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स्वधा स्तोत्र | Swadha Stotram PDF in Hindi

स्वधा स्तोत्र | Swadha Stotram Hindi PDF Download

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स्वधा स्तोत्र | Swadha Stotram PDF Details
स्वधा स्तोत्र | Swadha Stotram
PDF Name स्वधा स्तोत्र | Swadha Stotram PDF
No. of Pages 7
PDF Size 0.94 MB
Language Hindi
CategoryEnglish
Source pdffile.co.in
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स्वधा स्तोत्र | Swadha Stotram Hindi

नमस्कार मित्रों, आज इस लेख के माध्यम से हम आप सभी के लिए स्वधा स्तोत्र PDF Download / Swadha Stotra PDF in Hindi प्रदान करने जा रहे हैं। स्वधा स्तोत्र अत्यंत ही चमत्कारी एवं लाभकारी स्तोत्र है। यह दिव्य स्तोत्र देवी स्वधा जी को समर्पित है। स्वधा स्तोत्र भगवान ब्रह्मा द्वारा लिखा गया था, जिसका उल्लेख ब्रह्मा वैवर्त पुराण के प्रकृति खंड में पाया जाता है। वैदिक पुराणों के अनुसार पूर्वकाल में ब्रह्मा जी ने भी इस स्तोत्र का पाठ किया था।

इस स्तोत्र का पाठ पितृपक्ष एवं श्राद्ध के दिनों में किया जाता है। यह पितरों के लिये तृप्तिप्रद एवं श्राद्धों के फल को बढ़ाने वाला है। इस स्तोत्र के पाठ से पित्रों को अति शीघ्र ही मुक्ति मिल जाती है। अगर व्यक्ति पूरा स्तोत्र का पाठ नहीं कर सकता या करने में असमर्थ है तो श्राद्धपक्ष में प्रतिदिन सुबह के समय तीन बार स्वधा, स्वधा, स्वधा बोलने से भी सौ श्राद्धों के बराबर का ही लाभ प्राप्त होता है।

स्वधा स्तोत्र PDF Download / Swadha Stotram in Hindi PDF

ब्रह्मोवाच –

स्वधोच्चारणमात्रेण तीर्थस्नायी भवेन्नरः ।

मुच्यते सर्वपापेभ्यो वाजपेयफलं लभेत् ॥ १ ॥

स्वधा स्वधा स्वधेत्येवं यदि वारत्रयं स्मरेत् ।

श्राद्धस्य फलमाप्नोति कालतर्पणयोस्तथा ॥ २ ॥

श्राद्धकाले स्वधास्तोत्रं यः श‍ृणोति समाहितः ।

लभेच्छ्राद्धशतानाञ्च पुण्यमेव न संशयः ॥ ३ ॥

स्वधा स्वधा स्वधेत्येवं त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः ।

