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Shapath Grahan Praroop PDF

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Shapath Grahan Praroop PDF Details
Shapath Grahan Praroop
PDF Name Shapath Grahan Praroop PDF
No. of Pages 5
PDF Size 0.27 MB
Language English
CategoryEnglish
Source pdffile.co.in
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Downloads17
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Shapath Grahan Praroop

नमस्कार मित्रों, इस पोस्ट के द्वारा आज हम आपको शपथ ग्रहण का प्रारूप PDF प्रदान करने जा रहे हैं। अगर आप इसे पहले से ही ढूंढ रहे हैं और खोज नहीं पा रहे हैं तो यह आर्टिकल आपके लिए बहुत ही लाभकारी होगा। जैसा कि आपको पता होगा कि शपथ किसी तथ्य या प्रतिज्ञा की ऐसी अभिव्यक्ति होती है जिसके सत्य होने का आश्वासन उसमें किसी पवित्र चीज़ का उल्लेख के आधार पर हो।

उदाहरण के लिए “मैं ईश्वर की शपथ लेता हूँ कि अपना दायित्व सच्चाई से निभाऊँगा” यह एक प्रकार की शपथ है। शपथ-पत्र में शपथकर्ता शपथ लेकर बयान देता है कि वह जो कुछ भी जानकारी दे रहा है वह सच है। इसके बाद वह अपना दस्तखत करता है और फिर उस बयान को ओथ कमिश्नर या नोटरी पब्लिक प्रमाणित करता है।

शपथ ग्रहण का प्रारूप PDF

1. संघ के मंत्री के लिए पद की शपथ का प्ररूप :-

‘मैं, अमुक, ईश्वर की शपथ लेता हूँ/सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा, (संविधान (सोलहवाँ संशोधन) अधिनियम, 1963 की धारा 5 द्वारा अंतःस्थापित।) मैं भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखूँगा, मैं संघ के मंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक और शुद्ध अंतःकरण से निर्वहन करूँगा तथा मैं भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना, सभी प्रकार के लोगों के प्रति संविधान और विधि के अनुसार न्याय करूँगा।’

2. संघ के मंत्री के लिए गोपनीयता की शपथ का प्ररूप :-

‘मैं, अमुक, ईश्वर की शपथ लेता हूँ/सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ कि जो विषय संघ के मंत्री के रूप में मेरे विचार के लिए लाया जाएगा अथवा मुझे ज्ञात होगा उसे किसी व्यक्ति या व्यक्तियों को, तब के सिवाय जबकि ऐसे मंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों के सम्यक्‌ निर्वहन के लिए ऐसा करना अपेक्षित हो, मैं प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से संसूचित या प्रकट नहीं करूँगा।’

* (संविधान (सोलहवाँ संशोधन) अधिनियम, 1963 की धारा 5 द्वारा प्ररूप 3 के स्थान पर प्रतिस्थापित।)

3. (क) संसद के लिए निर्वाचन के लिए अभ्यर्थी द्वारा ली जाने वाली शपथ या किए जाने वाले प्रतिज्ञान का प्ररूप :-

‘मैं, अमुक, जो राज्यसभा (या लोकसभा) में स्थान भरने के लिए अभ्यर्थी के रूप में नामनिर्देशित हुआ हूँ ईश्वर की शपथ लेता हूँ/सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा और मैं भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखूँगा।’

3. (ख) संसद के सदस्य द्वारा ली जाने वाली शपथ या किए जाने वाले प्रतिज्ञान का प्ररूप :-

‘मैं, अमुक, जो राज्यसभा (या लोकसभा) में स्थान भरने के लिए अभ्यर्थी के रूप में निर्वाचित या नामनिर्देशित हुआ हूँ ईश्वर की शपथ लेता हूँ/सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा, मैं भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखूँगा तथा जिस पद को मैं ग्रहण करने वाला हूँ उसके कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक निर्वहन करूँगा।’

4. उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों और भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक द्वारा ली जाने वाली शपथ या किए जाने वाले प्रतिज्ञान का प्ररूप :-

