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श्रावण मास की पुत्रदा एकादशी व्रत कथा | Shravana Putrada Ekadashi Vrat Katha PDF in Hindi

श्रावण मास की पुत्रदा एकादशी व्रत कथा | Shravana Putrada Ekadashi Vrat Katha Hindi PDF Download

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श्रावण मास की पुत्रदा एकादशी व्रत कथा | Shravana Putrada Ekadashi Vrat Katha PDF Details
श्रावण मास की पुत्रदा एकादशी व्रत कथा | Shravana Putrada Ekadashi Vrat Katha
PDF Name श्रावण मास की पुत्रदा एकादशी व्रत कथा | Shravana Putrada Ekadashi Vrat Katha PDF
No. of Pages 11
PDF Size 1.61 MB
Language Hindi
Categoryहिन्दी | Hindi
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श्रावण मास की पुत्रदा एकादशी व्रत कथा | Shravana Putrada Ekadashi Vrat Katha Hindi

नमस्कार मित्रों, आज इस लेख के माध्यम से हम आप सभी के लिए श्रावण मास की पुत्रदा एकादशी व्रत कथा PDF / Shravana Putrada Ekadashi Vrat Katha PDF in Hindi प्रदान करने जा रहे हैं। जैसा कि आप सभी जानते होंगे कि सनातन हिन्दू धर्म में एकादशी के व्रत को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। श्रावण मास की पुत्रदा एकादशी को पवित्रा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।

एकादशी का व्रत भगवान श्री हरी विष्णु जी को समर्पित होता है। एकादशी के व्रत में भगवान श्री हरी की पूजा-आराधना बड़े ही भक्ति-भाव से की जाती है। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्णु जी के भक्तों को जीवन में समस्त सुख भोगकर अंत समय में मोक्ष की प्राप्ति होती है। पुत्रदा एकादशी का श्रद्धापूर्वक व्रत-पूजन करने से मनुष्य के समस्त पापों का नाश होता है, साथ ही वंश वृद्धि भी होती है।

श्रावण मास की एकादशी व्रत कथा का इसीलिए भी बहुत अधिक महत्व माना जाता है क्योंकि श्रावण मास भगवान शिव को अत्यंत ही प्रिय होता है और इस मास मे पड़ने वाली पुत्रदा एकादशी व्रत करने से न केवल भगवान विष्णु बल्कि भोलेनाथ की भी असीम कृपा प्राप्त होती है। अगर आप भी भगवान शिव एवं विष्णु जी का विशेष आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं तो पुत्रदा एकादशी व्रत हृदयपूर्वक अवश्य करें एवं व्रत कथा भी अवश्य पढ़ें अथवा सुनें क्योंकि बिना कथा पढ़े या श्रवण किए व्रत का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता है।

श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा PDF / Sawan Putrada Ekadashi Vrat Katha in Hindi PDF

एकादशियों के माहात्म्य का आनन्द लेते हुए धनुर्धर अर्जुन ने कहा- “हे प्रभु! ये कल्याणकारी और महापुण्यदायी कथाएँ सुनकर मेरे आनन्द की सीमा नहीं है और मेरी जिज्ञासा बढ़ती जा रही है। हे कमलनयन! अब आप मुझे श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी की कथा सुनाने की कृपा करें। इस एकादशी का क्या नाम है तथा इसके व्रत का क्या विधान है? इसमें किस देवता का पूजन किया जाता है और इसका व्रत करने से किस फल की प्राप्ति होती है?”

श्रीकृष्ण ने कहा- “हे धनुर्धर! श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी की कथा के श्रवण मात्र से ही अनन्त यज्ञ का फल प्राप्त होता है। हे पार्थ! द्वापर युग के आरम्भ में ही महिष्मती नाम की एक नगरी थी। उस नगरी में महाजित नाम का एक राजा राज्य करता था। वह पुत्रहीन था, इसलिए वह सदा दुखी रहता था।

उसे वह राज्य-सुख और वैभव, सभी कुछ बड़ा ही कष्टदायक प्रतीत होता था, क्योंकि पुत्र के बिना मनुष्य को इहलोक और परलोक दोनों में सुख नहीं मिलता है। राजा ने पुत्र प्राप्ति के बहुत उपाय किये, किन्तु उसका हर उपाय निष्फल रहा। जैसे-जैसे राजा महाजित वृद्धावस्था की ओर बढ़ता जा रहा था, वैसे-वैसे उसकी चिन्ता भी बढ़ती जा रही थी।

