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ऋषि पंचमी व्रत कथा | Rishi Panchami Vrat Katha PDF in Hindi

ऋषि पंचमी व्रत कथा | Rishi Panchami Vrat Katha Hindi PDF Download

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ऋषि पंचमी व्रत कथा | Rishi Panchami Vrat Katha PDF Details
ऋषि पंचमी व्रत कथा | Rishi Panchami Vrat Katha
PDF Name ऋषि पंचमी व्रत कथा | Rishi Panchami Vrat Katha PDF
No. of Pages 5
PDF Size 0.60 MB
Language Hindi
Categoryहिन्दी | Hindi
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ऋषि पंचमी व्रत कथा | Rishi Panchami Vrat Katha Hindi

नमस्कार मित्रों, आज इस लेख के माध्यम से हम आप सभी के लिए ऋषि पंचमी व्रत कथा PDF / Rishi Panchami Vrat Katha PDF in Hindi प्रदान करने जा रहे हैं। चंद्र कैलेंडर के अनुसार भाद्रपद माह में गणेश चतुर्थी के अगले दिन ऋषि पंचमी का पर्व होता है। यह पर्व ऋषि-मुनियों को समर्पित होता है। सनातन हिन्दू धर्म में इस दिन मुख्य सप्त ऋषियों की पारंपरिक पूजा का विशेष विधान माना गया है।

वह सप्त (सात) ऋषि कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम महर्षि, जमदग्नि और वशिष्ठ जी माने गए हैं। इस दिन अनेकों भक्त ऋषि पंचमी का व्रत बड़े ही भक्ति-भाव से रखते हैं। कहा जाता है कि ऋषि पंचमी का व्रत श्रद्धापूर्वक करने से व्यक्ति को सुख – समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस व्रत में लोग उन प्राचीन ऋषियों का स्मरण करते हैं, जिन्होंने समाज के कल्याण के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया।

यह व्रत मुख्य रूप से महिलाओं के लिए होता है। केरल राज्य के कई हिस्सों में ऋषि पंचमी के पर्व को विश्वकर्मा पूजा के रूप में भी मनाया जाता है। ऋषि पंचमी के दिन कुछ जगहों पर जैसे दधीच ब्राह्मणों, राजस्थान के अग्रवाल, माहेश्वरी और कायस्थ समुदायों के यहाँ रक्षा बंधन का त्योहार मनाया जाता है। बहनें भाइयों के राखी बांधती हैं और दोनों भाई-बहन एक-दूसरे की रक्षा करने का संकल्प लेते हैं।

ऋषि पंचमी व्रत कथा PDF / Rishi Panchami Vrat Katha in Hindi PDF

सतयुग में विदर्भ नगरी में श्येनजित नामक राजा हुए थे। वह ऋषियों के समान थे। उन्हीं के राज में एक कृषक सुमित्र था। उसकी पत्नी जयश्री अत्यंत  पतिव्रता थी। एक समय वर्षा ऋतु में जब उसकी पत्नी खेती के कामों में लगी हुई थी, तो वह रजस्वला हो गई। उसको रजस्वला होने का पता लग गया फिर भी वह घर के कामों में लगी रही।

कुछ समय बाद वह दोनों स्त्री-पुरुष अपनी-अपनी आयु भोगकर मृत्यु को प्राप्त हुए। जयश्री तो कुतिया बनीं और सुमित्र को रजस्वला स्त्री के सम्पर्क में आने के कारण बैल की योनी मिली, क्योंकि ऋतु दोष के अतिरिक्त इन दोनों का कोई अपराध नहीं था। इसी कारण इन दोनों को अपने पूर्व जन्म का समस्त विवरण याद रहा। वे दोनों कुतिया और बैल के रूप में उसी नगर में अपने बेटे सुचित्र के यहां रहने लगे।

धर्मात्मा सुचित्र अपने अतिथियों का पूर्ण सत्कार करता था। अपने पिता के श्राद्ध के दिन उसने अपने घर ब्राह्मणों को भोजन के लिए नाना प्रकार के भोजन बनवाए। जब उसकी स्त्री किसी काम के लिए रसोई से बाहर गई हुई थी तो एक सर्प ने रसोई की खीर के बर्तन में विष वमन कर दिया। कुतिया के रूप में सुचित्र की मां कुछ दूर से सब देख रही थी।

