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रवि प्रदोष व्रत कथा | Ravi Pradosh Vrat Katha PDF in Hindi

रवि प्रदोष व्रत कथा | Ravi Pradosh Vrat Katha Hindi PDF Download

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रवि प्रदोष व्रत कथा | Ravi Pradosh Vrat Katha PDF Details
रवि प्रदोष व्रत कथा | Ravi Pradosh Vrat Katha
PDF Name रवि प्रदोष व्रत कथा | Ravi Pradosh Vrat Katha PDF
No. of Pages 6
PDF Size 0.52 MB
Language Hindi
Categoryहिन्दी | Hindi
Source pdffile.co.in
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रवि प्रदोष व्रत कथा | Ravi Pradosh Vrat Katha Hindi

नमस्कार मित्रों, आज इस लेख के माध्यम से हम आप सभी के लिए रवि प्रदोष व्रत कथा / Ravi Pradosh Vrat Katha PDF in Hindi प्रदान करने जा रहे हैं। हिन्दू धर्म में प्रदोष व्रत को अत्यंत ही प्रचलित एवं महत्वपूर्ण माना जाता है। इस व्रत में भगवान भोलेनाथ एवं माता पार्वती जी का पूजन बड़े ही भक्ति-भाव से किया जाता है। यह व्रत भगवान भोलेनाथ की असीम कृपा एवं आशीर्वाद प्रात करने के लिए किया जाता है।

प्रदोष व्रत का पालन प्रत्येक महीने की त्रियोदशी तिथि के दिन किया जाता है। इसीलिए यह व्रत महीने में दो बार पड़ता है। प्रदोष व्रत अलग-अलग होते हैं। त्रियोदशी तिथि के दिन यदि सोमवार का दिन पड़े तो सोम प्रदोष व्रत होता है। इसी प्रकार रविवार पड़ने से रवि प्रदोष व्रत तथा शनिवार पड़ने से शनि प्रदोष व्रत होता है। प्रदोष व्रत में प्रदोषकाल का अत्यधिक महत्व होता है।

इसीलिए इस व्रत में संध्या काल (प्रदोष काल) में भगवान भोलेनाथ एवं माता पार्वती की विधि-विधान से पूजा-आराधना की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत को करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएँ शीघ्र ही पूर्ण हो जाती है। प्रदोष व्रत वाले दिन प्रदोषकाल में ही भगवान शिव की पूजा संपन्न होना आवश्यक होता है। शास्त्रानुसार प्रदोषकाल सूर्यास्त से 2 घड़ी (48 मिनट) तक रहता है। कुछ विद्वानों के अनुसार प्रदोष काल सूर्यास्त से 2 घड़ी पूर्व व सूर्यास्त से 2 घड़ी पश्चात् तक भी माना जाता है।

