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वट सावित्री व्रत कथा | Vat Savitri Vrat Katha PDF in Hindi

वट सावित्री व्रत कथा | Vat Savitri Vrat Katha Hindi PDF Download

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वट सावित्री व्रत कथा | Vat Savitri Vrat Katha PDF Details
वट सावित्री व्रत कथा | Vat Savitri Vrat Katha
PDF Name वट सावित्री व्रत कथा | Vat Savitri Vrat Katha PDF
No. of Pages 10
PDF Size 1.02 MB
Language Hindi
CategoryEnglish
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वट सावित्री व्रत कथा | Vat Savitri Vrat Katha Hindi

नामस्कार मित्रों, आज इस लेख के माध्यम से हम आप सभी के लिए वट सावित्री व्रत कथा PDF / Vat Savitri Vrat Katha PDF प्रदान करने जा रहे हैं। सनातन हिन्दू धर्म में वट सावित्री के व्रत को बहुत अधिक महत्वपूर्ण एवं चमत्कारी व्रत माना जाता है। वट सावित्री के व्रत का पालन सुहागिन स्त्रियाँ अपने पति की दीर्घायु की कामना के लिए करती हैं। हिन्दू धार्मिक पुराणों के अनुसार यह माना गया है कि वट वृक्ष में भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु व भगवान शिव तीनों का वास होता है। इस वृक्ष के नीचे बैठकर पूजन करने एवं व्रत कथा आदि सुनने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।

ऐसी भी मान्यता है कि वट सावित्री का व्रत करने से नि:संतान स्त्री को संतान की प्राप्ति होती है। वट सावित्री के व्रत में वट वृक्ष की पूजा बड़े ही विधि विधान से की जाती है। इस व्रत को करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है। वट सावित्री का व्रत प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को को बड़े ही धूम-धाम से किया जाता है। इस वर्ष वट सावित्री का व्रत 30 मई 2022 को रखा जाएगा।

वट सावित्री व्रत कथा PDF | Vat Savitri Vrat Katha PDF

पौराणिक मान्यता के अनुसार, मद्रदेश में अश्वपति नाम के धर्मात्मा राजा का राज था। उनकी कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्ति के लिए राजा ने यज्ञ करवाया, जिसके शुभ फल से कुछ समय बाद उन्हें एक कन्या की प्राप्ति हुई, इस कन्या का नाम सावित्री रखा गया। जब सावित्री विवाह योग्य हुई तो उन्होंने द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को अपने पतिरूप में वरण किया।

सत्यवान के पिता भी राजा थे परंतु उनका राज-पाट छिन गया था, जिसके कारण वे लोग बहुत ही द्ररिद्रता में जीवन व्यतीत कर रहे थे। सत्यवान के माता-पिता की भी आंखों की रोशनी चली गई थी। सत्यवान जंगल से लकड़ी काटकर लाते और उन्हें बेचकर जैसे-तैसे अपना गुजारा करते थे।

जब सावित्री और सत्यवान के विवाह की बात चली तब नारद मुनि ने सावित्री के पिता राजा अश्वपति को बताया कि सत्यवान अल्पायु हैं और विवाह के एक वर्ष पश्चात ही उनकी मृत्यु हो जाएगी। जिसके बाद सावित्री के पिता नें उन्हें समझाने के बहुत प्रयास किए परंतु सावित्री यह सब जानने के बाद भी अपने निर्णय पर अडिग रही।

अंततः सावित्री और सत्यवान का विवाह हो गया। इसके बाद सावित्री सास-ससुर और पति की सेवा में लग गई। समय बीतता गया और वह दिन भी आ गया जो नारद मुनि ने सत्यवान की मृत्यु के लिए बताया था। उसी दिन सावित्री भी सत्यवान के साथ वन को गई। वन में सत्यवान लकड़ी काटने के लिए जैसे ही पेड़ पर चढ़ने लगा कि उसके सिर में असहनीय पीड़ा होने लगी, कुछ वह सावित्री की गोद में सिर रखकर लेट गया। कुछ ही समय में उनके समक्ष अनेक दूतों के साथ स्वयं यमराज खड़े हुए थे।

यमराज सत्यवान के जीवात्मा को लेकर दक्षिण दिशा की ओर चलने लगे, पतिव्रता सावित्री भी उनके पीछे चलने लगी। आगे जाकर यमराज ने सावित्री से कहा, ‘हे पतिव्रता नारी! जहां तक मनुष्य साथ दे सकता है, तुमने अपने पति का साथ दे दिया। अब तुम लौट जाओ’ इस पर सावित्री ने कहा, ‘जहां तक मेरे पति जाएंगे, वहां तक मुझे जाना चाहिए। यही सनातन सत्य है’ यमराज सावित्री की वाणी सुनकर प्रसन्न हुए और उनसे तीन वर मांगने को कहा।

सावित्री ने कहा, ‘मेरे सास-ससुर अंधे हैं, उन्हें नेत्र-ज्योति दें’ यमराज ने ‘तथास्तु’ कहकर उसे लौट जाने को कहा और आगे बढ़ने लगे किंतु सावित्री यम के पीछे ही चलती रही । यमराज ने प्रसन्न होकर पुन: वर मांगने को कहा। सावित्री ने वर मांगा, ‘मेरे ससुर का खोया हुआ राज्य उन्हें वापस मिल जाए। इसके बाद सावित्री ने यमदेव से वर मांगा, ‘मैं सत्यवान के सौ पुत्रों की मां बनना चाहती हूं।

