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महिला एवं बाल अपराध राजस्थान पुलिस | Rajasthan Police Mahila Bal Apradh Notes 2022 PDF

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महिला एवं बाल अपराध राजस्थान पुलिस | Rajasthan Police Mahila Bal Apradh Notes 2022 PDF Details
महिला एवं बाल अपराध राजस्थान पुलिस | Rajasthan Police Mahila Bal Apradh Notes 2022
PDF Name महिला एवं बाल अपराध राजस्थान पुलिस | Rajasthan Police Mahila Bal Apradh Notes 2022 PDF
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Language English
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महिला एवं बाल अपराध राजस्थान पुलिस | Rajasthan Police Mahila Bal Apradh Notes 2022

मानसकार मित्रों, आज इस लेख के माध्यम से हम आप सभी के लिए महिला एवं बाल अपराध राजस्थान पुलिस PDF प्रदान करने जा रहे हैं। महिलयों से संबन्धित अपराधों की श्रेणी में उनके शारीरिक, मानसिक, आर्थिक शोषण, यौन एवं भावनात्मक उत्पीड़न से संबन्धित अपराध प्रायः भारतीय समाज में होते हैं। इसी प्रकार बल अपराधों में भी दिन-प्रतिदिन बढ़ोत्तरी ही हो रही है। जिसके बारे में नीचे लेख में आप विस्तार रूप से जान सकते हैं।

कानूनी दृष्टिकोण से बाल अपराध 8 वर्ष से अधिक तथा 16 वर्ष से कम आयु के बालक द्वारा किया गया कानूनी विरोधी कार्य है जिसे कानूनी कार्यवाही के लिये बाल न्यायालय के समक्ष उपस्थित किया जाता है। जब किसी बच्चे द्वारा कोई कानून-विरोधी या समाज विरोधी कार्य किया जाता है तो उसे बाल अपराध कहते हैं। स्वयं किसी व्यक्ति, समूह, या समुदाय के विरुद्ध उन्हें किसी प्रकार के मानसिक या शारीरिक चोट पहुंचाने के लिए जान-बूझकर किए गए शक्ति प्रयोग को “हिंसा” कहते हैं।

वहीं जान बूझकर किया गया कोई भी ऐसा काम जो समाज विरोधी हो या किसी भी प्रकार से समाज द्वारा निर्धारित आचरण का उल्लंघन करने वाला हो, जिसके लिए दोषी व्यक्ति को भारतीय दंड संहिता (आई.पी.सी.) के अंतर्गत कानून द्वारा निर्धारित दंड दिया जाता हो ऐसे काम को “अपराध” कहते हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार प्रति वर्ष महिलायों के साथ होने वाले अपराधों के लगभग 3 लाख से ज्यादा मामले दर्ज होते हैं।

Rajasthan Police Mahila Bal Apradh Notes PDF 2022 – Mahila Bal Apradh Notes PDF

महिलाओं के प्रति हिंसा:

परिचय:

  • संयुक्त राष्ट्र महिलाओं के खिलाफ हिंसा को “लिंग आधारित हिंसा के रूप में परिभाषित करता है, जिसके परिणामस्वरूप महिलाओं को शारीरिक, यौन या मानसिक नुकसान या पीड़ा होती है, जिसमें इस तरह के कृत्यों की धमकी, ज़बरदस्ती या मनमाने ढंग से उनको स्वतंत्रता से वंचित (चाहे सार्वजनिक या निजी जीवन में हो) करना शामिल है।
  • महिलाओं के खिलाफ हिंसा एक सामाजिक, आर्थिक, विकासात्मक, कानूनी, शैक्षिक, मानव अधिकार और स्वास्थ्य (शारीरिक और मानसिक) का मुद्दा है।
  • कोविड -19 के प्रकोप के बाद से सामने आए आँकड़ों और रिपोर्टों से पता चला है कि महिलाओं एवं बालिकाओं के खिलाफ सभी प्रकार की हिंसा, विशेष रूप से घरेलू हिंसा में वृद्धि हुई है।

कारण:

