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ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत पर टिप्पणी PDF

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ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत पर टिप्पणी PDF Details
ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत पर टिप्पणी
PDF Name ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत पर टिप्पणी PDF
No. of Pages 16
PDF Size 0.38 MB
Language English
CategoryEnglish
Source pdffile.co.in
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ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत पर टिप्पणी

नमस्कार मित्रों, आज इस लेख के माध्यम से हम आप सभी के लिए ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत पर टिप्पणी PDF / Urja Ke Vaikalpik Srot Par Tippani प्रदान करने जा रहे हैं। ऊर्जा के स्रोत मानव जीवन के लिए अत्यंत ही महत्वपूर्ण माने गए हैं। इस धरती पर ऊर्जा के बिना प्राणी का जीवन होना अत्यंत ही दूभर है। मनुष्य के साथ-साथ सौर ऊर्जा पेड़-पौधों के लिए प्रकाश संश्लेषण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

वहीं वैश्विक स्तर पर सूर्य ऊर्जा का एक अच्छा और बड़ा विकल्प है। पर्यावरण संरक्षण, पृथ्वी के बढ़ते तापक्रम को रोकने के लिये अत्यंत ही आवश्यक है। अनुमान है कि भारत को वैकल्पिक ऊर्जा उत्पादन के लिये 175 अरब डॉलर की जरूरत है। हमें पता होना चाहिए कि कोयले से प्राप्त पावर में देश 35 फीसद कार्बन डाइऑक्साइड का उत्पादन कर रहा है। 2030 तक भारत 40 फीसद ऊर्जा वैकल्पिक स्रोत से लेने लगेगा।

ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत पर टिप्पणी PDF

  • भारत में राष्ट्रीय अपतटीय पवन ऊर्जा नीति को मंजूरी दी गई है। यह नीति सफल हो गई तो देश के ऊर्जा बाजार का नक्शा बदल सकती है। इससे पर्यावरण की सुरक्षा को लेकर भारत का कद भी दुनिया में लंबा होगा।
  • फिलहाल पवन ऊर्जा के क्षेत्र में विश्व के प्रमुख देशों में अमेरिका, जर्मनी, स्पेन, चीन के बाद भारत का पाँचवाँ स्थान है। 45 हजार मेगावाट तक के उत्पादन की संभावना वाले इस क्षेत्र में फिलहाल देश में 1210 मेगावाट का उत्पादन होता है। खैर, देखा जाए तो देश के लगभग 13 राज्यों के 190 से अधिक स्थानों में पवन ऊर्जा के उत्पादन की प्रबल संभावना विद्यमान हैं।
  • सन 1990 में भारत में पवन ऊर्जा के विकास पर ध्यान दिया गया और देखते ही देखते इस वैकल्पिक ऊर्जा का योगदान काफी बढ़ गया और हमारी ऊर्जा का योगदान लगातार बढ़ती रही लेकिन इसके मुकाबले हमारे पास संसाधन बहुत सीमित हैं। यही कारण है कि विश्वभर में वैकल्पिक ऊर्जा की हर तरफ बात हो रही है।
  • विश्वभर में आज नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। वर्ष 2013 में अमेरिका ने इसके लिये 35.8 प्रतिशत निवेश, यूरोपीय संघ ने 48.4, चीन ने 56.3 जबकि इनके तुलना में भारत ने मात्र 6.1 प्रतिशत निवेश प्रतिवर्ष नवीकरणीय ऊर्जा पर किया है।
  • इसी कड़ी में हम देखते हैं कि जर्मनी ने सौर ऊर्जा क्षमता 114 से बढ़कर 36 हजार मेगावाट और पवन ऊर्जा 6000 से बढ़कर 35 हजार मेगावाट तक पहुँच गई। भारत सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा जैसे गैर परंपरागत स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों के दोहन के लिये पर्याप्त कदम उठा रहा है।
  • भारत का लक्ष्य अपनी अक्षय ऊर्जा क्षमता को मौजूदा 25000 मेगावाट से बढ़ाकर वर्ष 2017 तक दोगुना से भी ज्यादा यानी 55000 मेगावाट करने का है। ग्रीनपीस की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत को वैकल्पिक ऊर्जा प्रणालियों में निजी और सरकारी स्तर पर 2050 तक 6,10,000 करोड़ रुपये सालाना निवेश करने की जरूरत बताई गई थी।
  • इस निवेश से भारत को जीवाश्म ईंधन पर खर्च किए जाने वाले सालाना एक खरब रुपये की बचत होगी और इस नए निवेश के कारण अगले कुछ सालों में ही भारत रोजगार के 24 लाख नए अवसर भी पैदा कर सकेगा।
  • अगर भारत सरकार रिपोर्ट के आधार पर इन उपायों को लागू करती है तो 2050 तक भारत की कुल ऊर्जा जरूरतों का 92 प्रतिशत प्राकृतिक संसाधनों से प्राप्त किया जाएगा। और सबसे चौंकाने वाली बात यह होगी कि उस वक्त भी हम आज से भी सस्ती बिजली प्राप्त कर सकेंगे।
  • फिलहाल देश में पवन ऊर्जा तकनीक से करीब 1,257 मेगावाट बिजली पैदा की जा रही है। पर्यावरण प्रदूषण बचाने में पवन ऊर्जा को सबसे कारगर उपाय माना जाता है। यही वजह है कि पवन ऊर्जा के मामले में ब्रिटेन दुनिया में सबसे आगे है।
  • चीन, स्पेन, अमेरिका में भी पवन ऊर्जा के क्षेत्र में तेजी से विकास हो रहा है। देश में भी इसकी गति बढ़ाने की जरूरत है।

वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत पर टिप्पणी विस्तृत टिप्पणी / Urja Ke Vaikalpik Srot Ka Varnan Kijiye

  • बहरहाल, दुनिया के किसी भी देश को जहाँ एक ओर अपने विकास दर को बनाकर रखना होता है वहीं दूसरी ओर पर्यावरण की समुचित चिंता करना उसका पहला कर्तव्य है लेकिन ग्लोबल वार्मिंग कई साल से पूरी दुनिया के लिये चिंता की वजह बनी हुई है।
  • वैश्विक आँकड़ों को देखें तो चीन दुनिया का सबसे अधिक प्रदूषण फैलाने वाला (करीब 25 प्रतिशत) कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ने वाला देश है। यहाँ जैव ईंधन की सबसे ज्यादा खपत है।
  • जबकि औद्योगिक देशों में प्रति व्यक्ति के हिसाब से अमेरिका दूसरे नंबर पर (लगभग 19 फीसदी) सबसे अधिक प्रदूषण फैलाता है। ये दोनों देश मिलकर दुनिया के आधे प्रदूषण के लिये जिम्मेदार हैं और तीसरे नंबर पर भारत (करीब छह फीसदी) है।
  • ये सभी देश आज जैव ईंधन की बसे ज्यादा खपत करते हैं इस आधार पर कहा जा सकता है कि चीन, अमेरिका और भारत दुनिया में सबसे अधिक प्रदूषण उत्पन्न करने वाले देश हैं। यहाँ तक कि पर्यावरण बचाने की वकालत करने और खुद को इसका झंडाबरदार बताने वाले देश जर्मनी और ब्रिटेन की बात है तो यह भी दुनिया में सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाले शीर्ष 10 देशों में शुमार हैं।
  • बहरहाल पूरी दुनिया के सामने यह एक बड़ी चुनौती है कि जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को कैसे कम किया जाए। हालाँकि इस घोषणा से भारत के सामने कई चुनौतियाँ खड़ी हो सकती हैं। यहाँ अभी गरीबी की स्थिति है और भारत का प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन बेहद कम, यानि करीब 3.5 टन है जबकि अमेरिका और चीन का कार्बन उत्सर्जन प्रति व्यक्ति 12 टन है।
  • भारत के पास दुनिया की कुल भूमि का 2.5 प्रतिशत हिस्सा है जबकि उसकी जनसंख्या विश्व की कुल आबादी की 17.5 प्रतिशत है और उसके पास दुनिया का कुल 17.5 प्रतिशत पशुधन है।
  • भारत की 30 प्रतिशत आबादी अब भी गरीब है, 20 प्रतिशत के पास आवास नहीं है, 25 प्रतिशत के पास बिजली नहीं है। जबकि करीब 9 करोड़ लोग पेयजल की सुविधा से वंचित हैं। इतना ही नहीं, देश की खाद्य सुरक्षा के दबाव में भारत का कृषि क्षेत्र कार्बन उत्सर्जन घटाने की हालात में नहीं है।
  • सबके लिये भोजन मुहैया कराना फिलहाल प्राथमिकता है भारत में होने वाले कार्बन उत्सर्जन में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी 17.6 फीसद है। कार्बन उत्सर्जन में कृषि क्षेत्र की कुल हिस्सेदारी में सबसे बड़ा हिस्सा पशुओं का है।
  • पशुओं से करीब 56 फीसद उत्सर्जन होता है। सबको भोजन देने की सरकार की योजना के अंतर्गत राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून बन चुका है।

