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सूर्य देव चालीसा | Surya Dev Chalisa PDF in Hindi

सूर्य देव चालीसा | Surya Dev Chalisa Hindi PDF Download

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सूर्य देव चालीसा | Surya Dev Chalisa PDF Details
सूर्य देव चालीसा | Surya Dev Chalisa
PDF Name सूर्य देव चालीसा | Surya Dev Chalisa PDF
No. of Pages 8
PDF Size 0.64 MB
Language Hindi
Categoryहिन्दी | Hindi
Source pdffile.co.in
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सूर्य देव चालीसा | Surya Dev Chalisa Hindi

नमस्कार मित्रों, आज इस लेख के माध्यम से हम आप सभी के लिए श्री सूर्य देव चालीसा PDF / Surya Dev Chalisa PDF in Hindi प्रदान करने जा रहे हैं। सूर्य देव चालीसा भगवान सूर्य को समर्पित हैं। यह एक अत्यंत ही चमत्कारी एवं प्रभावशाली चालीसा है। इस चालीसा का प्रतिदिन पाठ करने से भगवान सूर्य देव शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं।

भगवान सूर्य को सनातन हिन्दू धर्म में प्रत्यक्ष देवता माना गया है। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य देव की प्रार्थना करना बेहद लाभकारी माना गया है। क्योंकि सूर्य भगवान की आराधना करने से व्यक्ति को शक्ति, ऊर्जा तथा सकारात्मकता का अनुभव होता है। माना जाता है कि सूर्य देव की आराधना करने से जातक को हर क्षेत्र में सफलता की प्राप्ति होती है।

कहा जाता है कि इस चालीसा का नियमित रूप से जाप करने से व्यक्ति को सुख, शांति एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है। अगर आप भी भगवान सूर्य को प्रसन्न करके किसी भी क्षेत्र में उन्नति प्राप्त करना चाहते हैं तो सूर्य चालीसा का पाठ भक्ति-भाव से अवश्य करें। इस चालीसा का जाप करके आप सभी प्रकार के दुखों से भी शीघ्र छुटकारा पा सकते हैं।

श्री सूर्य देव चालीसा हिन्दी सहित PDF / Surya Chalisa Lyrics in Hindi PDF

।। दोहा ।।

कनक बदन कुण्डल मकर, मुक्ता माला अंग।

पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के संग।।

सूर्य देव का वर्ण सोने के समान पीला हैं और उन्होंने कानों में मकर के कुण्डल पहने हुए हैं तथा गले में मोतियों की माला सुशोभित हैं। हम सभी को पद्मासन में बैठकर तथा शंख व चक्र के साथ सूर्य भगवान का ध्यान लगाना चाहिए।

।। चौपाई ।।

जय सविता जय जयति दिवाकर, सहस्रांशु सप्ताश्व तिमिरहर।

भानु! पतंग! मरीची! भास्कर! सविता! हंस सुनूर विभाकर।

विवस्वान! आदित्य! विकर्तन, मार्तण्ड हरिरूप विरोचन।

अंबरमणि! खग! रवि कहलाते, वेद हिरण्यगर्भ कह गाते।

हे सविता अर्थात सवेरा लाने वाले सूर्य देव, आपकी जय हो। हे दिवाकर अर्थात रोशनी प्रदान करने वाले सूर्य देव, आपकी जय हो, जय हो। हे हजारों अंश से बने और सात घोड़ों के रथ पर चलने वाले सूर्य देव जो अंधकार को हर लेते हैं, उनकी जय हो।

सूर्य भगवान को भानु, पतंग, मरीचि, भास्कर, सविता हंस, विभाकर, विवस्वान, आदित्य, विकर्तन, मार्तंड, भगवान विष्णु के एक रूप विरोचन (भक्त प्रह्लाद के पुत्र), अंबरमणि, खग और रवि के नाम से जाना जाता हैं जबकि वेदों में उन्हें हिरण्यगर्भ के नाम से जाना जाता हैं।

सहस्रांशुप्रद्योतन, कहि कहि, मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि।

अरुण सदृश सारथी मनोहर, हांकत हय साता चढ़ि रथ पर।

हजारों अंशों के मिलने से भगवान सूर्य देव का जन्म हुआ था और यह कहकर सभी ऋषि-मुनि प्रसन्न होकर हिठलाते हैं।