  • लैंगिक असमानता महिलाओं के खिलाफ हिंसा के बड़े कारणों में से एक है जो महिलाओं को कई प्रकार की हिंसा के जोखिम में डालती है।
  • उनके अधिकारों को व्यापक रूप से संबोधित करने वाले कानूनों की अनुपस्थिति और मौजूदा विधियों की अज्ञानता।
  • सामाजिक रवैये, कलंक और कंडीशनिंग ने भी महिलाओं को घरेलू हिंसा के प्रति संवेदनशील बना दिया है तथा ये मामलों की कम रिपोर्टिंग के मुख्य कारक हैं।

प्रभाव:

  • महिलाओं और लड़कियों के विरुद्ध हिंसा के प्रतिकूल मनोवैज्ञानिक, यौन और प्रजनन स्वास्थ्य परिणाम महिलाओं को उनके जीवन के सभी चरणों में प्रभावित करते हैं।
  • उदाहरण के लिये प्रारंभिक शैक्षिक नुकसान न केवल सार्वभौमिक स्कूली शिक्षा और लड़कियों के लिये शिक्षा के अधिकार हेतु प्राथमिक बाधा उत्पन्न करते हैं; बल्कि उच्च शिक्षा तक उनकी पहुँच को प्रतिबंधित करने और यहाँ तक ​​कि श्रम बाज़ार में महिलाओं के लिये सीमित अवसरों की उपलब्धता के लिये भी दोषी हैं।

महिला अत्याचार के खिलाफ कड़े कानून

  • घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम 2005
  • कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013

भारतीय दंड संहिता में महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों अर्थात हत्या, आत्महत्या के लिए उकसाना, दहेज़ मृत्यु, बलात्कार, अपहरण आदि को रोकने का प्रावधान है। उल्लंघन की स्थिति में गिरफ़्तारी और न्यायिक दंड व्यवस्था का जिक्र इसमें किया गया है। इसके अलावा महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के भी अनेक प्रयास किये गए हैं ताकि वे अपने विरुद्ध होने वाले अत्याचार का मुकाबला कर सकें।

जैसे- पुरुष व स्त्री को समान काम के लिए समान वेतन का प्रावधान, कार्य-स्थल पर महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव से सुरक्षा और महिला कर्मचारियों के लिए अलग शौचालयों और स्नानगृहों की व्यवस्था की अनिवार्यता इत्यादि।

नाबालिग बच्चों के साथ होने वाले अपराधों के मामलों में कार्रवाई करने और उन्हें यौन उत्पीड़न, यौन शोषण और पोर्नोग्राफी जैसे गंभीर अपराधों से सुरक्षा प्रदान करने के मकसद से लैंगिक उत्पीड़न से बच्चों के संरक्षण का अधिनियम 2012 (Protection of Children from Sexual Offences Act: POCSO ACT 2012) पारित किया गया है।

Mahila Evam Bal Apradh Notes PDF: आखिर क्यों कम नहीं हो रहे हैं महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध?

न्याय में देरी:

  • भारत में बीते एक दशक में बलात्कार के जितने भी मामले दर्ज हुए हैं उनमें केवल 12 से 20 फीसदी मामलों में सुनवाई पूरी हो पायी।
  • बलात्कार के दर्ज मामलों की संख्या तो बढ़ रही है लेकिन सजा की दर नहीं बढ़ रही है।

खत्म होता सजा का डर:

  • दुष्कर्म और फिर हत्या के मामलों में न्याय में देरी होने के कारण ही गुनहगारों में सजा का भय खत्म होता जा रहा है।
  • कानून में मौत की सजा के प्रावधान होने के बाद भी बलात्कार की घटनाओं में कोई कमी नहीं दिख रही है।

अश्लील सामग्रीः

  • दुनिया भर के समाजशास्त्री, राजनेता, कानूनविद और प्रशासनिक अधिकारी मानते हैं कि पॉर्नोग्राफी बढ़ते यौन अपराधों का एक बड़ा कारण है।
  • सात साल पहले ‘निर्भया’ और अब हैदराबाद की महिला पशु चिकित्सक के साथ हुए दुष्कर्म के कारणों में एक कारण स्मार्टफोन पर उपलब्ध अश्लील फिल्में भी मानी जा रही हैं।
  • अश्लील फिल्में देखने के बाद दुष्कर्मियों ने दुष्कर्म करना स्वीकारा है, लिहाजा हम इस पहलू को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते।