पुत्र की बहू के आने पर उसने पुत्र को ब्रह्म हत्या के पाप से बचाने के लिए उस बर्तन में मुंह डाल दिया। सुचित्र की पत्नी चन्द्रवती से कुतिया का यह कृत्य देखा न गया और उसने चूल्हे में से जलती लकड़ी निकाल कर कुतिया को मारी। बेचारी कुतिया मार खाकर इधर-उधर भागने लगी।

चौके में जो झूठन आदि बची रहती थी, वह सब सुचित्र की बहू उस कुतिया को डाल देती थी, लेकिन क्रोध के कारण उसने वह भी बाहर फिकवा दी। सब खाने का सामान फिकवा कर बर्तन साफ करके दोबारा खाना बना कर ब्राह्मणों को खिलाया।

रात्रि के समय भूख से व्याकुल होकर वह कुतिया बैल के रूप में रह रहे अपने पूर्व पति के पास आकर बोली, हे स्वामी! आज तो मैं भूख से मरी जा रही हूं। वैसे तो मेरा पुत्र मुझे रोज खाने को देता था, लेकिन आज मुझे कुछ नहीं मिला। सांप के विष वाले खीर के बर्तन को अनेक ब्रह्म हत्या के भय से छूकर उनके न खाने योग्य कर दिया था। इसी कारण उसकी बहू ने मुझे मारा और खाने को कुछ भी नहीं दिया।

तब वह बैल बोला, हे भद्रे! तेरे पापों के कारण तो मैं भी इस योनी में आ पड़ा हूं और आज बोझा ढ़ोते-ढ़ोते मेरी कमर टूट गई है। आज मैं भी खेत में दिनभर हल में जुता रहा। मेरे पुत्र ने आज मुझे भी भोजन नहीं दिया और मुझे मारा भी बहुत। मुझे इस प्रकार कष्ट देकर उसने इस श्राद्ध को निष्फल कर दिया। अपने माता-पिता की इन बातों को सुचित्र सुन रहा था, उसने उसी समय दोनों को भरपेट भोजन कराया और फिर उनके दुख से दुखी होकर वन की ओर चला गया।

वन में जाकर ऋषियों से पूछा कि मेरे माता-पिता किन कर्मों के कारण इन नीची योनियों को प्राप्त हुए हैं और अब किस प्रकार से इनको छुटकारा मिल सकता है। तब सर्वतमा ऋषि बोले तुम इनकी मुक्ति के लिए पत्नीसहित ऋषि पंचमी का व्रत धारण करो तथा उसका फल अपने माता-पिता को दो। भाद्रपद महीने की शुक्ल पंचमी को मुख शुद्ध करके मध्याह्न में नदी के पवित्र जल में स्नान करना और नए रेशमी कपड़े पहनकर अरूधन्ती सहित सप्तऋषियों का पूजन करना।

इतना सुनकर सुचित्र अपने घर लौट आया और अपनी पत्नीसहित विधि-विधान से पूजन व्रत किया। उसके पुण्य से माता-पिता दोनों पशु योनियों से छूट गए। इसलिए जो महिला श्रद्धापूर्वक ऋषि पंचमी का व्रत करती है, वह समस्त सांसारिक सुखों को भोग कर बैकुंठ को जाती है।

ऋषि पंचमी पूजन / Rishi Panchami Puja Rituals

  • पूर्वकाल में यह व्रत समस्त वर्णों के पुरुषों के लिए बताया गया था, किन्तु समय के साथ साथ अब यह अधिकांशत: स्त्रियों द्वारा किया जाता है।
  • इस दिन पवित्र नदीयों में स्नान का भी बहुत महत्व होता है।
  • सप्तऋषियों की प्रतिमाओं को स्थापित करके उन्हें पंचामृत में स्नान करना चाहिए।
  • तत्पश्चात उन पर चन्दन का लेप लगाना चाहिए, फूलों एवं सुगन्धित पदार्थों, धूप, दीप, इत्यादि अर्पण करने चाहिए।
  • इसके बाद श्वेत वस्त्रों, यज्ञोपवीतों और नैवेद्य से पूजा और मन्त्र जाप करना चाहिए।
  • अब व्रत की कथा सुनें।
  • व्रत कथा सुनकर आरती कर प्रसाद वितरित करें।
  • अकृष्ट (बिना बोई हुई) पृथ्वी में पैदा हुए शाकादि का आहार लें।
  • इस प्रकार सात वर्ष तक व्रत करके आठवें वर्ष में सप्त ऋषियों की सोने की सात मूर्तियां बनवाएं।
  • तत्पश्चात कलश स्थापन करके यथाविधि पूजन करें।
  • अंत में सात गोदान तथा सात युग्मक-ब्राह्मण को भोजन करा कर उनका विसर्जन करें।