भगवान सूर्य देव के रथ के सारथी अरुण देव हैं जो उनके सात घोड़े वाले रथ को हांकते हैं।

मंडल की महिमा अति न्यारी, तेज रूप केरी बलिहारी।

उच्चैःश्रवा सदृश हय जोते, देखि पुरन्दर लज्जित होते।

हे सूर्य देव!! आपके आभामंडल की महिमा अपरंपार हैं और आपके तेज को देखकर हम सभी प्रसन्नचित्त हैं।

आपके रथ में उच्च श्रेणी का एक घोड़ा उच्चैःश्रवा भी हैं जो समुंद्र मंथन के समय निकला था और उसे देखकर तो इंद्र देव भी लज्जा से शर्मा जाते हैं।

मित्र १. मरीचि २. भानु ३. अरुण भास्कर ४. सविता।

५. सूर्य ६. अर्क ७. खग ८. कलिहर पूषा ९. रवि।

१०. आदित्य ११. नाम लै, हिरण्यगर्भाय नमः १२. कहिकै।

द्वादस नाम प्रेम सो गावैं, मस्तक बारह बार नवावै।

चार पदारथ सो जन पावै, दुःख दारिद्र अघ पुंज नसावै।

जो कोई भी सूर्य भगवान के इन बारह नामों मित्र, मरीचि, भानु, अरुण, भास्कर, सविता, सूर्य, अर्क, खग, रवि, आदित्य, हिरण्यगर्भाय को पौष माह में प्रेम सहित गाता हैं और उनके सामने बारह बार अपना शीश झुकाता हैं, उसे चारों पदों अर्थात अर्थ, बल, काम व मोक्ष की प्राप्ति होती हैं और उस मनुष्य के सभी दुःख, दरिद्रता व पाप इत्यादि नष्ट हो जाते हैं।

नमस्कार को चमत्कार यह, विधि हरिहर कौ कृपासार यह।

सेवै भानु तुमहिं मन लाई, अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई।

सूर्य नमस्कार करने का सबसे बड़ा चमत्कार यह होता हैं कि इससे हमें भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती हैं।

जो मनुष्य सूर्य भगवान का मन लगाकर ध्यान करता हैं, उसे आठों सिद्धियाँ व नौ निधियां प्राप्त होती हैं।

बारह नाम उच्चारन करते, सहस जनम के पातक टरते।

उपाख्यान जो करते तवजन, रिपु सों जमलहते सोतेहि छन।

छन सुत जुत परिवार बढ़तु है, प्रबलमोह को फंद कटतु है।

अर्क शीश को रक्षा करते, रवि ललाट पर नित्य बिहरते।

जो मनुष्य सूर्य देव के इन बारह नामों का उच्चारण करता हैं उसके हज़ार जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।

जो भी प्रजाजन आपका व्याख्यान करते हैं, आप उन सभी को उनके शत्रुओं से छुटकारा दिलाते हो।

साथ ही उसे धन, संतान, वैभव सभी चीज़ों की प्राप्ति होती हैं और संसार के सभी मोह उससे छूट जाते हैं।

अपने अर्क रूप में वे हमारे मस्तक की रक्षा करते हैं तो रवि रूप में हमारे ललाट पर विचरण करते हैं।

सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत, कर्ण देस पर दिनकर छाजत।

भानु नासिका वास करहु नित, भास्कर करत सदा मुख कौ हित।

सूर्य रूप में वे हमारी आँखों में विराजते हैं तो दिनकर रूप में कानों में छा जाते हैं।

भानु रूप में वे हमारी नाक में निवास करते हैं तो भास्कर रूप में हमारे मुख का हित करते हैं।

ओठ रहैं पर्जन्य हमारे, रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे।

कंठ सुवर्ण रेत की शोभा, तिग्मतेजसः कांधे लोभा।

पर्जन्य रूप में वे हमारे होंठों पर निवासित हैं तो तीक्ष्ण रूप में हमारी जीभ पर बसते हैं।

हमारे कंठ अर्थात गले में सुवर्ण रेत के रूप में विराजित हैं तो कंधे पर तेज धारदार अस्त्र के रूप में विराजमान हैं।

पूषां बाहु मित्र पीठहिं पर, त्वष्टा-वरुण रहम सुउष्णकर।

युगल हाथ पर रक्षा कारन, भानुमान उरसर्मं सुउदरचन।

हमारी भुजाओं में वे पूषां रूप में तो पीठ पर मित्र रूप में रहते हैं। वरुण रूप में वे ताप को बढ़ाते हैं।