एक दिन राजा ने अपनी सभा को सम्बोधित करके कहा – ‘न तो मैंने अपने जीवन में कोई पाप किया है और न ही अन्यायपूर्वक प्रजा से धन एकत्रित किया है, न ही कभी प्रजा को कष्ट दिया है और न कभी देवता और ब्राह्मणों का निरादर किया है। मैंने प्रजा का सदैव अपने पुत्र की तरह पालन किया है, कभी किसी से ईर्ष्या भाव नहीं किया, सभी को एक समान समझा है। मेरे राज्य में कानून भी ऐसे नहीं हैं जो प्रजा में अनावश्यक डर उत्पन्न करें।

इस प्रकार धर्मयुक्त राज्य करने पर भी मैं इस समय अत्यन्त कष्ट पा रहा हूँ, इसका क्या कारण है? मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है। आप इस पर विचार करें कि इसका क्या कारण है और क्या इस जीवन में मैं इस कष्ट से मुक्त हो पाऊँगा?

राजा के इस कष्ट के निवारण के लिए मन्त्री आदि वन को गये, ताकि वहाँ जाकर किसी ऋषि-मुनि को राजा का दुख बताकर कोई समाधान पा सकें। वन में जाकर उन्होंने श्रेष्ठ ऋषि-मुनियों के दर्शन किये। उस वन में वयोवृद्ध और धर्म के ज्ञाता महर्षि लोमश भी रहते थे। वे सभी जन महर्षि लोमश के पास गये।

उन सबने महर्षि लोमश को दण्डवत प्रणाम किया और उनके सम्मुख बैठ गये। महर्षि के दर्शन से सभी को बड़ी प्रसन्नता हुई और सबने महर्षि लोमश से प्रार्थना की – ‘हे देव! हमारे अहो भाग्य हैं कि हमें आपके दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हुआ।’ मन्त्री की बात सुन लोमश ऋषि ने कहा – ‘हे मन्त्रीवर! आप लोगों की विनम्रता और सद्व्यवहार से मैं अति प्रसन्न हूँ। आप मुझसे अपने आने का प्रयोजन कहें। मैं आपके कार्य को अपने सामर्थ्य के अनुसार अवश्य ही करूँगा, क्योंकि हमारा शरीर ही परोपकार के लिए बना है।

लोमश ऋषि के ऐसे मृदु वचन सुनकर मन्त्री ने कहा – ‘हे ऋषिवर! आप हमारी सभी बातों को जानने में ब्रह्मा से भी ज्यादा समर्थ हैं, अतः आप हमारे सन्देह को दूर कीजिए। महिष्मती नामक नगरी के हमारे महाराज महाजित बड़े ही धर्मात्मा व प्रजावत्सल हैं। वह प्रजा का, पुत्र की तरह धर्मानुसार पालन करते हैं, किन्तु फिर भी वे पुत्रहीन हैं।

हे महामुनि! इससे वह अत्यन्त दुखी रहते हैं। हम लोग उनकी प्रजा हैं। हम भी उनके दुख से दुखी हो रहे हैं, क्योंकि प्रजा का यह कर्तव्य है कि राजा के सुख में सुख माने और दुख में दुख माने। हमें उनके पुत्रहीन होने का अभी तक कारण ज्ञात नहीं हुआ है, इसलिए हम आपके पास आये हैं। अब आपके दर्शन करके, हमको पूर्ण विश्वास है कि हमारा दुख अवश्य ही दूर हो जायेगा, क्योंकि महान पुरुषों के दर्शन मात्र से ही प्रत्येक कार्य की सिद्धि हो जाती है, अतः आप हमें बताने की कृपा करें कि किस विधान से हमारे महाराज पुत्रवान हो सकते हैं।

हे ऋषिवर! यह आपका हम पर व हमारे राज्य की प्रजा पर बड़ा ही उपकार होगा।’ ऐसी करुण प्रार्थना सुनकर लोमश ऋषि नेत्र बन्द करके राजा के पूर्व जन्मों पर विचार करने लगे। कुछ पलों बाद उन्होंने विचार करके कहा – ‘हे भद्रजनो! यह राजा पिछले जन्म में अत्यन्त उद्दण्ड था तथा बुरे कर्म किया करता था। उस जन्म में यह एक गाँव से दूसरे गाँव में घूमा करता था।