ऋषि पंचमी की पूजा विधि PDF / Rishi Panchami Puja Vidhi in Hindi PDF

  • व्रत रखने वाले लोगों को इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर लेना चाहिए। इसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए।
  • फिर घर के पूजा ग्रह की अच्छे से सफाई कर लें।
  • इसके बाद हल्दी से चौकोर मंडल बनाएं। फिर उस पर सप्त ऋषियों की स्थापना कर व्रत करने का संकल्प लें।
  • इसके बाद सप्त ऋषियों की सच्चे मन से पूजा करें।
  • पूजा स्थल पर एक मिट्टी के कलश की स्थापना करें।
  • सप्तऋषि के समक्ष दीप, धूप जलाएं और गंध, पुष्प नैवेद्य आदि अर्पित कर व्रत की कथा सुनें। तत्पश्चात निम्न मंत्र से अर्घ्य दें-

कश्यपोऽत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोऽथ गौतमः।
जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृताः॥
दहन्तु पापं मे सर्वं गृह्नणन्त्वर्घ्यं नमो नमः॥

  • व्रत कथा सुनने के बाद आरती करें और सप्तऋषि को मीठे पकवान का भोग लगाएं।
  • इस व्रत में केवल एक बार रात के समय भोजन किया जाता है।
  • ध्यान रखें कि व्रत रखने वाले लोगों को इस दिन पृथ्वी में पैदा हुए शाकादि आहार ही लेना चाहिए।

ऋषि पंचमी पूजन सामग्री PDF / Rishi Panchami Puja Samagri PDF

  • इस दिन सप्त ऋषि बनाकर दूध, दही, घी, शहद और जल से अभिषेक करें।
  • रोली, चावल, धूप, दीप आदि से पूजन करें।
  • इसके बाद कथा सुनने के बाद घी से होम करें।

ऋषि पंचमी की आरती PDF / Rishi Panchami Aarti Lyrics in Hindi PDF

जय जय ऋषिराजा, प्रभु जय जय ऋषिराजा।

देव समाजाहृत मुनि, कृत सुरगया काजा॥ टेक॥

जय दध्यगाथर्वण, भरद्व गौतम।

जय श्रृंगी, पराशर अगस्त्य मुनि सत्तम॥1॥

वशिष्ठ, विश्वामित्र, गिर, अत्री जय जय

कश्यप भृगुप्रभृति जय, जय कृप तप संचय ॥2॥

वेद मन्त्र दृष्टावन, सबका भला किया।

सब जनता को तुमने वैदिक ज्ञान दिया ॥3॥

सब ब्राह्मण जनता के मूल पुरुष स्वामी।

ऋषि संतति, हमको ज्ञानी हों सत्पथगामी॥4॥

हम में प्रभु आस्तिकता आप शीघ्र भर दो।

शिक्षित सारे नर हों, यह हमको वर दो॥5॥

‘धरणीधर’ कृत ऋषिजन की आरती जो गावे।

वह नर मुनिजन, कृपया सुख सम्पति पावै॥6॥

ऋषि पंचमी व्रत का महत्व / Rishi Panchami Vrat Ka Mahatva

  • इस व्रत के बारे में ऐसी मान्यता है कि यह व्रत अगर सच्ची आस्था और निष्ठा के साथ किया जाये तो इंसान के जीवन के सारे दुख अवश्य ही समाप्त हो जाते हैं।
  • इसके अतिरिक्त अविवाहित युवतियों के लिए यह व्रत विशेष फलदायी माना जाता है।
  • इस दिन हल से जोते हुए किसी भी अनाज का सेवन वर्जित माना जाता है।
  • साथ ही ऋषि पंचमी के दिन सच्चे मन से पूजा करने और उपवास रखने पर दोष-बाधाएं दूर हो जाती हैं।
  • इस दिन गंगा स्नान का भी महत्व है।

ऋषि पंचमी शुभ मुहूर्त 2022 / Rishi Panchami 2022 Shubh Muhurt

ऋषि पञ्चमी बृहस्पतिवार, सितम्बर 1, 2022 को
ऋषि पञ्चमी पूजा मुहूर्त – 11:05 ए एम से 01:37 पी एम
अवधि – 02 घण्टे 33 मिनट्स
पञ्चमी तिथि प्रारम्भ – अगस्त 31, 2022 को 03:22 पी एम बजे
पञ्चमी तिथि समाप्त – सितम्बर 01, 2022 को 02:49 पी एम बजे

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