभी इस विषय पर निबंध लिखा होगा अथवा आपसे परीक्षा में निबंध लिखने को कहा गया होगा। इसीलिए यदि आप एक विद्यार्थी हैं और एक अच्छा निबंध रक्षाबंधन के अवसर पर लिखना चाहते हैं तो इस लेख के माध्यम से पीडीएफ़ प्रारूप में आसानी से प्राप्त कर सकते हैं जो कि आपके लिए अत्यंत लाभकारी होगा।

रक्षाबंधन पर निबंध PDF / Raksha Bandhan Essay in Hindi PDF

रक्षा बंधन का त्योहार भारतीय त्योहारों में से एक प्राचीन त्योहार है। रक्षा-बंधन यानि – रक्षा का बंधन, एक ऐसा रक्षा सूत्र जो भाई को सभी संकटों से दूर रखता है। यह त्योहार भाई-बहन के बीच स्नेह और पवित्र रिश्ते का प्रतिक है। रक्षाबंधन एक सामाजिक, पौराणिक, धार्मिक और ऐतिहासिक भावना के धागे से बना एक ऐसा पावन बंधन है, जिसे रक्षाबंधन के नाम से केवल भारत में ही नहीं बल्कि नेपाल और मॉरेशिस में भी बहुत धूम-धाम से मनाया जाता है।

राखी के त्योहार को हम संपूर्ण भारतवर्ष में सदियों से मनाते चले आ रहे हैं। आजकल इस त्योहार पर बहनें अपने भाई के घर राखी और मिठाइयाँ ले जाती हैं। भाई राखी बाँधने के पश्चात् अपनी बहन को दक्षिणा स्वरूप रुपए देते हैं या कुछ उपहार देते हैं।

रक्षा-बंधन कब मनाया जाता है

रक्षाबन्धन एक हिन्दू व जैन त्योहार है, जो प्रतिवर्ष श्रावण मास (जुलाई-अगस्त) की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। श्रावण (सावन) में मनाये जाने के कारण इसे श्रावणी (सावनी) या सलूनो भी कहते हैं। रक्षाबंधन पर बहनें भाइयों की दाहिनी कलाई एक पवित्र धागा यानि राखी बाँधती है और उनके अच्छे स्वास्थ्य और लम्बे जीवन की कामना करती है। वहीं दूसरी तरफ भाइयों द्वारा अपनी बहनों की हर हाल में रक्षा करने का संकल्प लिया जाता है। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, तथा सोने या चाँदी जैसी मँहगी वस्तु तक की हो सकती है।

हालांकि रक्षाबंधन की व्यापकता इससे भी कहीं ज्यादा है। राखी बांधना सिर्फ भाई-बहन के बीच का कार्यकलाप नहीं रह गया है। राखी देश की रक्षा, पर्यावरण की रक्षा, हितों की रक्षा आदि के लिए भी बांधी जाने लगी है।

भाई-बहन के प्यार का प्रतीक

वैसे तो भाई-बहन का रिश्ता बहुत खास होता है, जिस तरह से वह एक-दूसरे की चिंता करते है, उसकी कोई तुलना नहीं की जा सकती है। भाई-बहन के बीच का रिश्ता अतुलनीय है, वे चाहे छोटी-छोटी बातों पर एक-दूसरे से कितना भी लड़ाई-झगड़ा करें, लेकिन फिर भी वह एक-दूसरे के लिए कुछ भी करने से पीछे नहीं हटते। जैसे-जैसे वह बड़े होते जाते हैं जीवन के विभिन्न समयों पर यह रिश्ता और भी ज्यादा मजबूत होता जाता है।

बड़े भाई अपनी बहनों की सुरक्षा के लिए हमेशा तैयार रहते हैं, इसी तरह बड़ी बहनों द्वारा भी अपने छोटे भाइयों का मार्गदर्शन किया जाता है। भाई-बहन के इसी प्रेम के कारण यह विशेष पर्व मानाया जाता है, रक्षा बंधन का त्योहार हर भाई-बहन के लिए बहुत खास होता है। यह उनका एक-दूसरे के प्रति आपसी स्नेह, एकजुटता और विश्वास का प्रतीक है।