एक बार ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन की बात है, यह दो दिन से भूखा था। दोपहर के समय एक जलाशय पर जल पीने गया। उस स्थान पर उस समय ब्यायी हुई एक गाय जल पी रही थी। राजा ने उसको प्यासी ही भगा दिया और स्वयं जल पीने लगा। हे श्रेष्ठ पुरुषों! इसलिए राजा को यह कष्ट भोगने पड़ रहे हैं।

एकादशी के दिन भूखा रहने का फल यह हुआ कि इस जन्म में यह राजा है और प्यासी गाय को जलाशय से भगाने के कारण पुत्रहीन है।’ यह जान सभी सभासद प्रार्थना करने लगे – ‘हे -ऋषि श्रेष्ठ! शास्त्रों में ऐसा लिखा है कि पुण्य से पाप नष्ट हो जाते हैं, अतः कृपा करके आप हमें कोई ऐसा उपाय बताइये, जिससे हमारे राजा के पूर्व जन्म के पाप नष्ट हो जायें और उन्हें पुत्ररत्न की प्राप्ति हो।’

सभासदों की प्रार्थना सुनकर लोमश मुनि ने कहा – ‘हे श्रेष्ठ पुरुषो! यदि तुम सब श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी का व्रत और रात्रि जागरण करो और उस व्रत का फल राजा के निमित्त कर दो, तो तुम्हारे राजा के यहाँ पुत्र उत्पन्न होगा। राजा के सभी कष्टों का नाश हो जायेगा।’

इस उपाय को जानकर मन्त्री सहित सभी ने महर्षि को कोटि-कोटि धन्यवाद दिया तथा उनका आशीर्वाद लेकर अपने राज्य में लौट आये। तदुपरान्त उन्होंने लोमश ऋषि की आज्ञानुसार पुत्रदा एकादशी का विधानपूर्वक उपवास किया और द्वादशी को उसका फल राजा को दे दिया। इस पुण्य के प्रभाव से रानी ने गर्भ धारण किया और नौ माह पश्चात एक अत्यन्त तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया।

हे पाण्डु पुत्र! इसलिए इस एकादशी का नाम पुत्रदा पड़ा। पुत्र की इच्छा रखने वाले मनुष्य को विधानपूर्वक श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करना चाहिये। इस व्रत के प्रभाव से इहलोक में सुख और परलोक में स्वर्ग की प्राप्ति होती है।”

श्रावण पुत्रदा एकादशी 2022 / Shravana Putrada Ekadashi 2022 in Hindi

एक किवदंती के अनुसार महिष्मती नामक राज्य में महिजीत नामक राजा शासन करता था। महिजीत एक दयालु, जिम्मेदार और उदार शासक था। उनके नेतृत्व में, उनकी प्रजा स्वयं को सुरक्षित महसूस करती थी। एक ओर जहां राज की प्रजा उनसे प्रसन्न थी वहीं राजा आए दिन उदास रहता है। उनकी उदासी का कारण था उनका निःसंतान होना।जब उनकी प्रजा को उनकी उदासी का कारण पता चला तो वह किसी सन्यासी के मार्गदर्शन के लिए निकले। वहां लोमेश ऋषि से प्रजा के सज्जनों की भेंट हुई। लोगों ने ऋषि से अपने राजा की समस्या का समाधान खोजने में उनकी सहायता मांगी।

ऋषि ने बताया कि राजा ने पूर्व जन्म में पाप किया था। उन्होंने बताया कि महिजीत अपने पूर्वजन्म में एक गरीब व्यापारी था। उन्होंने बताया कि एक बार व्यापारी ने तालाब से पानी पीते समय एक गाय को दूर धकेल दिया था। हालांकि वह पानी से अपने व्यापारी ने प्यास बुझाने के लिए ऐसा किया। स्वार्थ के लिए गाय को पानी से वंचित करके, उसने अपने कर्म के क्रोध को आमंत्रित किया।

ऋषि लोमेश ने इसका समाधान बताते हुए कहा कि श्रावण, शुक्ल पक्ष में एकादशी तिथि पर व्रत करने से व्यक्ति अपने पिछले पापों से छुटकारा पा सकता है। लोमेश ऋषि का धन्यवाद कर सज्जनों ने राजा को ऋषि का संदेश दिया। राजा महिजीत ने ऋषि का आगया पालन करते हुए श्रावण मास की एकादशी के दिन पर उपवास रखा। इसके बाद, उनकी पत्नी गर्भवती हुई, और उन्हें एक बच्चे का आशीर्वाद मिला।