पुरुषवादी मानसिकता:

  • देश भर के कम उम्र के लड़कों को आक्रामक और प्रभावशाली व्यवहार करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
  • संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) इस बारे में टिप्पणी करता है कि किस तरह ऐसी ज़हरीली मर्दानगी की भावनाएं युवाओं के ज़हन में बहुत छोटी उम्र से ही बैठा दी जाती हैं।
  • उन्हें ऐसी सामाजिक व्यवस्था का आदी बनाया जाता है, जहां पुरुष ताक़तवर और नियंत्रण रखने वाला होता है और उन्हें यह विश्वास दिलाया जाता है कि लड़कियों और महिलाओं के प्रति प्रभुत्व का व्यवहार करना ही उनकी मर्दानगी है।

महिला एवं बाल अपराध राजस्थान पुलिस PDF: बाल अपराध के प्रकार

हावर्ड बेकर ने मुख्य रूप से चार प्रकार के बाल अपराधों के बारे में बताया है। बाल अपराध व्यवहार की शैली और समय में विविधता प्रदर्शित करते हैं। प्रत्येक प्रकार का अपना सामाजिक सन्दर्भ होता है, कारण होते है तथा विरोध और उपचार के अलग स्वरूप होते हैं जो कि उपयुक्त समझे जाते हैं। इन चार अपराधों के नाम इस प्रकार हैं:

  • वैयक्तिक बाल अपराध
  • समूह समर्थित बाल अपराध
  • स्थितिजन्य बाल अपराध
  • संगठित बाल अपराध

इन अपराधों के बारे में संक्षित रूप से आप नीचे दिये गए तथ्यों के आधार पर जान सकते हैं।

वैयक्तिक बाल अपराध

  • यह वह बाल अपराध है जिसमें एक व्यक्ति ही अपराधिक कार्य करने में संलग्न होता है। और इसका कारण भी अपराधी व्यक्ति में ही खोजा जाता है।
  • इस अपराधी व्यवहार की अधिकतर व्याख्याएँ मनोचिक्त्सिक समझाते हैं, उनका तर्क है कि बाल अपराध दोषपूर्ण पारिवारिक अन्तक्रिया प्रतिमानों से उपजी मनोवैज्ञानिक समस्याओं के कारण किये जाते हैं।
  • हीले और ब्रोनर (1936) ने अपराधी युवकों की तुलना उन्हीं के अनपराधी सहोदारो से ही और उनके बीच अन्तरों का विश्लेषण किया।
  • उनकी सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि यह थी कि 13.0 प्रतिशत अनपराधी सहोदारों की तुलना मे 90.0 प्रतिशत अपराधी किशारों का घरेलू जीवन दुःख भरा था और वेअपने जीवन की परिस्थितियों से असन्तुष्ट थे, उनकी अप्रसन्नता की प्रकृति भिन्न थी।
  • कुछ तो माँ-बाप द्वारा उपेक्षित मानते थे तथा अन्य या तो हीनता का अनुभव करते थे या अपने सहोदरों से ईर्ष्या करते थे या फिर मानसिक तनाव से पीड़ित थे, इन समस्याओं के समाधान के लिए वे अपराध में लिप्त हो गये थे, क्योंकि इससे (अपराध) या तो उनके माता-पिता का ध्यान उनकी और आकर्षित होता था या उनके साथियों का समर्थन उन्हें मिलता था या उनकी अपराध भावना को कम करता था।

समूह समर्थित बाल अपराध

  • इस प्रकार के अपराध में बाल अपराध अन्य बालकों के साथ में घटित होता है और इसका कारण व्यक्ति के व्यक्तित्व या परिवार में नही मिलता, बल्कि उस व्यक्ति के परिवार व पड़ोस की संस्कृति में होता है।
  • थ्रेशर शॉ और मैके के अध्ययन भी इसी प्रकार के बाल अपराध की बात करते हैं, मुख्य रूप से यह पाया गया कि युवक अपराधी इसलिऐ बना क्योंकि वह पहले से ही अपराधी व्यक्तियों की संगति में रहता था, बाद में सदरलैंड ने इस तथ्य को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किये। जिसने विभिन्न संपर्क के सिद्धान्त का विकास किया।

