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देवीची आरती PDF | Navratri Devichi Aarti PDF in Marathi

देवीची आरती PDF | Navratri Devichi Aarti Marathi PDF Download

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देवीची आरती PDF | Navratri Devichi Aarti PDF Details
देवीची आरती PDF | Navratri Devichi Aarti
PDF Name देवीची आरती PDF | Navratri Devichi Aarti PDF
No. of Pages 3
PDF Size 0.89 MB
Language Marathi
CategoryEnglish
Source pdffile.co.in
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देवीची आरती PDF | Navratri Devichi Aarti Marathi

Hello friends, today we are going to present देवीची आरती PDF / Navratri Devichi Aarti in Marathi PDF for all of you. In the Hindu Sanatan Dharma, Navratri Festival is considered one of the most joyful and significant festivals. There are many devotees who are waiting for this festival to get the special blessings of Goddess Durga.

To get the seek of Devi Maa here we are also sharing Navratri Devichi Aarti with you. It is also known as Durge Durgat Bhari Aarti pdf. There are many people who observed complete nine days fast during the Navratri festival to get the desired results in their life.

Therefore it is said that every Worship is incomplete without the Aarti ritual of God because you can’t get the complete results until you perform the Aarti properly. So guys during the worship of Goddess Durga you must do Aarti with full reverence.

दुर्गे दुर्घट भारी आरती PDF / Durge Durgat Bhari Aarti Marathi PDF

दुर्गे दुर्घट भारी तुजविण संसारी ।

अनाथनाथे अंबे करुणा विस्तारी ॥

वारी वारीं जन्ममरणाते वारी ।

हारी पडलो आता संकट नीवारी ॥ १ ॥

जय देवी जय देवी जय महिषासुरमथनी ।

सुरवरईश्वरवरदे तारक संजीवनी ॥ धृ. ॥

त्रिभुवनी भुवनी पाहतां तुज ऎसे नाही ।

चारी श्रमले परंतु न बोलावे काहीं ॥

साही विवाद करितां पडिले प्रवाही ।

ते तूं भक्तालागी पावसि लवलाही ॥ २ ॥

प्रसन्न वदने प्रसन्न होसी निजदासां ।

क्लेशापासूनि सोडी तोडी भवपाशा ॥

अंबे तुजवांचून कोण पुरविल आशा ।

नरहरि तल्लिन झाला पदपंकजलेशा ॥ ३ ॥

दुर्गे दुर्घट भारी आरती मराठी अर्थ / Durge Durgat Bhari Aarti Meaning in Hindi

दुर्गे दुर्घट भारी तुजविण संसारी ।

अनाथनाथे अंबे करुणा विस्तारी ॥

(दुर्गा- जिनकी प्राप्ति करना बहुत ही कठिन है ऐसी आदिमाता चण्डिका, दुर्घट- दु:साध्य, भारी- अत्यधिक, तुजविण- तुम्हारे बिना, संसारी- दुनिया में, अनाथनाथे- अनाथों की नाथ (पालनहार) ऐसी आदिमाता दुर्गा, अंबे- मेरी प्यारी माँ, करुणा- करुणा, विस्तारी- फैलाओ)

सरलार्थ: हे आदिमाता दुर्गा, तुम्हारे बिना इस संसार में सब कुछ बहुत ही कठिन है। हे अनाथों की नाथ रहनेवाली अंबा, अपनी करुणा का विस्तार करो। (अंबा, मैं आप तक नहीं पहुँच सकता, परंतु तुम अपनी करुणा का विस्तार मैं जहाँ हूँ वहाँ तक अवश्य कर सकती हो।)

वारी वारी जन्ममरणांतें वारी ।

हारी पडलो आता संकट निवारी ॥ 1 ॥

(वारी- निवारण कर दो, जन्ममरणांतें- जन्म-मरण के चक्कर को, हारी पडलो- हार चुका हूँ, आता- अब, संकट- आपदा, निवारी- मिटा दो)

सरलार्थ: हे आदिमाता दुर्गा, जन्ममरण के इस चक्कर का पूरी तरह निवारण कर दो। अंबा, संकट से जूझते हुए मैं हार चुका हूँ, अब आप ही इस संकट को मिटा दो।