जैव ईंधन के उत्पादक प्रयोग हेतु प्रौद्योगिकी

जैव ईंधन के प्रभावी उपयोग को सुरक्षित करती प्रौद्योगिकियाँ ग्रामीण क्षेत्रों में फैल रहीं हैं।

ईंधन उपयोग की क्षमता निम्नलिखित कारणों से बढ़ाई जा सकती है –

  • विकसित डिज़ाइन के स्टोवों का उपयोग, जो क्षमता को दोगुणा करता है जैसे धुँआ रहित ऊर्जा चूल्हा।
  • जैव ईंधन को सम्पीड़ित/सिकोड़कर (कम्प्रेस) ब्रिकेट के रूप में बनाये रखना ताकि वह कम स्थान ले सके और अधिक प्रभावी ढंग से कार्य कर सके।
  • जैव वस्तुओं को एनारोबिक डायजेशन के माध्यम से बायोगैस में रूपांतरित करना जो न केवल ईंधन की आवश्यक्ताओं को पूरा करता है बल्कि खेतों को घुलनशील खाद भी उपलब्ध कराता है।
  • नियंत्रित वायु आपूर्ति के अंतर्गत जैव ईंधन के आंशिक दहन के माध्यम से उसे उत्पादक गैस में रूपांतरित करना।

जैव भार और जैव ईंधन

जैव भार क्या है?

पौधों प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के माध्यम सौर ऊर्जा का उपयोग बायोमास उत्पादन के लिए करते हैं। इस बायोमास का उत्पादन ऊर्जा स्रोतों के विभिन्न रूपों के चक्रों से होकर गुजरता है। एक अनुमान के अनुसार भारत में बायोमास की वर्तमान उपलब्धता 150 मिलियन मीट्रिक टन है। अधिशेष बायोमास की उपलब्धता के साथ, यह उपलब्धता प्रति वर्ष लगभग 500 लाख मीट्रिक टन होने का अनुमान है।

बायोमास के उत्पादन के लिए उपयोग की जाने वाली प्रौद्योगिकी

बायोमास सक्षम प्रौद्योगिकियों के कुशल उपयोग द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचलित हो रहा है। इससे ईंधन के उपयोग की दक्षता में वृद्धि हुई है। जैव ईंधन ऊर्जा का एक महत्वपूर्ण स्रोत है जिसका देश के कुल ईंधन उपयोग में एक-तिहाई का योगदान है और ग्रामीण परिवारों में इसकी खपत लगभग 90 प्रतिशत है। जैव ईंधन का व्यापक उपयोग खाना बनाने और उष्णता प्राप्त करने में किया जाता है। उपयोग किये जाने वाले जैव ईंधन में शामिल है- कृषि अवशेष, लकड़ी, कोयला और सूखे गोबर।

लाभ

  • स्टोव की बेहतर डिजाइन के उपयोग से कुशल चूल्हे की दक्षता दोगुना हो जाती है।
  • स्थानीय रूप से उपलब्ध और कुछ हद तक बहुत ज़्यादा।
  • जीवाश्म ईंधन की तुलना में यह एक स्वच्छ ईंधन है। एक प्रकार से जैव ईंधन, कार्बन डायऑक्साइड का अवशोषण कर हमारे परिवेश को भी स्वच्छ रखता है।

हानि

  • ईंधन को एकत्रित करने में कड़ी मेहनत।
  • खाना बनाते समय और घर में रोशनदानी (वेंटीलेशन) नहीं होने के कारण गोबर से बनी ईंधन वातावरण को प्रदूषित करती है जिससे स्वास्थ्य गंभीर रूप से प्रभावित होता।
  • जैव ईंधन के लगातार और पर्याप्त रूप से उपयोग न करने के कारण वनस्पति का नुकसान होता है जिसके चलते पर्यावरण के स्तर में गिरावट आती है।

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