स्थितिजन्य अपराध

  • स्थितिजन्य अपराध की मान्यता यह है कि अपराध गहरी जड़े नहीं रखता और अपराध के प्रकार और इसके नियंत्रित करने के साधन अपेक्षाकृत बहुत सरल होते हैं।
  • एक युवक की अपराध के प्रति गहरी निष्ठा के बिना अपराधी कृत्य में संलग्न हो जाता है, यह या तो कम विकसित, अन्तः निंयत्रण के कारण होता है या परिवार निंयत्रण में कमजोरी के कारण या इस विचार के कारण कि यदि वह पकड़ा भी जाता है तो भी उसकी अधिक हानि नहीं होगी। डेविड माटजा ने इसी प्रकार के अपराध का सदंर्भ दिया है।

संगठित बाल अपराध

  • इसमें वे अपराध सम्मिलित हैं जो औपचारिक रूप से संगठित गिरोहों द्वारा किये जाते हैं, इस प्रकार के अपराधों का विश्लेषण सन् 1950 के दशक में अमरीका में किया गया था तथा अपराधी उपसंस्कृति की अवधारणा का विकास किया गया था।
  • यह अवधारणाउन मूल्यों और मानदण्डों की ओर संकेत करती है जो समूह के सदस्यों के व्यवहार को निर्देशित करते हैं, अपराध करने के लिए डन्हें प्रोत्साहित करते हैं, इस प्रकार के कृत्यों पर उन्हें प्रस्थिति प्रदान करते हैं और उन व्यक्तियों के साथ उनके संबधो को स्पष्ट करते है जो समूह मानदण्डों से बाहर के समूह होते हैं।

बाल अपराध के कारण / Bal Apradh Ke Karan

1. पारिवारिक कारण

बाल अपराध के लिए पारिवारिक कारण जिम्मेदार होते है। परिवार वह प्राथमिक संस्था है जहाँ बच्चे का लालन-पालन एवं समाजीकरण होता है। प्रेम और सहयोग एवं सामाजिक नियमों का प्रशिक्षण भी बच्चा परिवार मे ही प्राप्त करता है। लेकिन यदि परिवार संगठित न हो एवं परिवार की आर्थिक दशा एवं निवास की स्थितियाँ एवं माता-पिता और बच्चो के बीच संबंधो मे संतुलन न हो तो विपरीत स्थितियां निर्मित हो जाती है।

इस विचारधारा की निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-

(अ) टूटे परिवार

कई बार  विच्छेद के सिद्धांतों को स्वीकार करने के कारण अथवा परिवार के सदस्यों मे आर्थिक समस्याओं को लेकर परिवार विघटनकारी प्रक्रियाओं की तरफ अग्रसर होने लगता है। ऐसी स्थिति मे बच्चों का उचित रूप से विकास सम्भव नही हो पाता। ऐसी स्थिति मे कई बार बच्चे बाल अपराधों की तरफ अग्रसर होने लगते हैं।

(ब) अनैतिक परिवार

प्रायः यह देखा गया है कि बहुत से परिवारों मे नैतिकता के सिद्धांतों को महत्व नही दिया जाता। माता-पिता एक तरफ अपने कार्यालयों मे व्यस्त रहते है तो दूसरी तरफ बच्चे सड़कों पर घूमते हुए नजर आते है, असामाजिक क्रियाओं की तरफ बढ़ने लगते है। इसके अलावा अगर परिवार मे जीवन साथी यौन-सम्बन्ध स्थापित करने मे सावधानियाँ नही बरतते है, तब बच्चे आपराधिक क्रियाओं की तरफ बढ़ सकते है।

(स) त्रुटिपूर्ण अनुशासन

बाल अपराधशास्त्रियों का यह भी कहना है कि बाल अपराधों को बढ़ाने मे परिवारों मे अनुशासनहीनता की व्यवस्थाओं का भी होना है। बहुत से माता-पिता बच्चों के पालन पोषण मे विशिष्ट तरह के मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों का पालन नही करते है या वे बच्चों बहुत सजाएँ देते है। ऐसी स्थिति मे बालकों मे असामाजिक प्रवृत्तियों को प्रोत्साहन मिले बगैर नही रहता है।

