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मोहिनी एकादशी व्रत कथा | Mohini Ekadashi Vrat Katha PDF in Hindi

मोहिनी एकादशी व्रत कथा | Mohini Ekadashi Vrat Katha Hindi PDF Download

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मोहिनी एकादशी व्रत कथा | Mohini Ekadashi Vrat Katha PDF Details
मोहिनी एकादशी व्रत कथा | Mohini Ekadashi Vrat Katha
PDF Name मोहिनी एकादशी व्रत कथा | Mohini Ekadashi Vrat Katha PDF
No. of Pages 7
PDF Size 1.00 MB
Language Hindi
CategoryEnglish
Source pdffile.co.in
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मोहिनी एकादशी व्रत कथा | Mohini Ekadashi Vrat Katha Hindi

नमस्कार मित्रों, आज इस लेख के माध्यम से हम आप सभी के लिए मोहिनी एकादशी व्रत कथा / Mohini Ekadashi Vrat Katha PDF प्रदान करने जा रहे हैं। जैसा कि आप सभी जानते होंगे कि हिन्दू धर्म में एकादशी के व्रत का बहुत अधिक महत्व बताया गया है। मोहिनी एकादशी का व्रत वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को किया जाता है। सनातन हिन्दू धर्म के अनुसार 26 एकादशियों का वर्णन मिलता है।

जिनमें से 24 हर वर्ष आती हैं, और दो मुख्य रूप से हर तीसरे वर्ष में अधिक मास में आती है। अधिक मास को खलमास के नाम से भी जाना जाता है। सभी 26 एकादशी भगवान श्री हरी विष्णु जी को समर्पित होती हैं। मोहिनी एकादशी के व्रत को करने से भगवान विष्णु जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। अगर आप भी भगवान विष्णु जी का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं तो मोहिनी एकादशी का व्रत पूर्ण विधि-विधान से करें।

Mohini Ekadashi Vrat Katha Puja Vidhi PDF

  • एक बार युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से मोहिनी एकादशी की महत्व के बारे में जानने की इच्छा प्रकट की, तो उन्होंने एक पौराणिक कथा के माध्यम से मोहिनी एकादशी के महत्व की व्याख्या की।
  • पौराणिक कथा के अनुसार, सरस्वती नदी के तट पर भद्रावती नगर था। वहां द्युतिमान नामक चंद्रवंशी राजा का राज था। इस नगर में हर तरह से संपन्न विष्णु भक्त धनपाल नामक वैश्य भी रहता था।
  • वैश्य ने नगर में कई भोजनालय, प्याऊ, कुए, तालाब और धर्मशाला बनवाए थे। साथ ही नगर की सड़कों पर आम, जामुन, नीम के अनेक छायादार पेड़ भी लगाए थे।
  • वैश्य के 5 पुत्र थे, जिनका नाम सुमन, सद्बुद्धि, मेधावी, सुकृति और धृष्ट बुद्धि था। उसका पांचवा पुत्र खराब आदतों वाला था। वो माता-पिता और भाइयों किसी की भी बातें नहीं मानता था। वह बुरी संगति में रहकर जुआ खेलता और पराई स्त्री के साथ भोग-विलास करता और मांस-मदिरा का भी सेवन करता था। इसी प्रकार अनेक बुरे कामों से वो पिता के धन को नष्ट करता था।
  • पुत्र के कुकर्मों से परेशान होकर धनपाल ने धृष्ट बुद्धि को घर से निकाल दिया। अब वह अपने गहने-कपड़े बेचकर जीवन यापन करने लगा। जब उसके पास कुछ भी नहीं रहा, तो बुरे कामों में साथ देने वाले दोस्तों ने भी उसे छोड़ दिया। भूख-प्यास से परेशान धनपाल के पुत्र ने चोरी का रास्ता अपनाया, लेकिन वो चोरी करते हुए पकड़ा गया।
  • उसे राजा के सामने हाजिर किया गया, लेकिन वैश्य का पुत्र जानकर राजा ने उसे चेतावनी देकर जाने दिया। धृष्ट बुद्धि के सामने चोरी के अलावा और कोई रास्ता नहीं था, तो उसने फिर चोरी की और इस बार भी वो पकड़ा गया।
  • दूसरी बार फिर पकड़े जाने पर राजा ने उसे कारागार में डाल दिया, जहां उसे बहुत दुख दिए गए और बाद में उसे नगर से निकाल दिया गया। नगर से निकाले जाने पर धृष्ट बुद्धि वन में चला गया।
  • वहां वो पशु-पक्षियों का शिकार करके उन्हें खाने लगा और कुछ समय के बाद वो बहेलिया बन गया। एक दिन वो भूख और प्यास से व्याकुल खाने की तलाश में कौडिन्य ऋषि के आश्रम पहुंच गया। उस समय वैशाख मास था और महर्षि गंगा स्नान कर वापस आ रहे थे। महर्षि के भीगे वस्त्रों के छींटे उस पर पड़ने से उसे कुछ ज्ञान की प्राप्ति हुई।
  • तब उसने कौडिन्य ऋषि से हाथ जोड़कर कहा, हे महर्षि! मैंने जीवन में बहुत पाप किए हैं, आप इन सभी पापों से मुक्ति का कोई उपाय बताएं। ऋषि ने प्रसन्न होकर उसे मोहिनी एकादशी का व्रत करने को कहा। इससे सभी पाप नष्ट हो जाएंगे। तब उसने विधि अनुसार व्रत किया।
  • महर्षि वशिष्ठ श्री राम से बोले, हे राम! इस व्रत के प्रभाव से उसके सब पाप मिट गए और अंत में वो गरुड़ पर सवार होकर बैकुंठ चला गया। इस व्रत से मोह-माया सबका नाश हो जाता है। संसार में इस व्रत से और कोई श्रेष्ठ व्रत नहीं है।
  • इस व्रत की महिमा को पढ़ने या सुनने मात्र से ही एक हजार गौ दान का फल प्राप्त होता है।

