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सुंदरकांड पाठ हिंदी में PDF

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सुंदरकांड पाठ हिंदी में
PDF Name सुंदरकांड पाठ हिंदी में PDF
No. of Pages 64
PDF Size 0.20 MB
Language English
CategoryEnglish
Source pdffile.co.in
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सुंदरकांड पाठ हिंदी में

नमस्कार मित्रों, आज इस लेख के माध्यम से हम आप सभी के लिए सुंदरकांड पाठ हिंदी में PDF प्रदान करने जा रहे हैं। सुंदरकांड एक बहुत ही सुंदर एवं चमत्कारी काव्य रचना है। सनातन हिन्दू धर्म में सुंदरकांड के पाठ का विशेष महत्व माना गया है। यह दिव्य काव्य रचना हनुमान जी को समर्पित है। इसके द्वारा हनुमान जी की स्तुति करके उनको आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है।

सुंदरकांड का प्रतिदिन जाप करने से हनुमान जी शीघ्र प्रसन्न होकर अपने भक्तों पर कृपा करते हैं। यह माना जाता है कि यदि कोई व्यक्ति बहुत समय से किसी भी परेशानी या गृह क्लेश से पीड़ित हो तो इस दिव्य सुंदरकाण्ड का पाठ करने से उसकी सभी परेशानियों का अंत तत्काल ही हो जाता है। हनुमान जी के भक्तों द्वारा हनुमान जी को अनेकों प्रकार के पाठ, स्तोत्र एवं वंदना करके प्रसन्न किया जाता है।

उन्हीं सभी पाठ, वंदनाओं में से सुंदरकांड के पाठ को अत्यंत प्रभावशाली माना गया है। क्योंकि इसके पाठ के माध्यम से व्यक्ति को मनचाहे फल की शीघ्र ही प्राप्ति होती है। इस पाठ का जाप करने से भक्तों के जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है। इसके निरंतर जाप करने से बजरंगबली हनुमान जी अपने भक्तों के सभी दुख एवं संकटों को हर लेते हैं, इसी के साथ भक्तों को एक शांतिपूर्ण जीवन जीने का वरदान भी देते हैं।

सुंदरकांड पाठ हिंदी में PDF / Sunderkand Path in Hindi PDF

1 – जगदीश्वर की वंदना

शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं
ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम्।
रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं
वन्देऽहंकरुणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणिम्॥1॥

भावार्थ: शान्त, सनातन, अप्रमेय (प्रमाणों से परे), निष्पाप, मोक्षरूप परमशान्ति देने वाले, ब्रह्मा, शम्भु और शेषजी से निरंतर सेवित, वेदान्त के द्वारा जानने योग्य, सर्वव्यापक, देवताओं में सबसे बड़े, माया से मनुष्य रूप में दिखने वाले, समस्त पापों को हरने वाले, करुणा की खान, रघुकुल में श्रेष्ठ तथा राजाओं के शिरोमणि राम कहलाने वाले जगदीश्वर की मैं वंदना करता हूँ॥1॥

2 – रघुनाथ जी से पूर्ण भक्ति की मांग

नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये
सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा।
भक्तिं प्रयच्छ रघुपुंगव निर्भरां मे
कामादिदोषरहितंकुरु मानसं च॥2॥

भावार्थ: हे रघुनाथजी! मैं सत्य कहता हूँ और फिर आप सबके अंतरात्मा ही हैं (सब जानते ही हैं) कि मेरे हृदय में दूसरी कोई इच्छा नहीं है। हे रघुकुलश्रेष्ठ! मुझे अपनी निर्भरा (पूर्ण) भक्ति दीजिए और मेरे मन को काम आदि दोषों से रहित कीजिए॥2॥

3 – हनुमान जी का वर्णन

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तंवातजातं नमामि॥3॥

भावार्थ: अतुल बल के धाम, सोने के पर्वत (सुमेरु) के समान कान्तियुक्त शरीर वाले, दैत्य रूपी वन (को ध्वंस करने) के लिए अग्नि रूप, ज्ञानियों में अग्रगण्य, संपूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी, श्री रघुनाथजी के प्रिय भक्त पवनपुत्र श्री हनुमान् जी को मैं प्रणाम करता हूँ ॥3॥