जय देवी जय देवी महिषासुरमर्दिनी ।

सुरवरईश्वरवरदे तारक संजीवनी ॥ धृ ॥

(जय- जय हो, देवी- देवी माँ, महिषासुरमर्दिनी- महिषासुर का, अशुभ का सर्वनाश करनेवाली, सुरवरईश्वरवरदे – सुर यानी देव, सुरवरों को यानी देवगणों को और ईश्‍वर (परमात्मा) को वर देनेवाली आदिमाता दुर्गा, तारक- तारणहार, संजीवनी- समग्रता से नया जीवन देनेवाली)

सरलार्थ: देवी माँ महिषासुरमर्दिनी की जय हो! अंबा, तुम ही सुरवरों को तथा ईश्‍वर (परमात्मा) को वर देती हो, आप ही तारक हो, आप ही संजीवनी हो।

त्रिभुवनभुवनी पाहता तुजऐसी नाही ।

चारी श्रमले परंतु न बोलवे कांही ॥

साही विवाद करिता पडिले प्रवाही ।

ते तूं भक्तांलागी पावसि लवलाही॥ जय देवी…

(त्रिभुवन- पृथ्वी, अन्तरिक्ष और स्वर्ग ये तीन लोक, भुवन- लोक, पाहता- देखने पर, तुजऐसी- तुम जैसी, नाही- नहीं, चारी- चारों (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद अर्थात् चारों वेद), श्रमले- थक गये, परंतु- लेकिन, न बोलवे काही- कुछ भी कह नहीं सके, साही- छहों (वेद, वेदान्त, सांख्य, योग, न्याय और मीमांसा इन छह दर्शनों के अनुयायी), विवाद- वितण्डवाद, करिता-करते हुए, पडिले- गिर गये, प्रवाही- प्रवाह में, ते- वहीं, तू- तुम, भक्तांलागी- भक्त पर, पावसि- प्रसन्न हो जाती हो, लवलाही- झट से, तुरंत)

सरलार्थ: हे आदिमाता दुर्गामैया, त्रिभुवन में, समस्त भुवनों में देखा जाये तब भी आप जैसी कोई नहीं है। चारों वेदों ने बहुत परिश्रम किये, परंतु तुम्हारे स्वरूप के बारे में कुछ भी कहा नहीं गया। तुम्हारे स्वरूप के बारे में छह दर्शनों के अनुयायी आपसी विवाद में उलझकर कालप्रवाह में गिर गये। अंबा, इस तरह वेद और दर्शनशास्त्र तुम्हें प्राप्त नहीं कर सकते। परंतु तुम्हें आदिमाता-स्वरूप में भजनेवाले भक्तों पर आप झट से प्रसन्न हो जाती हो।

प्रसन्नवदने प्रसन्न होसी निजदासा ।

क्लेशांपासुनि सोडवी तोडी भवपाशा ॥

अंबे तुजवांचून कोण पुरविल आशा  ।

नरहरि तल्लीन झाला पदपंकजलेशा॥ जय देवी…

(प्रसन्नवदने- जिनका मुख प्रसन्न है ऐसी दुर्गामाता, प्रसन्न होसी- प्रसन्न होती हो,  निजदासा- अपने दासों पर, क्लेशांपासुनि- क्लेशों से, सोडवी- छुडाओ, तोडी- तोड दो, भवपाशा- दुनिया के बन्धनों को, अंबे- मेरी प्यारी माँ, तुजवांचून- तुम्हारे बिना, कोण- कौन, पुरविल- पूरी करेगा, आशा- आस, नरहरि- यह आरती गानेवाले नरहरिजी, तल्लीन- उसमें खो जाना, झाला- हो गया, पदपंकजलेशा- चरणकमलों की धूलि का कण (पद= चरण, पंकज= कमल, लेश= सूक्ष्म अंश, अणु)

सरलार्थ: हे प्रसन्नवदना आदिमाता दुर्गा, तुम अपने दासों पर प्रसन्न होती हो। मैया, मुझे भी सकल क्लेशों से मुक्त कर दो और भवपाशों को तोड़ दो। अंबा, तुम्हारे बिना भला और है ही कौन जो मेरी आस पूरी करेगा! (दुर्गामैया, तुम्हारे अलावा हमारी आस पूरी करनेवाला और कोई भी नहीं है।) हे आदिमाता दुर्गा, यह आरती गानेवाला नरहरि तुम्हारे चरणकमलों की धूलि के कण में तल्लीन हो गया है।

॥   हरि: ॐ   ॥       ॥   श्रीराम   ॥       ॥   अंबज्ञ   ॥

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