मोहिनी एकादशी व्रत का महत्व / Mohini Ekadashi Vrat Ka Mahatva

  • प्रत्येक माह में आने वाली सभी एकादशी का अलग-अलग महत्व होता है।
  • इसी तरह मोहिनी एकादशी का भी हिन्दू मान्यताओं के अनुसार एक अलग और विशेष महत्व होता है।
  • पद्म पुराण के अनुसार, जब युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से वैशाख माह शुक्ल पक्ष की एकादशी के महत्व के बारे में पूछा तो श्रीकृष्ण ने भगवान राम का स्मरण करते हुए युधिष्ठिर से कहा, ऐसा ही सवाल भगवान राम ने त्रेतायुग में महर्षि वशिष्ठ से किया था।
  • जिसका जवाब देते हुए महर्षि वशिष्ठ ने बताया कि, वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को “मोहिनी एकदाशी” के नाम से जाना जाता है।
  • इस दिव्य एकादशी का व्रत करने के सभी पापों का नाश होता है और व्यक्ति सभी प्रकार के संसार के मोह-माया से मुक्त हो जाता है।

मोहिनी एकादशी व्रत पूजा विधि / Mohini Ekadashi Vrat Pooja Vidhi

  • एकादशी के दिन प्रातः काल सूर्योदय से पहले उठें।
  • तत्पश्चात स्नान आदि करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें, यदि संभव हो तो पीले वस्त्र धारण करें।
  • यदि आपके घर के पास कोई नदी या सरोवर हो तो वहां जाकर स्नान करें और यदि न हो तो घर पर ही गंगा जल की कुछ बूंदे पानी में डालकर स्नान करें।
  • तदोपरांत व्रत का संकल्प लें।
  • अब एक साफ स्थान पर बाजोट (पटिया) स्थापित करें।
  • उसके ऊपर सबसे पहले भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
  • अब सीधे हाथ की ओर एक कलश की स्थापना करें।
  • तत्पश्चात उसके ऊपर पूजा का धागा बांधे और कलश पर तिलक लगाएं।
  • इसके बाद भगवान को हार या फूल चढ़ाएं, तिलक लगाएं।
  • तत्पश्चात भगवान के आगे शुद्ध घी का दीपक जलाएं।
  • भगवान विष्णु की पूजा पंचोपचार विधि (अबीर, गुलाल, रोली, कुंकुम और चावल) के अनुसार करें।
  • संभव हो तो गाय के दूध की खीर का भोग लगाएं।
  • ऐसा न कर पाएं तो अपनी इच्छानुसार शुद्धतापूर्वक बनी चीजों का भी भोग लगा सकते हैं।
  • यह करने के पश्चात अंत में आरती अवश्य करें।
  • इसके बाद प्रसाद वितरीत कर ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और दान दक्षिणा से देकर विदा करें।
  • एकादशी के दिन रात में सोए नहीं और भगवान श्री हरी विष्णु जी का भजन करें या मंत्र जाप भी कर सकते हैं।
  • अगले दिन प्रातः व्रत का पारण कर व्रत संपूर्ण करें।

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