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सोमवार व्रत कथा आरती PDF | Somvar Vrat Katha Aarti PDF in Hindi

सोमवार व्रत कथा आरती PDF | Somvar Vrat Katha Aarti Hindi PDF Download

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सोमवार व्रत कथा आरती PDF | Somvar Vrat Katha Aarti PDF Details
सोमवार व्रत कथा आरती PDF | Somvar Vrat Katha Aarti
PDF Name सोमवार व्रत कथा आरती PDF | Somvar Vrat Katha Aarti PDF
No. of Pages 9
PDF Size 0.98 MB
Language Hindi
CategoryEnglish
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सोमवार व्रत कथा आरती PDF | Somvar Vrat Katha Aarti Hindi

नमस्कार मित्रों, आज इस लेख के माध्यम से हम आप सभी के लिए सोमवार व्रत कथा आरती PDF / Somvar Vrat Katha Aarti PDF प्रदान करने जा रहे हैं। हिन्दू धर्म में सोमवार के व्रत को बहुत ही महत्वपूर्ण व्रत माना जाता है। सोमवार का व्रत शंकर जी को समर्पित होता है। शंकर जी को कई नामों जैसे भोलेनाथ, महाकाल, त्रिपुरारी आदि नामों से भी जाना जाता है।

इस व्रत को करने वाले भक्तों पर भगवान भोले शीघ्र ही कृपा करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस व्रत को करने वाली कुँवारी कन्याओं को मनचाहे वर की प्राप्ति होती है। घर की सुख – शांति एवं समृद्धि के लिए भी अनेकों भक्त इस व्रत का पालन करते हैं। इसीलिए अगर आप भी अपने जीवन में भगवान भोलेनाथ की विशेष कृपा प्राप्त करना चाहते हैं तो सोमवार के व्रत का पालन एवं भोलेनाथ की आरती श्रद्धापूर्वक अवश्य करें।

सोमवार व्रत कथा PDF | Somvar Vrat Katha PDF in Hindi

  • किसी नगर में एक साहूकार रहता था। उसके घर में धन की कोई कमी नहीं थी लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी जिस वजह से वह बेहद दुखी था। पुत्र प्राप्ति के लिए वह भगवान शिव का प्रत्येक सोमवार को व्रत रखता था और पूरी श्रद्धा के साथ शिवालय में जाकर भगवान शिव और पार्वती जी की पूजा करता था।
  • उसकी भक्ति देखकर माँ पार्वती प्रसन्न हो गई और भगवान शिव से उस साहूकार की मनोकामना पूर्ण करने का निवेदन किया। पार्वती जी की इच्छा सुनकर भगवान शिव ने कहा कि “हे पार्वती! इस संसार में हर प्राणी को उसके कर्मों के अनुसार फल मिलता है और जिसके भाग्य में जो हो उसे भोगना ही पड़ता है।” लेकिन पार्वती जी ने साहूकार की भक्ति का मान रखने के लिए उसकी मनोकामना पूर्ण करने की इच्छा जताई।
  • माता पार्वती के आग्रह पर शिवजी ने साहूकार को पुत्र-प्राप्ति का वरदान तो दिया लेकिन साथ ही यह भी कहा कि उसके बालक की आयु केवल बारह वर्ष होगी। माता पार्वती और भगवान शिव की इस बातचीत को साहूकार सुन रहा था। उसे ना तो इस बात की खुशी थी और ना ही गम। वह पहले की भांति शिवजी की पूजा करता रहा।
  • कुछ समय उपरांत साहूकार के घर एक पुत्र का जन्म हुआ। जब वह बालक ग्यारह वर्ष का हुआ तो उसे पढ़ने के लिए काशी भेज दिया गया। साहूकार ने पुत्र के मामा को बुलाकर उसे बहुत सारा धन दिया और कहा कि तुम इस बालक को काशी विद्या प्राप्ति के लिए ले जाओ और मार्ग में यज्ञ कराओ। जहां भी यज्ञ कराओ वहीं पर ब्राह्मणों को भोजन कराते और दक्षिणा देते हुए जाना। दोनों मामा-भांजे इसी तरह यज्ञ कराते और ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देते काशी की ओर चल पड़े।
  • राते में एक नगर पड़ा जहां नगर के राजा की कन्या का विवाह था। लेकिन जिस राजकुमार से उसका विवाह होने वाला था वह एक आँख से काना था। राजकुमार के पिता ने अपने पुत्र के काना होने की बात को छुपाने के लिए एक चाल सोची। साहूकार के पुत्र को देखकर उसके मन में एक विचार आया। उसने सोचा क्यों न इस लड़के को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूँ। विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर ले जाऊंगा।
  • लड़के को दूल्हे का वस्त्र पहनाकर राजकुमारी से विवाह कर दिया गया। लेकिन साहूकार का पुत्र एक ईमानदार व्यक्ति था। उसे यह बात न्यायसंगत नहीं लगी। उसने अवसर पाकर राजकुमारी की चुन्नी के पल्ले पर लिखा कि “तुम्हारा विवाह मेरे साथ हुआ है लेकिन जिस राजकुमार के संग तुम्हें भेजा जाएगा वह एक आँख से काना है। मैं तो काशी पढ़ने जा रहा हूं।”
  • जब राजकुमारी ने चुन्नी पर लिखी बातें पढ़ी तो उसने अपने माता-पिता को यह बात बताई। राजा ने अपनी पुत्री को विदा नहीं किया जिससे बारात वापस चली गई। दूसरी ओर साहूकार का लड़का और उसका मामा काशी पहुंचे और वहां जाकर उन्होंने यज्ञ किया। जिस दिन लड़के की आयु 12 साल की हुई उसी दिन यज्ञ रखा गया। लड़के ने अपने मामा से कहा कि मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है। मामा ने कहा कि तुम अन्दर जाकर सो जाओ।
  • शिवजी के वरदानुसार कुछ ही क्षणों में उस बालक के प्राण निकल गए। मृत भांजे को देख उसके मामा ने विलाप शुरू किया। संयोगवश उसी समय शिवजी और माता पार्वती उधर से जा रहे थे। पार्वती ने भगवान से कहा- प्राणनाथ, मुझे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहे। आप इस व्यक्ति के कष्ट को अवश्य दूर करें| जब शिवजी मृत बालक के समीप गए तो वह बोले कि यह उसी साहूकार का पुत्र है, जिसे मैंने 12 वर्ष की आयु का वरदान दिया। अब इसकी आयु पूरी हो चुकी है।
  • लेकिन मातृ भाव से विभोर माता पार्वती ने कहा कि हे महादेव आप इस बालक को और आयु देने की कृपा करें अन्यथा इसके वियोग में इसके माता-पिता भी तड़प-तड़प कर मर जाएंगे। माता पार्वती के आग्रह पर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित होने का वरदान दिया। शिवजी की कृपा से वह लड़का जीवित हो गया। शिक्षा समाप्त करके लड़का मामा के साथ अपने नगर की ओर चल दिया।
  • दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचे, जहां उसका विवाह हुआ था। उस नगर में भी उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया। उस लड़के के ससुर ने उसे पहचान लिया और महल में ले जाकर उसकी आवभगत की और अपनी पुत्री को उसके साथ विदा कर दिया।
  • इधर भूखे-प्यासे रहकर साहूकार और उसकी पत्नी बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने प्रण कर रखा था कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो वह भी प्राण त्याग देंगे परंतु अपने बेटे के जीवित होने का समाचार पाकर वह बेहद प्रसन्न हुए। उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी के स्वप्न में आकर कहा- हे श्रेष्ठी, मैंने तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रतकथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लम्बी आयु प्रदान की है।
  • इसीलिए यह माना जाता है कि जो कोई भी सोमवार का व्रत करता है या कथा सुनता और पढ़ता है तो उसके सभी दुख दूर होते हैं और उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