(द) सौतेले माता-पिता का व्यवहार

माता-पिता या संरक्षकगण अपने बच्चों के साथ असमानताओं का व्यवहार करते हो, किसी बच्चे की तो अत्यधिक प्रशंसा करते हों तथा दूसरे बच्चों को परिहास का विषय बनाते हो तो ऐसी स्थिति मे बच्चों मे हीनता तथा निराशा की भावनाएं पैदा हुए बिना न रह सकेंगी। ऐसे बच्चे प्रारंभ मे तो परिवार के नियमों का उल्लंघन करते है तथा उसके बाद समाज के नियमों के विरूद्ध कार्यवाहियाँ करने मे किसी भी प्रकार से हिचकिचाहट का एहसास नही करते है।

2. आर्थिक कारण

अर्थिक परिस्थितियों और बाल अपराध मे घनिष्ठ संबंध है। अधिकांश बाल अपराधी वे बच्चे होते है जिनके माता-पिता की आर्थिक स्थिति ठीक नही होती। कभी-कभी ऐसे घरों मे माता-पिता स्वयं अपराध मे लिप्त होते है अतः उनके बच्चे उस व्यवहार का अनुकरण कर लेते है। इसके अलावा निर्धनता की स्थिति मे बच्चे की आवश्यकताएं पूरी नही हो पती। अतः यह असंतोष उनके अंदर कुंठा पैदा करता है और ऐसी स्थिति मे बच्चा अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए चोरी एवं अन्य अपराधों की तरफ बढ़ जाता है।

3. सांस्कृतिक कारण

बाल अपराध के कारणों मे से एक कारण सांस्कृतिक भी है। प्रत्येक समाज की संस्कृति मे स्वीकृति एवं मान्य व्यवहार प्रणालियों के निश्चित मानक होते है। इनके अनुरूप आचरण से समूह मे समायोजन की प्रक्रिया विकसित होती है। लेकिन जब सांस्कृतिक प्रतिमानों के विपरीत आचरण विकसित होता है तो समूह मे कुसमायोजन की प्रक्रिया पनपने लगती है। नगरीकरण और विभिन्न संचार के साधनों के माध्यम से सांस्कृतिक परिवर्तन की गति समाज मे तेजी से बढ़ी है। यहि कारण है कि मूल्यों का भम्र, नैतिक पतन बढ़ रहा है। परिवार जैसी संस्था द्वारा प्राथमिक नियंत्रण कमजोर हो रहा है। बच्चे अनियंत्रित स्वतंत्रता की मांग कर रहे है साथ ही मनोरंजन की प्रकृति भी व्यावसायिक हो गई है। अपराधी प्रवृत्ति मे संलग्न बच्चे अश्लील साहित्य एवं चलचित्रों के माध्यम से अपराधी व्यवहार का प्रशिक्षण प्राप्त करने लगे है।

4. स्वस्थ मनोरंजन के साधनों अभाव

हर व्यक्ति कार्य के बाद मनोरंजन चाहता है। मनोरंजन सिर्फ व्यतीत करने या दिन बहलाने का साधन मात्र ही नही वरन् व्यक्ति के संतुलित विकास का भी अच्छा साधन बन सकता है। स्लैंगर का कथन है कि जो लड़का खेल हेतु सड़को अथवा गलियों का प्रयोग करता है वह उतना दोषी नही जितना कि वह समुदाय जो खेलकूद के साधनों की व्यवस्था नही करता है। स्वास्थ मनोरंजन के साधनों की कमी से बालकों का ध्यान कई तरह की शरारतों की तरफ जाता है।

5. चलचित्र

चलचित्र भी बाल अपराध का कारण है चलचित्र आजकल मनोरंजन का मुख्य साधन बनता जा रहा है, बालकों के सामने उच्च आदर्श पेश नही कर पाता है। बहुत से बालक तो सिर्फ अपनी अतृप्त कामुकता को शान्त करने हेतु चलचित्रों मे जाते है। इनमे इस तरह के कई ऐसे समाज विरोधी कार्य दिखाई जाते है जिन्हें बालक सीख जाता है एवं दैनिक जीवन मे उनका प्रयोग करने की कोशिश करता है।