युगल के रूप में वे हमारे हाथों में रहकर हमारी रक्षा करते हैं तो भानु रूप में वे हमारे उदर अर्थात पेट में रहकर उसे स्वस्थ रखते हैं।

बसत नाभि आदित्य मनोहर, कटि मंह हंस, रहत मन मुदभर।

जंघा गोपति, सविता बासा, गुप्त दिवाकर करत हुलासा।

हमारी नाभि में वे आदित्य रूप में बसते हैं जो मन को मोह लेते हैं और कमर में मुदभर के रूप में विराजते हैं।

जांघों में वे गोपति सविता के रूप में वास करते हैं तो गुप्तांगों में दिवाकर के रूप में हुडदंग मचाते हैं।

विवस्वान पद की रखवारी, बाहर बसते नित तम हारी।

सहस्रांशु, सर्वांग सम्हारै, रक्षा कवच विचित्र विचारे।

पैरों में वे विवस्वान के रूप में बसकर उसकी रखवाली करते हैं तो बाहर रहकर वे अंधकार का नाश करते हैं।

अपने हजारों अंश के माध्यम से आप हमारे प्रत्येक अंग को सँभालते हैं और आपका रक्षा कवच अत्यधिक विचित्र व अद्भुत हैं।

अस जोजन अपने मन माहीं, भय जग बीज करहुं तेहि नाहीं।

दरिद्र कुष्ट तेहिं कबहुं न व्यापै, जोजन याको मनमंह जापै।

जो भी मनुष्य भगवान सूर्य का अपने में मन ध्यान करता हैं, उसे किसी भी चीज़ का भय नही रहता हैं।

जो भी भक्तगण अपने मन में सूर्य भगवान के नाम को जपता हैं, उसे चर्म या कुष्ठ रोग नही होते हैं।

अंधकार जग का जो हरता, नव प्रकाश से आनन्द भरता।

ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही, कोटि बार मैं प्रनवौं ताही।

सूर्य देव संपूर्ण जगत के अंधकार को नष्ट करते हैं और उसे प्रकाश से भर देते हैं।

आप सभी ग्रहों के दोष को भी मिटा देते हैं और मैं आपको करोड़ो बार प्रणाम करता हूँ।

मंद सदृश सुतजग में जाके, धर्मराज सम अद्भुत बांके।

धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा, किया करत सुरमुनि नर सेवा।

आपके पुत्र शनिदेव ही धर्मराज हैं जो इस जगत में धर्म को विजयी करवाते हैं।

हे सूर्य देव!! आप धन्य हैं, धन्य हैं। आप ही सभी मनुष्यों, ऋषि-मुनियों की सेवा करते हैं।

भक्ति भावयुत पूर्ण नियमसों, दूर हटतसो भवके भ्रमसों।

परम धन्य सो नर तनधारी, हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी।

जो कोई भी संपूर्ण भक्ति भाव से व नियमों का पालन कर सूर्य देव की पूजा करता हैं, वह इस विश्व के मायाजाल से दूर हो जाता हैं।

जो मनुष्य आपका ध्यान करते हैं, वे सभी धन्य हैं। आप उनसे प्रसन्न होकर उनके जीवन से अंधकार को नष्ट कर देते हैं।

अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन, मध वेदांगनाम रवि उदयन।

भानु उदय वैसाख गिनावै, ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै।

माघ माह में आप अरुण कहलाते हैं तो फाल्गुन माह में सूर्य देव, दिन के मध्य में आप वेदांग के रूप में तो उदय होते समय आप रवि कहलाते हैं।

वैशाख माह में आप भानु रूप में उदय होते हैं तो ज्येष्ठ माह में इंद्र तो आषाढ़ माह में रवि कहलाते हैं।

यम भादों आश्विन हिमरेता, कातिक होत दिवाकर नेता।

अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं, पुरुष नाम रवि हैं मलमासहिं।

भादो माह में यम तो अश्विन माह में हिमरेता, कार्तिक माह में दिवाकर के नाम से आपको जाना जाता हैं।

अगहन में आपको भिन्न नामो से जाना जाता हैं तो पौष माह में आपको विष्णु रूप में जाना जाता हैं। मलमास में आपका नाम रवि होता हैं।