शिव जी की आरती PDF | Shiv Ji Ki Aarti PDF in Hindi

ओम जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा। ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥
ओम जय शिव ओंकारा॥

एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे। हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥

दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे। त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥

अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी। त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥
ओम जय शिव ओंकारा॥

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे। सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥

कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूलधारी। सुखकारी दुखहारी जगपालनकारी॥
ओम जय शिव ओंकारा॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका। मधु-कैटभ दो‌उ मारे, सुर भयहीन करे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥

लक्ष्मी, सावित्री पार्वती संगा। पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा॥
ओम जय शिव ओंकारा॥

पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा। भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥
ओम जय शिव ओंकारा॥

जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला। शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥
ओम जय शिव ओंकारा॥

काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी। नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥
ओम जय शिव ओंकारा॥

त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे। कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

सोमवार व्रत की विधि PDF | Somvar Vrat Vidhi in Hindi PDF

  • सर्वप्रथम सोमवार के व्रत को करने के लिए प्रातः जल्दी उठें।
  • इसके बाद स्नान आदि से शुद्ध होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें।
  • तत्पश्चात शिवलिंग पर जल, इत्र, पुष्प-धतूरे एवं बेलपत्र अर्पित करें।
  • इसके बाद हो सके तो शिवलिंग पर शहद या गन्ने का रस चढ़ाए।
  • पूजा करते समय शिव जी एवं माँ गौरी की पूजा एक साथ करनी चाहिए।
  • शिव पूजन के पश्चात सोमवार के व्रत की कथा सुननी चाहिए।
  • अंत में शिव आरती अवश्य करें, एवं अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए ह्रदय से प्रार्थना करें।
  • इसके बाद इस व्रत में मात्र एक समय ही भोजन करना चाहिए।

सोमवार व्रत के लाभ / Benefits of Somvar Vrat

  • जो व्यक्ति सोमवार का व्रत पूरी श्रद्धा से करता है उसे मनोवांछित फल की अवश्य प्राप्ति होती है।
  • दिमाग से कमजोर बच्चों को सोमवार के दिन शिव जी की पूजा करने से विशेष लाभ मिलता है।
  • सोमवार का व्रत करने से मनचाहे वर की प्राप्ति होती है।
  • अगर जो व्यक्ति बेरोजगारी से बहुत समय से दुखी हो उसे इस व्रत के करने से तत्काल ही इस दुख से छुटकारा मिलता है।
  • इस व्रत को करने से ग्रह क्लेश एवं जीवन में आने वाले अनेकों कष्टों से शीघ्र ही मुक्ति मिलती है।
  • सोमवार का व्रत श्रद्धापूर्वक करने से भक्तों को मनचाहे फल की प्राप्ति होती है।

सोमवार व्रत कथा इन हिंदी PDF

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