Mahila Bal Apradh PDF / बाल अपराध को रोकने के उपाय

बाल अपराधों को रोकने के लिये वर्तमान में दो प्रकार के उपाय किये गए हैं प्रथम उनके लिए नए कानूनों का निर्माण किया गया है और द्वितीय सुधार संस्थाओं एव स्कूलों का निर्माण किया गया है। यहाँ हम दोनों प्रकार के उपायों का उल्लेख करेंगे।

कानूनी उपाय

  • बाल अपराधियों को विशेष सुविधा देने ओर न्याय की उचित प्रणाली अपनाने के लिये बाल-अधिनियम और सुधारालय अधिनियम बनाए गए है।
  • भारत मे बच्चों की सुरक्षा के लिए 20वीं सदी की दूसरी दशाब्दी में कई कानून बनें सन् 1860 में भारतीय दण्ड संहिता के भाग 399 व 562 में बाल अपराधियों को जेल के स्थान पर रिफोमेट्रीज में भेजने का प्रावधान किया गया।
  • दण्ड विधान के इतिहास में पहली बार यह स्वीकार किया कि बच्चों को दण्ड देने के बजाच उनमें सुधार किया जाए एवं उन्हें युवा अपराधियों से पृथक रखा जाए।
  • संपूर्ण भारत के लिए सन् 1876 में सुधारालय स्कूल अधिनियम बना जिसमें 1897 में संशोधन किया गया, यह अधिनियम भारत के अन्य स्थानों पर 15 एवं बम्बई में 16 वर्ष के बच्चों पर लागू होता था।
  • इस कानून में बाल-अपराधियों को औद्योगिक प्रशिक्षण देने की बात भी कही गयी थी, अखिल भारतीय स्तर के स्थान पर अलग-अलग प्रान्तों मे बाल अधिनियम बने।
  • सन् 1920 में मद्रास, बंगाल, बम्बई, दिल्ली, पंजाब में एवं 1949 में उत्तरप्रदेश मै और 1970 में राजस्थान मे बाल अधिनियम बने, बाल अधिनियमों में समाज विरोधी व्यवहार व्यक्त करने वाले बालकों को प्रशिक्षण देने तथा कुप्रभाव से बचाने के प्रयास किये गए, उनके लिये दण्ड के स्थानपर सुधार को स्वीकार किया गया।

बाल न्यायालय

  • भारत में 1960 के बाल अधिनियम के तहत बाल न्यायालय स्थापित किये गये है। सन् 1960 के बाल अधिनियम का स्थान बाल न्याया अधिनियम 1986 ने ले लिया है।
  • इस समय भारत के सभी राज्यों मे बाल न्यायालय है। बाल न्यायालय मे एक प्रथम श्रेणी का मजिस्ट्रेट, अपराधी बालक, माता-पिता, प्रोबेशन अधिकारी, साधारण पोशक मे पुलिस, कभी-कभी वकील भी उपस्थित रहते हैं।
  • बाल न्यायालय का वातावरण इस प्रकार का होता है कि बच्चे के मष्तिष्क में कोर्ट का आंतक दूर हो जाए, ज्यों ही कोई बालक अपराध करता है तो पहले उसे रिमाण्ड क्षेत्र में भेजा जाता है और 24 घंटे के भीतर उसे बाल न्यायालय के सम्मुख प्रस्तुत किया जाता है, उसकी सुनवाई के समय उस व्यक्ति को भी बुलाया जाता है जिसके प्रति बालक ने अपराध किया।
  • सुनवाई के बाद अपराधी बालकों को चेतवनी देकर, जुर्माना करके या माता-पिता से बॉण्ड भरवा कर उन्हें सौंप दिया जाता है अथवा उन्हें परिवीक्षा पर छोड़ दिया जाता है या किसी सुधार संस्था, मान्यता प्राप्त विद्यालय परिवीक्षा हॉस्टल में रख दिया जाता है।

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