रक्षा-बंधन की तैयारियाँ

प्रातः स्नानादि करके लड़कियाँ और महिलाएँ पूजा की थाली सजाती हैं। थाली में राखी के साथ रोली या हल्दी, चावल, दीपक, मिठाई, फूल और कुछ पैसे भी होते हैं। लड़के और पुरुष तैयार होकर टीका करवाने के लिये पूजा या किसी उपयुक्त स्थान पर बैठते हैं। पहले अभीष्ट देवता की पूजा की जाती है, इसके बाद रोली या हल्दी से भाई का टीका करके चावल को टीके पर लगाया जाता है और सिर पर फूलों को छिड़का जाता है, उसकी आरती उतारी जाती है और दाहिनी कलाई पर राखी बाँधी जाती है।

भाई बहन को उपहार या धन देता है। इस प्रकार रक्षाबन्धन के अनुष्ठान को पूरा करने के बाद ही भोजन किया जाता है। प्रत्येक पर्व की तरह उपहारों और खाने-पीने के विशेष पकवानों का महत्त्व रक्षाबन्धन में भी होता है। आमतौर पर दोपहर का भोजन महत्त्वपूर्ण होता है और रक्षाबन्धन का अनुष्ठान पूरा होने तक बहनों द्वारा व्रत रखने की भी परम्परा है।

यह पर्व भारतीय समाज में इतनी व्यापकता और गहराई से समाया हुआ है कि इसका सामाजिक महत्त्व तो है ही, धर्म, पुराण, इतिहास, साहित्य और फ़िल्में भी इससे अछूते नहीं हैं।

रक्षा-बंधन का महत्त्व

रक्षाबन्धन के दिन राखी बाँधने की बहुत पुरानी परम्परा है। रक्षाबंधन एक रक्षा का रिश्ता होता है जहाँ पर सभी बहन और भाई एक दूसरे के प्रति प्रेम और कर्तव्य का पालन, रक्षा का दायित्व लेते हैं और ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ रक्षाबंधन का उत्सव मनाते हैं। जैन धर्म में भी राखी का बहुत महत्व होता है।

यह बात जरूरी नहीं होती कि जिनको बहनें राखी बाँधे वे उनके सगे भाई हो, लडकियाँ सभी को राखी बाँध सकती हैं और सभी उनके भाई बन जाते हैं। इस दिन बहन भाई के लिए मंगल कामना करती हुई उसे राखी बाँधती है। भाई उसे हर स्थिति में रक्षा करने का वचन देता है। इस प्रकार रक्षा बंधन भाई बहन के पावन स्नेह का त्योहार है।

रक्षा-बंधन का पौराणिक प्रसंग

राखी का त्योहार कब शुरू हुआ यह कोई नहीं जानता। लेकिन भविष्य पुराण में वर्णन मिलता है कि देव और दानवों में जब युद्ध शुरू हुआ तब दानव हावी होते नज़र आने लगे। भगवान इन्द्र घबरा कर बृहस्पति के पास गये। वहां बैठी इन्द्र की पत्नी इंद्राणी सब सुन रही थी। उन्होंने रेशम का धागा मन्त्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के हाथ पर बाँध दिया। संयोग से वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। लोगों का विश्वास है कि इन्द्र इस लड़ाई में इसी धागे की मन्त्र शक्ति से ही विजयी हुए थे।

उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बाँधने की प्रथा चली आ रही है। यह धागा धन, शक्ति, हर्ष और विजय देने में पूरी तरह समर्थ माना जाता है।

इतिहास में श्री कृष्ण और द्रौपदी की कहानी प्रसिद्ध है, जिसमें जब कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया तब उनकी तर्जनी में चोट आ गई। द्रौपदी ने उस समय अपनी साड़ी फाड़कर उनकी उँगली पर पट्टी बाँध दी, और इस उपकार के बदले श्री कृष्ण ने द्रौपदी को किसी भी संकट में द्रौपदी की सहायता करने का वचन दिया था और उसी के चलते कृष्ण ने इस उपकार का बदला बाद में चीरहरण के समय उनकी साड़ी को बढ़ाकर चुकाया।

कहते हैं परस्पर एक दूसरे की रक्षा और सहयोग की भावना रक्षाबन्धन के पर्व में यहीं से प्रारम्भ हुई।

रक्षा बंधन का इतिहास PDF

राजपूत जब लड़ाई पर जाते थे तब महिलाएँ उनको माथे पर कुमकुम तिलक लगाने के साथ-साथ हाथ में रेशमी धागा भी बाँधती थी। इस विश्वास के साथ कि यह धागा उन्हें विजयश्री के साथ वापस ले आयेगा। राखी के साथ एक और प्रसिद्ध कहानी जुड़ी हुई है।