कथा सार

पाप कर्म करते समय मनुष्य यह नहीं सोचता कि वह क्या कर रहा है, परन्तु शास्त्रों से विदित होता है कि मनुष्य का छोटे-से-छोटा पाप भी उसे भयंकर दुख भोगने को विवश कर देता है, अतः मनुष्य को पाप कर्म करने से डरना चाहिये, क्योंकि पाप नामक यह दैत्य जन्म-जन्मान्तर तक उसका पीछा नहीं छोड़ता।

प्राणी को चाहिये कि सत्यव्रत का पालन करते हुए भगवान के प्रति पूरी श्रद्धा व भक्ति रखे और यह बात सदैव याद रखे कि किसी के दिल को दुखाने से बड़ा पाप दुनिया में कोई दूसरा नहीं है।

पुत्रदा एकादशी पूजा विधि / Shravana Putrada Ekadashi Vrat Vidhi

  • पुत्रदा एकादशी के दिन सर्वप्रथम सुवाह जल्दी उठ जाएँ।
  • तत्पश्चात दैनिक नित्यकर्म से निवृत्त होकर स्नान आदि करके स्वच्छ हो लें।
  • इसके बाद पीले रंग के कपड़े धारण कर लें।
  • तदोपरांत लकड़ी की चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर भगवान विष्‍णु की प्रतिमा या तस्वीर को स्‍थापित कर लें।
  • अब भगवान के सामने घी का दीपक जलाएं और व्रत करने का संकल्‍प लें।
  • इसके बाद प्रभु को पुष्प के द्वारा जल अर्पित करके शुद्धि करें।
  • अब एक आसन बिछाकर बैठ जाएं।
  • इसके बाद भगवान विष्णु को पीले रंग के फूल और माला चढ़ाएं।
  • अब पीले रंग का चंदन, अक्षत आदि लगा दें।
  • इसके साथ ही भोग में पीले फल,मिष्ठान और तुलसी दल चढ़ा दें।
  • अब धूप एवं घी का दीपक आदि जलाकर विष्णु भगवान के मंत्र, चालीसा, स्तुति, स्तोत्र आदि का अपनी श्रद्धानुसार जाप कर लें।
  • इसके अतिरिक्त इस दिन ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ‘ का जप एवं विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना भी बहुत अधिक फलदायी माना जाता है।
  • अंत में भगवान विष्णु जी की विधिवत आरती कर लें।
  • यह सब करने के पश्चात दिनभर व्रत रखें।
  • अगले दिन व्रत का पारण विधि-विधान से अवश्य कर लें।

श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत का महत्व

  • एकादशी तिथि के महत्व को बताते हुए भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है-”मैं वृक्षों में पीपल एवं तिथियों में एकादशी हूँ”।
  • एकादशी की महिमा के विषय में शास्त्र कहते हैं कि विवेक के समान कोई बंधु नहीं और एकादशी के समान कोई व्रत नहीं।
  • पदम् पुराण के अनुसार परमेश्वर श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को एकादशी तिथि का महत्त्व समझाते हुए कहा है कि बड़े-बड़े यज्ञों से भी मुझे उतनी प्रसन्नता नहीं मिलती जितनी एकादशी व्रत के अनुष्ठान से मिलती है।
  • शास्त्रों के अनुसार इस व्रत को करने से अग्निष्टोम यज्ञ का फल मिलता है एवं भगवान विष्णु अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
  • संतान प्राप्ति की कामना के लिए इस व्रत को अमोघ माना गया है।
  • इस व्रत को करने वाले भक्तों को न केवल स्वस्थ तथा दीर्घायु संतान प्राप्त होती है बल्कि उनके सभी प्रकार के कष्ट भी दूर हो जाते हैं।

पुत्रदा एकादशी शुभ मुहूर्त

एकादशी तिथि प्रारंभ: 07 अगस्त 2022 सुबह 11 बजकर 50 मिनट से शुरू
एकादशी तिथि समाप्त: 08 अगस्त 2022 रात 09 बजे तक
व्रत पारण का समय: 09 अगस्त 2022, सुबह 06 बजकर 07 मिनट से सुबह 08 बजकर 42 मिनट तक
अभिजीत मुहूर्त – सुबह 11 बजकर 47 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 40 मिनट
अमृत काल – सुबह 06 बजकर 31 मिनट से लेकर 07 बजकर 59 मिनट तक

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