रवि प्रदोष व्रत कथा PDF / Ravi Pradosh Vrat Katha in Hindi PDF

  • एक समय सर्व प्राणियों के हितार्थ परम पावन भागीरथी के तट पर ऋषि समाज द्वारा विशाल गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस सभा में व्यासजी के परम शिष्य पुराणवेत्ता सूतजी महाराज हरि कीर्तन करते हुए पधारे।सूतजी को आते हुए देखकर शौनकादि 88,000 ऋषि-मुनियों ने खड़े होकर उन्हे दंडवत प्रणाम किया। महाज्ञानी सूतजी ने भक्तिभाव से ऋषियों को हृदय से लगाया तथा आशीर्वाद दिया। विद्वान ऋषिगण और सब शिष्य आसनों पर विराजमान हो गए।
  • शौनकादि ऋषि ने पूछा- हे पूज्यवर महामते! कृपया यह बताने का कष्ट करें कि मंगलप्रद, कष्ट निवारक यह व्रत सबसे पहले किसने किया और उसे क्या फल प्राप्त हुआ।
  • श्री सूतजी बोले- आप सभी शिव के परम भक्त हैं, आपकी भक्ति को देखकर मैं व्रती मनुष्यों की कथा कहता हूं। ध्यान से सुनो।एक गांव में अति दीन ब्राह्मण निवास करता था।उसकी साध्वी स्त्री प्रदोष व्रत किया करती थी। उसे एक ही पुत्ररत्न था। एक समय की बात है, वह पुत्र गंगा स्नान करने के लिए गया। दुर्भाग्यवश मार्ग में चोरों ने उसे घेर लिया और वे कहने लगे कि हम तुम्हें मारेंगे नहीं, तुम अपने पिता के गुप्त धन के बारे में हमें बता दो।
  • बालक दीनभाव से कहने लगा कि बंधुओं! हम अत्यंत दु:खी दीन हैं।हमारे पास धन कहां है?तब चोरों ने कहा कि तेरे इस पोटली में क्या बंधा है? बालक ने नि:संकोच कहा कि मेरी मां ने मेरे लिए रोटियां दी हैं।यह सुनकर चोरों ने अपने साथियों से कहा कि साथियों! यह बहुत ही दीन-दु:खी मनुष्य है अत: हम किसी और को लूटेंगे। इतना कहकर चोरों ने उस बालक को जाने दिया।
  • बालक वहां से चलते हुए एक नगर में पहुंचा। नगर के पास एक बरगद का पेड़ था। वह बालक उसी बरगद के वृक्ष की छाया में सो गया। उसी समय उस नगर के सिपाही चोरों को खोजते हुए उस बरगद के वृक्ष के पास पहुंचे और बालक को चोर समझकर बंदी बना राजा के पास ले गए।राजा ने उसे कारावास में बंद करने का आदेश दिया। ब्राह्मणी का लड़का जब घर नहीं लौटा, तब उसे अपने पुत्र की बड़ी चिंता हुई।
  • अगले दिन प्रदोष व्रत था। ब्राह्मणी ने प्रदोष व्रत किया और भगवान शंकर से मन-ही-मन अपने पुत्र की कुशलता की प्रार्थना करने लगी। भगवान शंकर ने उस ब्राह्मणी की प्रार्थना स्वीकार कर ली।उसी रात भगवान शंकर ने उस राजा को स्वप्न में आदेश दिया कि वह बालक चोर नहीं है, उसे प्रात:काल छोड़ दें अन्यथा उसका सारा राज्य-वैभव नष्ट हो जाएगा।
  • प्रात:काल राजा ने शिवजी की आज्ञानुसार उस बालक को कारावास से मुक्त कर दिया। बालक ने अपनी सारी कहानी राजा को सुनाई। सारा वृत्तांत सुनकर राजा ने अपने सिपाहियों को आदेश देकर उस बालक के घर भेजा और उसके माता-पिता को राजदरबार में बुलाया। उसके माता-पिता बहुत ही भयभीत थे।
  • राजा ने उन्हें भयभीत देखकर कहा कि आप भयभीत न हो आपका बालक निर्दोष है। राजा ने ब्राह्मण को 5 गांव दान में दिए जिससे कि वे सुखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर सकें। भगवान शिव की कृपा से ब्राह्मण परिवार आनंद से रहने लगा।
  • अत: जो भी मनुष्य रवि प्रदोष व्रत करता है, वह प्रसन्न व निरोग होकर अपना पूर्ण जीवन व्यतीत करता है।

रवि प्रदोष व्रत विधि PDF / Ravi Pradosh Vrat Ki Vidhi PDF

  • रवि प्रदोष व्रत का पालन करने वाले व्यक्ति को प्रातः उठकर स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ हो जाना चाहिए।
  • तत्पश्चात पूजा स्थल को स्वच्छ कर सूर्यदेव, भगवान शिव व देवी पार्वती का आवाहन करें।
  • अब भगवान शिव को बेल पत्र तथा सूर्यदेव को अक्षत , फूल, धूप , दीप, लाल चंदन, फल, पान, सुपारी आदि अर्पित करें।
  • माता पार्वती की भी विधिवत पूजा – अर्चना करें।
  • तदोपरांत परिवारजनों के साथ बैठकर रवि प्रदोष व्रत कथा सुनाइए।
  • प्रदोष व्रत कथा आरती सहित ही करनी चाहिए।
  • अब आरती करें तथा स्वयं के व परिवारजनों के कल्याण की कामना करें।

रवि प्रदोष व्रत कथा के लाभ / Ravivar Pradosh Vrat Katha Benefits in Hindi

  • रवि प्रदोष व्रत का पालन करने वाले व्यक्ति के जीवन में सुख – शांति का संचार होता है।
  • रविवार प्रदोष व्रत श्री सूर्यदेव को समर्पित होता है अतः इस व्रत के फलस्वरूप व्यक्ति सूर्य के समान तेजस्वी व ऊर्जावान हो जाता है।
  • यदि आपकी कुंडली में सूर्य की अन्तर्दशा या महादशा चल रही है, तो रविवार प्रदोष व्रत का नियमित पालन करने से आप नकारात्मक परिणाम से बच सकते हैं।
  • सूर्यदेव समस्त ग्रहों में एक विशिष्ट स्थान है अतः रवि प्रदोष व्रत के प्रभाव से समाज में व्यक्ति का मान – सम्मान का बढ़ता है।
  • इस व्रत के प्रभाव से विभिन्न प्रकार के रोगों का नाश होता है विशेषतः नेत्र सम्बन्धी विकारों में इसका विशेष प्रभाव होता है।

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