प्रियां विनीतां स लभेत्साध्वीं पुत्रं गुणान्वितम् ॥ ४ ॥

पितॄणां प्राणतुल्या त्वं द्विजजीवनरूपिणी ।

श्राद्धाधिष्ठातृदेवी च श्राद्धादीनां फलप्रदा ॥ ५ ॥

बहिर्मन्मनसो गच्छ पितॄणां तुष्टिहेतवे ।

सम्प्रीतये द्विजातीनां गृहिणां वृद्धिहेतवे ॥ ६ ॥

नित्यानित्यस्वरूपासि गुणरूपासि सुव्रते ।

आविर्भावस्तिरोभावः सृष्टौ च प्रलये तव ॥ ७ ॥

ॐ स्वस्ति च नमः स्वाहा स्वधा त्वं दक्षिणा तथा ।

निरूपिताश्चतुर्वेदे षट्प्रशस्ताश्च कर्मिणाम् ॥ ८ ॥

पुरासीत्त्वं स्वधागोपी गोलोके राधिकासखी ।

धृतोरसि स्वधात्मानं कृतं तेन स्वधा स्मृता ॥ ९ ॥

ध्वस्ता त्वं राधिकाशापाद्गोलोकाद्विश्वमागता ।

कृष्णाश्लिष्टा तया दृष्टा पुरा वृन्दा वने वने ॥

कृष्णालिङ्गनपुण्येन भूता मे मानसीसुता ।

अतृप्त सुरते तेन चतुर्णां स्वामिनां प्रिया ॥

स्वाहा सा सुन्दरी गोपी पुरासीद् राधिकासखी ।

रतौ स्वयं कृष्णमाह तेन स्वाहा प्रकीर्तिता ॥

कृष्णेन सार्धं सुचिरं वसन्ते रासमण्डले ।

प्रमत्ता सुर ते श्लिष्टा दृष्टा सा राधया पुरा ॥

तस्याः शापेन सा ध्वस्ता गोलोकाद्विश्वमागता ।

कृष्णालिङ्गनपुण्येन समभूद्वह्निकामिनी ॥

पवित्ररूपा परमादेवाद्यैर्वन्दितानृभिः ।

यन्नामोच्चारणे-नैव  नरो मुच्येत पातकात् ॥

या सुशीलाभिधागोपी पुरासीद्राधिकासखी ।

उवास दक्षिणेक्रोडे कृष्णस्य च महात्मनः ॥

प्रध्वस्ता सा च तच्छापाद्गोलोकाद्विश्वमागता ।

कृष्णालिङ्गनपुण्येन सा बभूव च दक्षिणा ॥

सा प्रेयसीरतौ दक्षा प्रशस्ता सर्वकर्मसु ।

उवास दक्षिणे भर्तुर्दक्षिणा तेन कीर्तिता ॥

गोप्यो बभूवुस्तिस्रो वै स्वधा स्वाहा च दक्षिणा ।

कर्मिणां कर्मपूर्णार्थं पुरा चैवेश्वरेच्छया ॥)

इत्येवमुक्त्वा स ब्रह्मा ब्रह्मलोके च संसदि ।

तस्थौ च सहसा सद्यः स्वधा साविर्बभूव ह ॥ १० ॥

तदा पितृभ्यः प्रददौ तामेव कमलाननाम् ।

तां संप्राप्य ययुस्ते च पितरश्च प्रहर्षिताः ॥ ११ ॥

स्वधा स्तोत्रमिदं पुण्यं यः श‍ृणोति समाहितः ।

स स्नातः सर्वतीर्थेषु वेदपाठफलं लभेत् ॥ १२ ॥

॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्त्ते महापुराणे द्वितीये

प्रकृतिखण्डे नारदनारायणसण्वादे स्वधोपाख्याने

स्वधोत्पत्ति तत्पूजादिकं नामैकचत्वारिंशोऽध्यायः ॥ ४१॥

स्वधास्तोत्रं सम्पूर्णम् ।

स्वधा स्तोत्र का हिन्दी अर्थ / Swadha Stotra Meaning in Hindi

  • ब्रह्मा जी बोले- ‘स्वधा’ शब्द के उच्चारणमात्र से मानव तीर्थस्नायी समझा जाता है। वह सम्पूर्ण पापों से मुक्त होकर वाजपेय-यज्ञ के फल का अधिकारी हो जाता है।
  • ‘स्वधा, स्वधा, स्वधा’ इस प्रकार यदि तीन बार स्मरण किया जाए तो श्राद्ध, बलि और तर्पण के फल पुरुष को प्राप्त हो जाते हैं।
  • श्राद्ध के अवसर पर जो पुरुष सावधान होकर स्वधा देवी के स्तोत्र का श्रवण करता है, वह सौ श्राद्धों का फल पा लेता है– इसमें संशय नहीं है।
  • जो मानव ‘स्वधा, स्वधा, स्वधा’ इस पवित्र नाम का त्रिकाल संध्या के समय पाठ करता है, उसे विनीत, पतिव्रता और प्रिय पत्नी प्राप्त होती है तथा सद्गुण सम्पन्न पुत्र का लाभ होता है।
  • देवि! तुम पितरों के लिये प्राणतुल्या और ब्राह्मणों के लिये जीवनस्वरूपिणी हो। तुम्हें श्राद्ध की अधिष्ठात्री देवी कहा गया है। तुम्हारी ही कृपा से श्राद्ध और तर्पण आदि के फल मिलते हैं।
  • तुम पितरों की तुष्टि, द्विजातियों की प्रीति तथा गृहस्थों की अभिवृद्धि के लिये मुझ ब्रह्मा के मन से निकलकर बाहर जाओ।
  • सुव्रते! तुम नित्य हो, तुम्हारा विग्रह नित्य और गुणमय है। तुम सृष्टि के समय प्रकट होती हो और प्रलयकाल में तुम्हारा तिरोभाव हो जाता है।
  • तुम ऊँ, नमः, स्वस्ति, स्वाहा, स्वधा एवं दक्षिणा हो। चारों वेदों द्वारा तुम्हारे इन छः स्वरूपों का निरूपण किया गया है, कर्मकाण्डी लोगों में इन छहों की बड़ी मान्यता है।
  • हे देवी! आप गोलोक में ‘स्वधा’ नाम की गोपी हुआ करते थे और तुम राधिका की सखी थी। भगवान कृष्ण ने आपको छाती पर रख हविष्य दिया था। इसी कारण आपका नाम स्वाधा पड़ा।
  • यही भगवती स्वधा का पुनीत स्तोत्र है। जो पुरुष समाहित-चित्त से इस स्तोत्र का श्रवण करता है, उसने मानो सम्पूर्ण तीर्थों में स्नान कर लिया। उसको वेद पाठ का फल मिलता है।
  • इस प्रकार देवी स्वधा की महिमा गाकर ब्रह्मा जी अपनी सभा में विराजमान हो गये। इतने में सहसा भगवती स्वधा उनके सामने प्रकट हो गयीं। तब पितामह ने उन कमलनयनी देवी को पितरों के प्रति समर्पण कर दिया। उन देवी की प्राप्ति से पितर अत्यन्त प्रसन्न हुए। वे आनन्द से विह्वल हो गये।

