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श्री कृष्ण स्तुति | Shri Krishna Stuti PDF in Hindi

श्री कृष्ण स्तुति | Shri Krishna Stuti Hindi PDF Download

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श्री कृष्ण स्तुति | Shri Krishna Stuti PDF Details
श्री कृष्ण स्तुति | Shri Krishna Stuti
PDF Name श्री कृष्ण स्तुति | Shri Krishna Stuti PDF
No. of Pages 6
PDF Size 0.51 MB
Language Hindi
Categoryहिन्दी | Hindi
Source pdffile.co.in
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श्री कृष्ण स्तुति | Shri Krishna Stuti Hindi

नमस्कार मित्रों, आज इस लेख के माध्यम से हम आप सभी के लिए श्री कृष्ण स्तुति / Shri Krishna Stuti PDF in Hindi प्रदान करने जा रहे हैं। श्री कृष्ण स्तुति एक अत्यंत ही मधुर एवं सुंदर स्तुति है। यह दिव्य स्तुति भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है। इस स्तुति का पूजा के पश्चात नियम से गायन करने से भगवान  श्री कृष्ण की विशेष कृपा होती है।

हिन्दू धर्म में भगवान श्रीकृष्ण को बड़े ही भक्ति-भाव से पूजा जाता है। इसीलिए उनके भगवान कृष्ण को आसानी से प्रसन्न करने के लिए अनेकों भक्त श्री कृष्ण स्तुति का पाठ बड़े ही विधि-विधान से करते हैं। माना जाता है कि जो भी जातक अनेकों समस्याओं से अपने जीवन में बहुत समय से दुखी है, उनकी समस्या के निवारण हेतु श्री कृष्ण स्तुति का पाठ सबसे आसान और सुलभ उपाय है।

इस स्तुति का गायन हृदयपूर्वक करने से मनुष्य की सभी समस्याओं का शीघ्र ही अंत होता है। विवाह संबंधी समस्या का अंत करने के लिए भी यह स्तुति अत्यंत चमत्कारी मानी गयी हैं। अगर आप अपने जीवन में सुख, समृद्धि एवं शांति के साथ भगवान श्री कृष्ण का विशेष आशीर्वाद भी पाना चाहते हैं तो श्री कृष्ण स्तुति का पाठ अवश्य करें।

श्री कृष्ण स्तुति PDF / Shri Krishna Stuti Lyrics in Hindi PDF

सृजद्रक्षत्संहरद्यद्विश्वमात्मनि मायया ।

तद्ब्रह्म दद्याद्ब्रह्मास्मीत्यनुभूतिमयीं धियम् ॥ १॥

श्रीमत्यां द्वार्वत्यामासीनं कल्पपादपाधस्तात् ।

मणिमण्डपान्तरब्जे विद्याश्रयमाश्रये परं धाम ॥ २॥

हीमत्या रतिमत्या रुक्मिण्या सत्यभामया चापि ।

ऊरुस्थितयोपासे श्लिष्टमविद्याश्रयमहं धाम ॥ ३॥

क्लीङ्कारात्मकमूर्तिः स्फूर्तिः सत्ता च सकलस्य ।

मायिमहोऽञ्जननीलं सच्चित्सुखरूपमनिशमाशासे ॥ ४॥

कृतसक्तिभक्तिमति प्रसृमरमदने च गोपयुवतिजने ।

मणिमकुटाङ्गदकटकप्रभृतिभिरिद्धो हरिर्मुदे नः स्तात् ॥ ५॥

ष्णाधातुवाच्यनिरतैर्जपद्भिरनिशं स्मरद्भिश्च ।

मुनिभिरूपासितमीडे गोपालं नारदप्रमुखैः ॥ ६॥

यमवरुणसोमशक्रप्रभृतिभिरमरैरुपास्यमानाय ।

कृष्णायास्तु नमः सत्सुखमयपरमार्थरूपाय ॥ ७॥

गोपवधूनां निकरैः प्रियमुखपद्मोत्कलोचनभ्रमरैः ।

विश्लथनीवीकबरैः परिवृतमीडे परं महस्तदहम् ॥ ८॥

विन्यस्य वेणुमधरे नादब्रह्मामृतोदधौ भुवनम् ।

मग्नं कुर्वाणा में निर्वाणायास्तु भावना काचित् ॥ ९॥

दानवरक्षोयक्षप्रेतोरगसिद्धकिन्नरप्रमुखैः ।

परिवृतमस्तु परं तद्वस्तु विभूत्यै यदोः फुलाभरणम् ॥ १०॥

यमिनामन्तः स्वान्तं बद्धस्थितये नमोऽस्तु चिद्वपुषे ।

गोविन्दायासुसमाकटाक्षवीक्षाद्विरुक्तनीलिम्ने ॥ ११॥

गोघटया परिवीते गोपालैरपि च धाम्नि निर्विकृतौ ।

विहरतु मानसमनिशं यन्तरि कुन्तीसुतस्य मम ॥ १२॥

पीताम्बरोज्ज्वलश्रीश्रीवत्सोद्भासितोरस्का ।

कौस्तुभकृतमणिभूषा रक्षतु मां भाग्यपरिगतिर्महताम् ॥ १३॥

जलजारियोगमुद्रावेणुगदाभासुराष्टभुजम् ।

प्रणतिपरदुरितनिकरप्रमथनकृतदीक्षमच्युतं नौमि ॥ १४॥

नरसुरवारकतनुभृद्धृदयगुहागूढनिजमहिमा ।

वनमालया निवीतः परमात्मा स्फुरतु मम हृदये ॥ १५॥

वल्लवसुचरितमव्यात् सव्याग्राश्लिष्टजानुदक्षपदम् ।

क्रामदनारतविगलद्रत्नघटन्यस्तपादुकमस्मान् ॥ १६॥

लक्ष्मीवक्षोजमिलद्घुसृणारुणवर्णवक्षसं वन्दे ।

अङ्कस्थितदयिताभ्यामभिषिक्तं रत्नधारया शौरिम् ॥ १७॥

भासुरभूसुरनिकरैर्विचीयमानोऽच्युतस्त्रयीशिरसि ।

मम सुरतरुमञ्जर्या दिशतु मुदं मणिभिरभिषिक्तः ॥ १८॥

यश्च प्रकुतेस्तस्याः कार्याणां प्रेरकोऽहिराजेन ।

सिक्ताय नमो रत्नैर्गोपीजनवल्लभायास्मै ॥ १९॥

स्वाश्रयमेतद्विश्वं स्वमपि च विश्वाश्रयं विदुर्हि बुधाः ।

यन्नमनात् सकलैरप्यभिषिक्तो मणिभिरवतु मां स हरिः ॥ २०॥

हारं यद्धाम बुधाः स्वात्मनि पश्यन्ति सोऽहमिति ।

तदतिप्रसन्नवदनं स्वाहाजानिर्ममास्त्वविद्यायाः ॥ २१॥

मन्त्राक्षरारब्धमुखार्णपद्यां-

      तद्ध्यानवाच्यप्रकटोक्तिहृद्याम् ।

मन्त्रार्णमालां दधतोऽनवद्यां

      यतो लभेरन् परमात्मविद्याम् ॥ २२॥

व्रजरमणीरमणीयकटाक्ष-

      भ्रमरघटारभटीपरिशोभि ।

कपटशिशोरशिवप्रतिघातं

      मुखनवतामरसं मम कुर्यात् ॥ २३॥

इति श्री कृष्णस्तुतिः समाप्ता ।

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