4 – जामवंत के वचन हनुमान् जी को भाए

चौपाई :
जामवंत के बचन सुहाए,
सुनि हनुमंत हृदय अति भाए॥
तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई,
सहि दुख कंद मूल फल खाई ॥1॥

भावार्थ: जामवंत के सुंदर वचन सुनकर हनुमान् जी के हृदय को बहुत ही भाए। (वे बोले-) हे भाई! तुम लोग दुःख सहकर, कन्द-मूल-फल खाकर तब तक मेरी राह देखना ॥1॥

5 – हनुमान जी का प्रस्थान

जब लगि आवौं सीतहि देखी,
होइहि काजु मोहि हरष बिसेषी॥
यह कहि नाइ सबन्हि कहुँ माथा,
चलेउ हरषि हियँ धरि रघुनाथा ॥2॥

भावार्थ: जब तक मैं सीताजी को देखकर (लौट) न आऊँ। काम अवश्य होगा, क्योंकि मुझे बहुत ही हर्ष हो रहा है। यह कहकर और सबको मस्तक नवाकर तथा हृदय में श्री रघुनाथजी को धारण करके हनुमान् जी हर्षित होकर चले ॥2॥

6 – हनुमान जी का पर्वत में चढ़ना

सिंधु तीर एक भूधर सुंदर,
कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर॥
बार-बार रघुबीर सँभारी,
तरकेउ पवनतनय बल भारी ॥3॥

भावार्थ: समुद्र के तीर पर एक सुंदर पर्वत था। हनुमान् जी खेल से ही (अनायास ही) कूदकर उसके ऊपर जा चढ़े और बार-बार श्री रघुवीर का स्मरण करके अत्यंत बलवान् हनुमान् जी उस पर से बड़े वेग से उछले॥3॥

7 – पर्वत का पाताल में धसना

जेहिं गिरि चरन देइ हनुमंता,
चलेउ सो गा पाताल तुरंता॥
जिमि अमोघ रघुपति कर बाना,
एही भाँति चलेउ हनुमाना॥4॥

भावार्थ: जिस पर्वत पर हनुमान् जी पैर रखकर चले (जिस पर से वे उछले), वह तुरंत ही पाताल में धँस गया। जैसे श्री रघुनाथजी का अमोघ बाण चलता है, उसी तरह हनुमान् जी चले॥4॥

8 – समुन्द्र का हनुमान जी को दूत समझना

जलनिधि रघुपति दूत बिचारी,
तैं मैनाक होहि श्रम हारी॥5॥

भावार्थ: समुद्र ने उन्हें श्री रघुनाथजी का दूत समझकर मैनाक पर्वत से कहा कि हे मैनाक! तू इनकी थकावट दूर करने वाला हो (अर्थात् अपने ऊपर इन्हें विश्राम दे)॥5॥

सुंदरकांड पाठ के लाभ

  • सुंदरकांड पाठ करने से भगवान बजरंगबली शीघ्र ही प्रसन्न होते है।
  • सुंदरकांड का चालीस सप्ताह श्रद्धापूर्वक निरंतर जाप करने से व्यक्ति के सभी मनोरथ पूरे होते हैं।
  • इस पाठ का जाप करने से भक्तों के जीवन के सभी कष्ट, दुःख एवं परेशानियों का तत्काल निवारण हो जाता है।
  • कई ज्योतिषो का मानना है कि अगर किसी के जीवन में बहुत परेशानियां हो तथा बहुत समय से कोई काम नहीं बन पा रहा हो, एवं जीवन में आत्मविश्वास की कमी हो तो सुंदरकांड का पाठ व्यक्ति को शीघ्र ही शुभ फल प्रदान करता है।
  • इस दिव्य पाठ का जाप करने से हनुमान जी अपने भक्तों को मन चाहा वरदान प्रदान करते हैं।
  • इस पाठ का जाप करने से मनुष्य के जीवन में सुख एवं समृद्धि आती है।
  • प्रतिदिन इसका जाप करने से हनुमान जी व्यक्ति के सभी दुखों का नाश करते हैं।
  • इसका जाप करने से मनुष्य को शांति पूर्ण जीवन की प्राप्ति होती हैं।
  • सुन्दरकांड का विशेष लाभ प्राप्त करने के लिए हनुमान चलीसा का पाठ भी करना अत्यंत लाभकारी होता है।

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