कृपा कर आप मुझे यह वरदान दें’ सावित्री की पति-भक्ति से प्रसन्न हो सावित्री से तथास्तु कहा, जिसके बाद सावित्री न कहा कि मेरे पति के प्राण तो आप लेकर जा रहे हैं तो आपके पुत्र प्राप्ति का वरदान कैसे पूर्ण होगा। तब यमदेव ने अंतिम वरदान को देते हुए सत्यवान की जीवात्मा को पाश से मुक्त कर दिया। सावित्री पुनः उसी वट वृक्ष के लौटी तो उन्होंने पाया कि वट वृक्ष के नीचे पड़े सत्यवान के मृत शरीर में जीव का संचार हो रहा है। कुछ देर में सत्यवान उठकर बैठ गया। उधर सत्यवान के माता-पिता की आंखें भी ठीक हो गईं और उनका खोया हुआ राज्य भी वापस मिल गया।

सावित्री के पतिव्रता धर्म की कथा का सार

  • सावित्री के पतिव्रता धर्म की कथा का सारयह है कि एकनिष्ठ पतिपरायणा स्त्रियां अपने पति को सभी दुख और कष्टों से दूर रखने में समर्थ होती है।
  • जिस प्रकार पतिव्रता धर्म के बल से ही सावित्री ने अपने पति सत्यवान को यमराज के बंधन से छुड़ा लिया था।
  • इतना ही नहीं खोया हुआ राज्य तथा अंधे सास-ससुर की नेत्र ज्योति भी वापस दिला दी।
  • उसी प्रकार महिलाओं को अपना गुरु केवल पति को ही मानना चाहिए। गुरु दीक्षा के चक्र में इधर-उधर नहीं भटकना चाहिए।

वट सावित्री पूजा विधि | Vat Savitri Vrat Puja Vidhi

  • वट सावित्री के व्रत में वट यानि बरगद के वृक्ष के साथ-साथ सत्यवान-सावित्री और यमराज की भी विधिवत पूजा की जाती है।
  • मान्यता है कि वटवृक्ष में भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) तीनों देवों का वास होता हैं, इसीलिए वट के वृक्ष के समक्ष बैठकर पूजा करने से सभी मनोकामनाएं शीघ्र ही पूर्ण होती हैं।
  • वट सावित्री के व्रत के दिन सुहागिन स्त्रियों को प्रातःकाल उठकर स्नान आदि करना चाहिये।
  • तत्पश्चात रेत से भरी एक बांस की टोकरी लें।
  • उसमें ब्रह्मदेव की मूर्ति के साथ सावित्री की मूर्ति भी स्थापित करें।
  • इसी प्रकार दूसरी टोकरी में सत्यवान और सावित्री की मूर्तियाँ स्थापित करें।
  • इसके बाद दोनों टोकरियों को ले जाकर वट के वृक्ष के नीचे रखें।
  • अब ब्रह्मदेव एवं सावित्री की मूर्तियों की यथावत पूजा करें।
  • तदोपरांत सत्यवान और सावित्री की मूर्तियों की भी विधि-विधान से पूजा करें।
  • इसके बाद वट वृक्ष को जल अर्पित करें।
  • तत्पश्चात वट वृक्ष की पूजा के लिए फूल, रोली-मौली, कच्चा सूत, भीगा चना, गुड़ इत्यादि अर्पित करें।
  • इसके बाद जलाभिषेक करें।
  • अब वट वृक्ष के तने के चारों ओर कच्चा धागा लपेट कर तीन बार परिक्रमा करें।
  • इसके बाद स्त्रियों को वट सावित्री व्रत की कथा अवश्य पढ़नी या सुननी चाहिए।
  • कथा सुनने के बाद भीगे हुए चने का बायना निकाले।
  • उसपर कुछ रूपए रखकर अपनी सास को दें यदि सास नहीं हैं तो किसी भी सुहागिन स्त्री को दे सकती हैं।
  • जो स्त्रियाँ अपनी सास से दूर रहती हैं, वे बायना उन्हें भेज दे तथा उनका आशीर्वाद अवश्य लें।
  • पूजा समाप्त होने के पश्चात ब्राह्मणों को वस्त्र तथा फल आदि दान करें।

वट सावित्री की आरती PDF

अश्वपती पुसता झाला।। नारद सागंताती तयाला।।
अल्पायुषी सत्यवंत।। सावित्री ने कां प्रणीला।।
आणखी वर वरी बाळे।। मनी निश्चय जो केला।।
आरती वडराजा।।1।।

दयावंत यमदूजा। सत्यवंत ही सावित्री।
भावे करीन मी पूजा। आरती वडराजा ।।धृ।।
ज्येष्ठमास त्रयोदशी। करिती पूजन वडाशी ।।
त्रिरात व्रत करूनीया। जिंकी तू सत्यवंताशी।
आरती वडराजा ।।2।।

स्वर्गावारी जाऊनिया। अग्निखांब कचळीला।।
धर्मराजा उचकला। हत्या घालिल जीवाला।
येश्र गे पतिव्रते। पती नेई गे आपुला।।
आरती वडराजा ।।3।।

जाऊनिया यमापाशी। मागतसे आपुला पती। चारी वर देऊनिया।
दयावंता द्यावा पती। आरती वडराजा ।।4।।

पतिव्रते तुझी कीर्ती। ऐकुनि ज्या नारी।।
तुझे व्रत आचरती। तुझी भुवने पावती।।
आरती वडराजा ।।5।।

पतिव्रते तुझी स्तुती। त्रिभुवनी ज्या करिती।। स्वर्गी पुष्पवृष्टी करूनिया।
आणिलासी आपुला पती।। अभय देऊनिया। पतिव्रते तारी त्यासी।।आरती वडराजा ।।6।।

वट सावित्री पूजा मुहूर्त

अमावस्या तिथि प्रारम्भ – मई 29, 2022 को 02:54 PM बजे

अमावस्या तिथि समाप्त – मई 30, 2022 को 04:59 PM बजे

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