‘मैं, अमुक, जो भारत के उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायमूर्ति (या न्यायाधीश) (या भारत का नियंत्रक-महालेखापरीक्षक) नियुक्त हुआ हूँ, ईश्वर की शपथ लेता हूँ/सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा, (संविधान (सोलहवाँ संशोधन) अधिनियम, 1963 की धारा 5 द्वारा अंतःस्थापित।) (मैं भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखूँगा) तथा मैं सम्यक्‌ प्रकार से और श्रद्धापूर्वक तथा अपनी पूरी योग्यता, ज्ञान और विवेक से अपने पद के कर्तव्यों का भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना पालन करूँगा तथा मैं संविधान और विधियों की मर्यादा बनाए रखूँगा।’

5. किसी राज्य के मंत्री के लिए पद की शपथ का प्ररूप :-

‘मैं, अमुक, ईश्वर की शपथ लेता हूँ/सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा, (संविधान (सोलहवाँ संशोधन) अधिनियम, 1963 की धारा 5 द्वारा अंतःस्थापित।) (मैं भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखूँगा,) मैं ——— राज्य के मंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक और शुद्ध अंतःकरण से निर्वहन करूँगा तथा मैं भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना, सभी प्रकार के लोगों के प्रति संविधान और विधि के अनुसार न्याय करूँगा।’

6. किसी राज्य के मंत्री के लिए गोपनीयता की शपथ का प्ररूप :-

‘मैं, अमुक, ईश्वर की शपथ लेता हूँ/सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ कि जो विषय ——————- राज्य के मंत्री के रूप में मेरे विचार के लिए लाया जाएगा अथवा मुझे ज्ञात होगा उसे किसी व्यक्ति या व्यक्तियों को, तब के सिवाय जबकि ऐसे मंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों के सम्यक्‌ निर्वहन के लिए ऐसा करना अपेक्षित हो, मैं प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से संसूचित या प्रकट नहीं करूँगा।’

* (संविधान (सोलहवाँ संशोधन) अधिनियम, 1963 की धारा 5 द्वारा प्ररूप 7 के स्थान पर प्रतिस्थापित।)

7. (क) किसी राज्य के विधान मंडल के लिए निर्वाचन के लिए अभ्यर्थी द्वारा ली जाने वाली शपथ या किए जाने वाले प्रतिज्ञान का प्ररूप :-

‘मैं, अमुक, —————- जो विधानसभा (या विधान परिषद्) में स्थान भरने के लिए अभ्यर्थी के रूप में नामनिर्देशित हुआ हूँ, ईश्वर की शपथ लेता हूँ/सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा और मैं भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखूँगा।’

7. (ख) किसी राज्य के विधान मंडल के सदस्य द्वारा ली जाने वाली शपथ या किए जाने वाले प्रतिज्ञान का प्ररूप :-

‘मैं, अमुक, जो विधानसभा (या विधान परिषद्) का सदस्य निर्वाचित (या नामनिर्देशित) हुआ हूँ, ईश्वर की शपथ लेता हूँ/सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा, मैं भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखूँगा तथा जिस पद को मैं ग्रहण करने वाला हूँ उसके कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक निर्वहन करूँगा।’

8. उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा ली जाने वाली शपथ या किए जाने वाले प्रतिज्ञान का प्ररूप :-

‘मैं, अमुक, जो —————–उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायमूर्ति (या न्यायाधीश) नियुक्त हुआ हूँ ईश्वर की शपथ लेता हूँ/सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा, (संविधान (सोलहवाँ संशोधन) अधिनियम, 1963 की धारा 5 द्वारा अंतःस्थापित।) (मैं भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखूँगा) तथा मैं सम्यक्‌ प्रकार से और श्रद्धापूर्वक तथा अपनी पूरी योग्यता, ज्ञान और विवेक से अपने पद के कर्तव्यों का भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना पालन करूँगा तथा मैं संविधान और विधियों की मर्यादा बनाए रखूँगा।’

* (संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 3 द्वारा चौथी अनुसूची के स्थान पर प्रतिस्थापित।)

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