।। दोहा ।।

भानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य।

सुख सम्पत्ति लहै विविध, होंहि सदा कृतकृत्य।।

जो कोई भी मनुष्य इस सूर्य चालीसा को प्रेम सहित प्रतिदिन गाता हैं, उसे सभी तरह की सुख व संपत्ति प्राप्त होती हैं और उसके सभी कार्य पूर्ण होते हैं।

सूर्य देव पूजा विधि PDF / Surya Dev Puja Vidhi PDF

  • रविवार का दिन सूर्य देव को समर्पित हैं इसीलिए इस दिन सूर्य देव की पूजा का विधान है।
  • हिंदू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सूर्य देव प्रत्यक्ष देवता हैं।
  • हिंदू धर्म में सूर्य की उपासना अति शीघ्र फल देने वाली मानी जाती है।
  • रविवार के दिन सूर्यदेव की पूजा करने के लिए प्रातः जल्दी सोकर उठें।
  • जब सूर्य उदय हो तब सूर्य देव को प्रणाम करें और ‘ॐ सूर्याय नमः’ या ‘ॐ घृणि सूर्याय नम:’ कहकर सूर्यदेव को जल अर्पित करें।
  • सूर्य को अर्पित किए जाने वाले जल में लाल रोली, लाल फूल मिलाकर अर्घ्य दें।
  • अर्घ्य देने के पश्चात्प लाल आसन पर बैठकर पूर्व दिशा में मुख करके सूर्य के मंत्र का कम से कम 108 बार जप करें।
  • जप करने के पश्चात प्रणाम करें और सूर्यदेव से सद्बुद्धि देने की कामना करें।

श्री सूर्य देव की आरती PDF / Shri Surya Dev Ki Aarti PDF

ऊँ जय सूर्य भगवान,
जय हो दिनकर भगवान ।
जगत् के नेत्र स्वरूपा,
तुम हो त्रिगुण स्वरूपा ।
धरत सब ही तव ध्यान,
ऊँ जय सूर्य भगवान ॥
॥ ऊँ जय सूर्य भगवान..॥

सारथी अरूण हैं प्रभु तुम,
श्वेत कमलधारी ।
तुम चार भुजाधारी ॥
अश्व हैं सात तुम्हारे,
कोटी किरण पसारे ।
तुम हो देव महान ॥
॥ ऊँ जय सूर्य भगवान..॥

ऊषाकाल में जब तुम,
उदयाचल आते ।
सब तब दर्शन पाते ॥
फैलाते उजियारा,
जागता तब जग सारा ।
करे सब तब गुणगान ॥
॥ ऊँ जय सूर्य भगवान..॥

संध्या में भुवनेश्वर,
अस्ताचल जाते ।
गोधन तब घर आते॥
गोधुली बेला में,
हर घर हर आंगन में ।
हो तव महिमा गान ॥
॥ ऊँ जय सूर्य भगवान..॥

देव दनुज नर नारी,
ऋषि मुनिवर भजते ।
आदित्य हृदय जपते ॥
स्त्रोत ये मंगलकारी,
इसकी है रचना न्यारी ।
दे नव जीवनदान ॥
॥ ऊँ जय सूर्य भगवान..॥

तुम हो त्रिकाल रचियता,
तुम जग के आधार ।
महिमा तब अपरम्पार ॥
प्राणों का सिंचन करके,
भक्तों को अपने देते ।
बल बृद्धि और ज्ञान ॥
॥ ऊँ जय सूर्य भगवान..॥

भूचर जल चर खेचर,
सब के हो प्राण तुम्हीं ।
सब जीवों के प्राण तुम्हीं ॥
वेद पुराण बखाने,
धर्म सभी तुम्हें माने ।
तुम ही सर्व शक्तिमान ॥
॥ ऊँ जय सूर्य भगवान..॥

पूजन करती दिशाएं,
पूजे दश दिक्पाल ।
तुम भुवनों के प्रतिपाल ॥
ऋतुएं तुम्हारी दासी,
तुम शाश्वत अविनाशी ।
शुभकारी अंशुमान ॥
॥ ऊँ जय सूर्य भगवान..॥

ऊँ जय सूर्य भगवान,
जय हो दिनकर भगवान ।
जगत के नेत्र रूवरूपा,
तुम हो त्रिगुण स्वरूपा ॥
धरत सब ही तव ध्यान,
ऊँ जय सूर्य भगवान ॥

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