कहते हैं, मेवाड़ की रानी कर्मावती को बहादुरशाह द्वारा मेवाड़ पर हमला करने की पूर्व सूचना मिली। रानी लड़ऩे में असमर्थ थी अत: उसने मुगल बादशाह हुमायूँ को राखी भेज कर रक्षा की याचना की। हुमायूँ ने मुसलमान होते हुए भी राखी की लाज रखी और मेवाड़ पहुँच कर बहादुरशाह के विरूद्ध मेवाड़ की ओर से लड़ते हुए कर्मावती व उसके राज्य की रक्षा की।

एक अन्य प्रसंगानुसार सिकन्दर की पत्नी ने अपने पति के हिन्दू शत्रु पुरूवास (पोरस) को राखी बाँधकर अपना मुँहबोला भाई बनाया और युद्ध के समय सिकन्दर को न मारने का वचन लिया। पुरूवास ने युद्ध के दौरान हाथ में बँधी राखी और अपनी बहन को दिये हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकन्दर को जीवन-दान दिया।

महाभारत में भी इस बात का उल्लेख है कि जब ज्येष्ठ पाण्डव युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूँ तब भगवान कृष्ण ने उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा के लिये राखी का त्योहार मनाने की सलाह दी थी। उनका कहना था कि राखी के इस रेशमी धागे में वह शक्ति है जिससे आप हर आपत्ति से मुक्ति पा सकते हैं। इस समय द्रौपदी द्वारा कृष्ण को तथा कुन्ती द्वारा अभिमन्यु को राखी बाँधने के कई उल्लेख मिलते हैं।

रक्षा-बंधन का साहित्यिक प्रसंग

अनेक साहित्यिक ग्रन्थ ऐसे हैं जिनमें रक्षाबन्धन के पर्व का विस्तृत वर्णन मिलता है। इनमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण है हरिकृष्ण प्रेमी का ऐतिहासिक नाटक रक्षाबन्धन जिसका 1991 में 18वाँ संस्करण प्रकाशित हो चुका है। मराठी में शिन्दे साम्राज्य के विषय में लिखते हुए रामराव सुभानराव बर्गे ने भी एक नाटक की रचना की जिसका शीर्षक है राखी ऊर्फ रक्षाबन्धन।

पचास और साठ के दशक में रक्षाबन्धन हिंदी फ़िल्मों का लोकप्रिय विषय बना रहा। ना सिर्फ़ ‘राखी’ नाम से बल्कि ‘रक्षाबन्धन’ नाम से भी कई फ़िल्में बनायीं गयीं। ‘राखी’ नाम से दो बार फ़िल्म बनी, एक बार सन 1949 में, दूसरी बार सन 1962 में, सन 62 में आई फ़िल्‍म को ए. भीमसिंह ने बनाया था, कलाकार थे अशोक कुमार, वहीदा रहमान, प्रदीप कुमार और अमिता। इस फ़िल्म में राजेंद्र कृष्‍ण ने शीर्षक गीत लिखा था- “राखी धागों का त्‍यौहार”।

सन 1972 में एस.एम.सागर ने फ़िल्म बनायी थी ‘राखी और हथकड़ी’ इसमें आर.डी.बर्मन का संगीत था। सन 1976 में राधाकान्त शर्मा ने फ़िल्म बनाई ‘राखी और राइफल’। दारा सिंह के अभिनय वाली यह एक मसाला फ़िल्म थी। इसी तरह से सन 1976 में ही शान्तिलाल सोनी ने सचिन और सारिका को लेकर एक फ़िल्म ‘रक्षाबन्धन’ नाम की भी बनायी थी।

रक्षा-बंधन का सामाजिक प्रसंग

इस दिन बहनें अपने भाई के दायें हाथ पर राखी बाँधकर उसके माथे पर तिलक करती हैं और उसकी दीर्घ आयु की कामना करती हैं। बदले में भाई उनकी रक्षा का वचन देता है। ऐसा माना जाता है कि राखी के रंगबिरंगे धागे भाई-बहन के प्यार के बन्धन को मज़बूत करते है। यह एक ऐसा पावन पर्व है जो भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को पूरा आदर और सम्मान देता है।