इस प्रकार श्रीब्रह्मवैवर्त्त महापुराण द्वितीय प्रकृतिखण्ड नारदनारायणसंवाद स्वधोपाख्यान अध्याय-४१ व श्रीमद्देवीभागवत पुराणान्तर्गत नवम स्कन्ध अध्याय-३२ भगवती स्वधा का उपाख्यान, उनके ध्यान, पूजा-विधान तथा स्तोत्रों का वर्णन समाप्त हुआ॥

स्वधास्तोत्रं मराठी अर्थ / Swadha Stotra Meaning in Marathi

ब्रह्मदेव म्हणाले

१. स्वधा शब्दाच्या उच्चाराने माणूस तीर्थांमध्ये स्नान केल्याप्रमाणे

पवित्र होतो. तो सर्व पापांतून मुक्त होऊन वाजपेय यज्ञाच्या फलाचा

अधिकारी होतो.

२. स्वधा, स्वधा, स्वधा अशा तीनवेळा स्मरणाने तो श्राद्ध, काल आणि

तर्पण यांच्या फलाचा प्राप्त करणारा होतो.

३. श्राद्धाच्या दिवशी जो सावधानतेने स्वधादेवीच्या या स्तोत्राचे

श्रवण करतो, त्याला निःसंशय शंभर श्राद्ध केल्याचे पुण्य

मिळते.

४. जो माणूस त्रिकाल संध्यासमयी स्वधा, स्वधा, स्वधा या पवित्र

नामाचा पाठ करतो, त्याला विनम्र, पतिव्रता अणि प्रिय पत्नीचा लाभ

होतो. तसेच त्याला सद्गुण संपन्न पुत्राचा लाभ होतो.

५. हे देवि! तूं पितरांसाठी प्राणतुल्य आहेस. ब्राह्मणांसाठी

जीवनस्वरूपिणी आहेस. तूला श्राद्धकर्माची अधिष्ठात्री देवी म्हटले

जाते. तुझ्या कृपेनेच श्राद्ध आणि तर्पणाचे फल मिळते.

६. तू पितरांच्या तुष्टिसाठी, ब्राह्मणांच्या प्रेमासाठी आणि

गृहस्थांच्या अभिवृद्धिसाठी माझ्या मनामधून बाहेर ये.

७. सुव्रते तू नेहमी आहेस. तुझा विग्रह नित्य आणि गुणमय असतो. तूं

सृष्टि बरोबरच प्रगट होतेस आणि प्रलयकाली तुझा विलय होतो.

८. तु ॐ, नमः, स्वस्ति, स्वाहा, स्वधा तसेच दक्षिणा आहेस. चारी

वेदांमध्ये तुझ्या या सहा स्वरूपांचे विवरण केलेले आहे. कर्मकाण्डी

लोकांमध्ये या सहा नावाना मोठी मान्यता आहे.

९. हे देवि ! तू या आधि गोलोकांत ‘ स्वधा ‘ नावाची गोपी होतीस

आणि राधेची सखी होतीस. भगवान श्रीकृष्णाने तुला आपल्या

वक्षःस्थळावर धारण केले होते. यामुळे तुला स्वधा हे नाव मिळाले.

१०. अशा प्रकारे देवी स्वधाचे गुणगान करुन ब्रह्मदेव आपल्या सभेंत

विराजमान झाले. इतक्यांत भगवती स्वधा त्यांच्यासमोर प्रगट झाली.

११. तेव्हां पितामहाने त्या कमलनयनी देवीला पितरांना समर्पित

केले. त्या देवीच्या प्राप्तीमुळे पितर अत्यंत आनंदित झाले व आपल्या

लोकी निघून गेले.

१२. हे भगवती स्वधादेवीचे परम पावन स्तोत्र आहे. जो कोणी समर्पित

वृत्तीने हे ऐकेल त्याला सर्व तीर्थांमध्ये स्नान केल्याचे पुण्य

तसेच वेदपाठाचे फल प्राप्त होते.  अशा रीतीने श्रीब्रह्मवैवर्त

पुराणांतील प्रकृतीखंडांतील हे ब्रह्मदेवाने रचिलेले स्वधा स्तोत्र

येथे पुरे झाले.

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