रक्षाबन्धन आत्मीयता और स्नेह के बन्धन से रिश्तों को मज़बूती प्रदान करने का पर्व है। यही कारण है कि इस अवसर पर न केवल बहन भाई को ही अपितु अन्य सम्बन्धों में भी रक्षा (या राखी) बाँधने का प्रचलन है। गुरु शिष्य को रक्षासूत्र बाँधता है तो शिष्य गुरु को। भारत में प्राचीन काल में जब स्नातक अपनी शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात गुरुकुल से विदा लेता था तो वह आचार्य का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उसे रक्षासूत्र बाँधता था जबकि आचार्य अपने विद्यार्थी को इस कामना के साथ रक्षासूत्र बाँधता था कि उसने जो ज्ञान प्राप्त किया है वह अपने भावी जीवन में उसका समुचित ढंग से प्रयोग करे ताकि वह अपने ज्ञान के साथ-साथ आचार्य की गरिमा की रक्षा करने में भी सफल हो।

इसी परम्परा के अनुरूप आज भी किसी धार्मिक विधि विधान से पूर्व पुरोहित यजमान को रक्षासूत्र बाँधता है और यजमान पुरोहित को। इस प्रकार दोनों एक दूसरे के सम्मान की रक्षा करने के लिये परस्पर एक दूसरे को अपने बन्धन में बाँधते हैं।

रक्षाबन्धन पर्व सामाजिक और पारिवारिक एकबद्धता या एकसूत्रता का सांस्कृतिक उपाय रहा है। विवाह के बाद बहन पराये घर में चली जाती है। इस बहाने प्रतिवर्ष अपने सगे ही नहीं अपितु दूरदराज के रिश्तों के भाइयों तक को उनके घर जाकर राखी बाँधती है और इस प्रकार अपने रिश्तों का नवीनीकरण करती रहती है। दो परिवारों का और कुलों का पारस्परिक योग (मिलन) होता है। समाज के विभिन्न वर्गों के बीच भी एकसूत्रता के रूप में इस पर्व का उपयोग किया जाता है। इस प्रकार जो कड़ी टूट गयी है उसे फिर से जागृत किया जा सकता है।

राखी और आधुनिक तकनिकी माध्यम

आज के आधुनिक तकनीकी युग एवं सूचना सम्प्रेषण युग का प्रभाव राखी जैसे त्योहार पर भी पड़ा है। बहुत सारे भारतीय आजकल विदेश में रहते हैं एवं उनके परिवार वाले (भाई एवं बहन) अभी भी भारत या अन्य देशों में हैं। इण्टरनेट के आने के बाद कई सारी ई-कॉमर्स साइट खुल गयी हैं, जो ऑनलाइन आर्डर लेकर राखी दिये गये पते पर पहुँचाती है। इस तरह आज के आधुनिक विकास के कारण दूर-दराज़ में रहने वाले भाई-बहन जो राखी पर मिल नहीं सकते, आधुनिक तरीकों से एक दूसरे को देख और सुन कर इस पर्व को सहर्ष मनाते हैं।

उपसंहार

आज यह त्योहार हमारी संस्कृति की पहचान है और हर भारतवासी को इस त्योहार पर गर्व है। आज कई भाइयों की कलाई पर राखी सिर्फ इसलिए नहीं बंध पाती क्योंकि उनकी बहनों को उनके माता-पिता ने इस दुनिया में आने ही नहीं दिया। यह बहुत ही शर्मनाक बात है कि जिस देश में कन्या-पूजन का विधान शास्त्रों में है वहीं कन्या-भ्रूण हत्या के मामले सामने आते हैं। यह त्योहार हमें यह भी याद दिलाता है कि बहनें हमारे जीवन मंक कितना महत्व रखती हैं।

भाइयों और बहनों के लिए रक्षा बंधन का एक विशेष महत्व है। यह त्योहार सिर्फ सामान्य लोगों द्वारा ही नहीं मनाया जाता है, बल्कि इसे देवी-देवताओं द्वारा भी भाई-बहन के इस पवित्र रिश्ते को कायम रखने के लिए मनाया जाता है।

राखी का भाईयों-बहनों के लिए एक खास महत्व है। इनमें से कई सारे भाई-बहन एक-दूसरे से व्यावसायिक और व्यक्तिगत कारणों से मिल नहीं पाते, लेकिन इस विशेष अवसर पर वह एक-दूसरे के लिए निश्चित रुप से समय निकालकर इस पवित्र पर्व को मनाते हैं, जो कि इसकी महत्ता को दर्शाता है। हमें इस महान और पवित्र त्योहार के आदर्श की रक्षा करते हुए इसे नैतिक भावों के साथ खुशी-खुशी मनाना चाहिए।

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